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हरियाणा: गाँधी परिवार के कारण हुड्डा नई पार्टी बनाने की राह पर

Published by
अभय कुमार

हरियाणा में मिली करारी हार के सदमे से कांग्रेस पार्टी निकल नहीं पा रही हैं। कांग्रेस पार्टी अभी तक अपना विधानसभा में नेता का चयन नहीं कर पा रही है। गाँधी परिवार पार्टी के इस हार को अपने परिवार के जीत के रूप में बदलना चाहती हैं। गाँधी परिवार की नजरों में लम्बे समय से भूपेंद्र हुड्डा चुभते रहे हैं। गाँधी परिवार को कभी भी कोई मजबूत राज्य स्तरीय नेता नहीं रास आया हैं। गाँधी परिवार को वैसे नेता ही पसंद आते हैं जो पार्टी की कम वो उनके परिवार के राजनीति वो हित को आगे बढ़ाएं।

जैसे असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गगोई, राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत वो कई अन्य। स्वर्गीय तरुण गगोई के गाँधी परिवार के निष्ठा का इनाम उनकी पुत्र गौरव गगोई को भी मिल रहा है। गौरव गगोई को 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने सीट बदल कर जोरहाट की सीट से चुनाव लड़ाया वो लोकसभा में उप-नेता का पद भी दिलवाया। कांग्रेस पार्टी के ही रकीबुल हुसैन असम के धुबरी सीट से ही गौरव गगोई से लगभग छह गुनी वोटो से जीत कर आये हैं मगर उन्हें कोई पद नहीं दिया गया। रकीबुल हुसैन में असम में अपना जनाधार बढ़ा कर अपनी खुद की राजनीति करने की कूबत हैं अतएव गाँधी परिवार ने उनको किनारे लगा रखा हैं।

गाँधी परिवार कांग्रेस पार्टी में कोई मजबूत वो स्थानीय मजबूत नेता बनते देखता हैं तो उसे अपनी राहों से अलग करने की तरकीब खोजने लगता हैं। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह इसके सबसे जवलंत उदाहरण रहे हैं। असम के मुख्यमंत्री डॉ हिमंत विश्व शर्मा को भी गाँधी परिवार की इसी राजनीति से परेशान होकर पार्टी से अलग होना पड़ा था। आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी को अपनी पार्टी बनानी पड़ी, क्योंकि गाँधी परिवार उनकी राजनितिक पकड़ को दबाने का प्रयास कर रहा था। जगनमोहन रेड्डी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। जगनमोहन रेड्डी ने आंध्र प्रदेश से कांग्रेस पार्टी का सूपड़ा साफ़ कर दिया था। आंध्र प्रदेश में कांग्रेस पार्टी विगत दो लोकसभा वो विधानसभा में अपना खाता नहीं खोल पा रही है।

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पूर्व में भी कई स्थानीय नेतावो को पार्टी से अलग होकर राजनीती करने को मजबूर होना पड़ा। कुछ ऐसे नेता काफी सफल भी हुए हैं। ऐसे नेताओं में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी प्रमुख हैं। ममता बनर्जी अगर कांग्रेस पार्टी में बनी रहती तो आज भी वो कई अन्य राज्य स्तरीय नेताओं की कतार में खड़ी मिलतीं। मगर ममता बनर्जी ने समय रहते अपने को पार्टी से अलग किया। उन्होंने खुद की राजनीति को आगे बढ़ाया। गाँधी परिवार किसी भी नेता को अपनी परिवार के द्वारा खींची गई सीमा रेखा से आगे बढ़कर राजनीति नहीं करने देने की लम्बी परम्परा से अपने को नहीं निकाल पा रहा है। ममता बनर्जी ने अपने बूते राजनीति कर न सिर्फ बंगाल में कम्युनिस्ट सरकार का खात्मा किया, बल्कि 2011 से मुख्यमंत्री भी हैं। अगर वो कांग्रेस पार्टी में होती तो उन्हें भी कैप्टेन अमरिंदर सिंह के तरह पार्टी से बाहर जाने का रास्ता दिखा दिया गया होता। महाराष्ट्र में शरद पवार को अपनी पार्टी बनानी पड़ी क्योंकि वो भी गाँधी परिवार की अपने को पसंद बनाने में नाकाम रहे। कांग्रेस पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में प्रतिभा सिंह को किनारे लगाया। गाँधी परिवार की वही रणनीति की वैसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया जाए जो उनके ही बनाये गए रास्ते पर चले।

भूपेंद्र हुड्डा पर है गांधी परिवार की तिरछी नजर

अब गाँधी परिवार की निगाह भूपेंदर सिंह हुड्डा पर टिकी हैं। हुड्डा का हरियाणा में अपना जनाधार है। हुड्डा गाँधी परिवार द्वारा राज्य में हस्तक्षेप से काफी परेशान हैं। वह वर्तमान समय में अपनी पार्टी बनाने के राह पर चलते दिख रहे हैं। अब अगले पांच साल तक हुड्डा को राज्य में विपक्ष की राजनीति करनी है। इस अवसर को हुड्डा अपनी पार्टी बनाकर उसको मजबूत करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। हुड्डा जानते हैं कि वो सक्रिय राजनीति के अंतिम दशक में हैं उसके बाद उनके बेटे दीपेंदर हुड्डा का राजनितिक जीवन अधर में ही रहेगा। इसलिए हुड्डा चौटाला परिवार की तरह अपनी पार्टी बनाकर राजनितिक विरासत को आगे बढ़ने की कोशिशों में लगे हुए हैं।

अपनी पार्टी बनाने का हुड्डा के पास सबसे सुनहरा अवसर यही है, क्योंकि वर्तमान में जाट समुदाय का नेतृत्व शून्यता के दौर से गुजर रहा है। चौटाला परिवार अपने आंतरिक कलह से निकल नहीं पा रहा है। राज्य में भाजपा के विरोध में राजनीति के लिए स्थानीय दलों के लिए जगह खाली है, जिसको हुड्डा भरने का प्रयास करेंगे। इसीलिए कांग्रेस से टूट कर एक नई पार्टी का उदय होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। कांग्रेस पार्टी ने विपक्ष का नेता चुनने के लिए अपने सबसे विस्वश्त पर्यवेक्षक के तौर पर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राज्यसभा सांसद अजय माकन पंजाब के नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा के अलावा छत्तीसगढ़ के पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंह देव को भेजा मगर वो भी नाम तय करने में विफल रहे, क्योंकि गाँधी परिवार भूपेंदर हुड्डा को किनारा करना चाह रहा है। जबकि कांग्रेस के 37 विधायकों में अधिकतर हुड्डा को ही विपक्ष के नेता के तौर पर देखना चाहते हैं।

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भूपेंदर सिंह हुड्डा भी यह जान रहे हैं कि अभी के समय में गाँधी परिवार विधायकों के दबाव में उनको प्रतिपक्ष का नेता बना भी देती है तो भी गाँधी परिवार इसी ताक में रहेगा कि इनको कैसे इस पद से हटाकर अपने किसी पारिवारिक सिपहसालार को इस पद पर बैठाया जाए।

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