भारत ही नहीं, पूरा विश्व दीपोत्सव में डूबा हुआ है, जहां हिन्दू हैं, वहां मां लक्ष्मी का स्वागत, श्रीरामजी का घर-घर आगमन और गणेश वंदना है लेकिन दूसरी ओर भारत में कुछ लोगों को यह अच्छे दिन रास नहीं आ रहे। हाल ही के दिनों में तीन घटनाएं बड़े स्तर पर सामने आई हैं। तीनों का संदेश कट्टरवाद में फंसी इस्लामिक सोच है, जो हिन्दुओं के सबसे बड़े त्योहार महालक्ष्मी पूजन (दीपावली) को उनके हिसाब से नहीं मनाने देना चाहती। कहीं-कहीं तो हिन्दुओं को सख्त हिदायत दी जा रही है कि वे बिल्कुल भी दीपोत्सव न मनाएं। ऐसे में अब बड़ा प्रश्न यह है कि भारत में दीपावली हिन्दू नहीं मनाएंगे तो कहां मनाएंगे? आज ये सभी घटनाएं सोचने पर विवश करती हैं कि हमने देश विभाजन भी स्वीकार किया और उसके बाद भी ये कैसा माहौल है ? जो सामाजिक समरसता, पंथ निरपेक्षता के आधार पर देश भर में बन जाना चाहिए थी, वह स्वाधीनता के कई वर्षों बाद भी अब तक गायब है!
पहले बात करते हैं महाराष्ट्र के नवी मुंबई के तलोजा इलाके में पंचानंद रेसिडेंशियल सोसायटी की। यहां इस्लामवादियों के बहुत ही अपमानजनक भाषा एवं भद्दी गालियां देते हुए वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हैं । सोसायटी में कुछ हिंदू महिलाएं खुले स्थान पर दीए जला रही थीं, तभी कुछ मुस्लिम व्यक्ति आए और उन्हें धमकाने लगे। एक व्यक्ति महिलाओं से कह रहा है कि “सोसायटी में लाइट नहीं लगाई जाएंगी। मैं देखूँगा कि यहाँ लाइट न लगे।” इसके बाद सोसायटी के अन्य मुस्लिम निवासियों ने भी इस मामले को लेकर हंगामा किया और महिलाओं को गालियाँ दीं। जिससे यहां का पूरा माहौल ही तनावपूर्ण हो गया।
इसी तरह से इस्लामवादियों की हठधर्मिता एवं हिंसा का दूसरा वाकया भी महाराष्ट्र से होना सामने आया है, मुंबई के मीरा भयंदर इलाके में हिंदुओं पर धारदार हथियारों से करीब 10-12 लोगों ने अचानक से इसलिए अटैक कर दिया, क्योंकि वे पटाखे फोड़ते हुए त्योहार पर अपनी खुशी जाहिर कर रहे थे। अचानक से हुए हमले में कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। एक पीड़ित ने बताया भी कैसे उन पर चाकुओं से हमला हुआ, इसमें तीन घायलों की हालत गंभीर है। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है । वहीं, एक घटना राजस्थान में घटी है। राजस्थान के भीलवाड़ा शहर के भीमगंज थाना क्षेत्र में हिंदू व्यक्ति अपने कुछ परिवार सदस्यों के साथ पटाखे फोड़ रहा था। तभी उस पर धारदार हथियारों से हमला किया गया। यहां देवेंद्र हाड़ा चाय की दुकान चलाते हैं। जब वे अपनी दुकान के बाहर पटाखे फोड़कर जश्न मना रहे थे, तभी वहां इस्लामिक अतिवादी करीब 30 से 40 की संख्या में आए और पटाखे फोड़ने से मना करने लगे, इस पर हाड़ा ने सिर्फ इतना कहा- दीपावली है, उत्सव का माहौल है । यह सुनते ही एक युवक ने चाकू निकाल कर उनके पेट में घोंप दिया। जब हिंदू पक्ष के अन्य लोगों ने बीच-बचाव करने की कोशिश की, तो उन पर भी हमला किया गया। जब इससे भी मन नहीं भरा तो इन अतिवादी इस्लामिस्टों ने भीड़ ने दुकान में तोड़फोड़ की, पथराव किया और पास के तीन वाहनों में आग लगा दी। यानी ये सभी इस्लामिस्ट लड़ने की तैयारी से ही आए थे। बाद में इसकी प्रतिक्रिया हिन्दू पक्ष से भी हुई, किंतु यह अवसर आया क्यों? क्या भारत में अब हिन्दू अपने त्योहार भी नहीं मना सकते हैं?
वास्तव में जो लोग इस तरह की हिंसा फैलाने का काम करते हैं, उनकी सोच पर तरस आता है। आखिर वे ऐसा कर कैसा भारत और अपने आस-पास का समाज बना रहे हैं? फिर जब हिंसा का प्रतिकार होता है तो देश और दुनिया भर में हिंदुओं के खिलाफ ही माहौल बनाया जाता है। कोई इनसे पूछे इन्हें हिन्दू त्योहारों का विरोध करना है, लेकिन अपनी दुकानें सजा कर अधिक से अधिक मुनाफा भी कमाना है। स्वभाविक है कि देश में जनसंख्या हिन्दुओं की अधिक है और उनका धर्म उत्सवी है तो वर्ष भर कुछ न कुछ त्योहार, खुशी के पल लगे ही रहते हैं, इसलिए मुसलमान दुकानदारों के ग्राहक भी ज्यादातर हिन्दू ही हैं। ऐसे में जो हिन्दुओं से मोटी कमाई होती है, उसी से ये हज करते हैं, जकात देते हैं, अपने बच्चों का भरण-पोषण करते हैं और अपनी आपा, बीबी, भैया, अम्मी, अब्बू, खाला जैसे तमाम रिश्तों का सफलता से निर्वाह करते हैं। अब इन्हें अपने रिश्तों की ख्वाईशें हिन्दुओं से प्राप्त धन के माध्यम से पूरा करना तो मंजूर हैं, लेकिन जिन त्योहारों से देश की जीडीपी ग्रोथ करती है, इनके घरों में धन बसरसा है, वह त्योहार हिन्दू मनाएं यह मंजूर नहीं । है ना ये विरोधाभास ! यदि इतना ही हिन्दुओं से बैर है तो क्यों उनके एक रुपए को भी ऐसी सोच रखनेवाले जिहादी मानसिकता के लोग अपने घरों में आने देते हैं?
देखा जाए तो इस्लाम में कई विरोधावास है, इस संदर्भ में इसे ही देखें तो ईमानवाालों को यह निर्देशित करना कि ‘‘काफिरों को धन और फल की ज़कात और ज़कातुल फित्र से देना जायज़ नहीं है, भले ही वे ग़रीब, या मुसाफ़िर या क़र्ज़दार ही क्यों न हों। और अगर कोई उन्हें ज़कात देता है, तो वह ज़कात के रूप में उसे नहीं लगेगी।’’(संदर्भ- slamqa.info) फिर आगे कहा गया, ‘‘ज़कात का एक उपयोग (ख़र्च करने की जगह) ऐसा है जिससे काफिरों को देना जायज है, और वह उन लोगों की श्रेणी है जिनके दिलों को परचाया जाता है। अतः उन काफ़िरों को ज़कात से देना जायज़ है जिनका उनकी क़ौम में हुक्म माना जाता है (जो प्रभावी लोग हैं), अगर उन्हें देने से यह आशा हो कि वे मुसलमान हो जाएँगे, फिर उनके मातहत लोग भी मुसलमान हो सकते हैं।’’ (वही) ।
वास्तव में गैर मुसलमान (काफिरों) को लेकर अधिकांश इस्लामिस्टों का यही मानना है, ‘काफ़िर इस्लाम और मुसलमानों का कट्टर दुश्मन है, इसलिए अल्लाह उन्हें अनंत नरक की आग में डालकर सज़ा देंगे।’ (cato-org)। यह विरोधाभास नहीं है कि जिन काफिरों से इस्लाम में नफरत का पैगाम है, उन्हीं के धन का उपयोग वे (इस्लामिस्ट) अपने हित में सबसे अधिक करते हैं! ऐसे ही कई अन्य विरोधाभास हैं जिनका जिक्र फिर कभी आगे होगा ही ।
वस्तुत: यहां सभी देशवासियों को यह समझना होगा कि भारत में आज से दो वर्ष पूर्व ही कोरोना महामारी के पश्चात जो अध्ययन सामने आया, उसने बताया है कि इस महामारी के जाने के बाद जब त्योहारों में खरीदारी शुरू हुई तो वह दस लाख करोड़ रुपये से ऊपर की थी। यह एक तथ्य है कि आज दिनांक में भारत का हिन्दू धार्मिक क्षेत्र सीधे 50 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराता है, जबकि केंद्र और राज्यों की कुल नौकरियां साढ़े तीन करोड़ ही हैं। जबकि केंद्र और राज्यों की कुल नौकरियां साढ़े तीन करोड़ ही हैं।अकेले दुर्गा पूजा से ही 50 हजार करोड़ से अधिक का बिजनेस होता है। गणेश चतुर्थी का 30 हजार करोड़ से अधिक का बाजार है।
वस्तुत: भारत में मनाए जाने वाले त्योहारों में अलग सेक्टर और समुदाय के लोगों की एक बड़ी भागीदारी सुनिश्चित है। बहुत से लोग पंडाल बनाने, मूर्ति बनाने, बिजली की व्यवस्था करने, सिक्योरिटी गार्ड, पुजारी, ढाकी, मजदूर और ट्रांसपोर्टेशन जैसे काम से जुड़े होते हैं। इसके साथ ही फूड और कैटरिंग से जुड़े काम में भी लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। त्योहारों के अवसर पर फैशन, टेक्सटाइल, फुटवियर, कॉस्मेटिक्स और रिटेल सेक्टर का बिजनेस भी चमकता है । फिर त्योहारों की वजह से लिटरेचर पब्लिशिंग, टूर ट्रेवल, होटल, रेस्टोरेंट, फिल्म एंटरटेनमेंट बिजनेस को भी एक गति मिलती रहती है। यानी आर्थिक आंकड़े तो यही कहते हैं कि हिन्दू त्योहारों के कारण से भारत की 2.5 से 3.5 प्रतिशत तक जीडीपी ग्रोथ करती है। ऐसे में इस्लामवादियों को भी यह समझना होगा कि वे व्यर्थ का विरोध बंद करें और भारत के सर्वांगीण आर्थिक विकास में अपना भरपूर योगदान दें। जितना ही वे अपनी कट्टर सोच से बाहर निकलेंगे उतना ही उनका और देश का भला है। अन्यथा तो आज की परिस्थिति सभी के सामने है ही ।
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