राजनीतिक और कूटनीतिक क्षमता का परिचय देते हुए स्वतंत्र भारत को एकजुट करने का असाधारण कार्य बेहद कुशलता से सम्पन्न करने के लिए जाने जाते रहे लौहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती 31 अक्तूबर को प्रतिवर्ष ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस मनाए जाने की शुरूआत 31 अक्तूबर 2014 को उस समय हुई थी, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरदार पटेल के जन्मदिवस को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी।
दरअसल देश के पहले गृहमंत्री और पहले उप-प्रधानमंत्री रहे सरदार पटेल का भारत के राजनीतिक एकीकरण में अविस्मरणीय योगदान रहा और उसी योगदान को चिरस्थायी बनाए रखने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है। राष्ट्रीय एकता के प्रति सरदार पटेल की निष्ठा आजादी के इतने वर्षों बाद भी पूरी तरह प्रासंगिक है। एकता की मिसाल कहे जाने वाले सरदार पटेल गुजरात के नाडियाद में एक किसान परिवार में 31 अक्तूबर 1875 को जन्मे थे, जिन्होंने सदैव देश की एकता को सर्वोपरि माना।
सरदार पटेल ने भारत को खण्ड-खण्ड करने की अंग्रेजों की साजिशों को नाकाम करते हुए बड़ी कुशलता से आजादी के बाद करीब 550 देशी रियासतों तथा रजवाड़ों का एकीकरण करते हुए अखण्ड भारत के निर्माण में सफलता हासिल की थी। ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के सूत्रधार सरदार पटेल के लिए राष्ट्रीय एकता और सद्भावना सदैव सर्वोपरि रही, जिन्होंने छोटी-छोटी रियासतों को एक सूत्र में पिरोकर आधुनिक भारत का निर्माण किया। स्वतंत्रता के बाद 500 से भी ज्यादा रियासतों को बगैर हिंसा के एक सूत्र में पिरोने का कार्य उनके अलावा अन्य किसी के लिए उस दौर में संभव नहीं था। उस दौरान केवल हैदराबाद के ऑपरेशन पोलो के लिए ही उन्हें सेना भेजनी पड़ी थी।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत की विभिन्न बिखरी हुई रियासतों और भू-भागों के एकीकरण में सरदार पटेल के उल्लेखनीय योगदान के कारण ही उन्हें ‘भारत का बिस्मार्क’ (जर्मन साम्राज्य का प्रथम चांसलर) भी कहा जाता है। देश की एकता के प्रतीक सरदार पटेल का हमारे अग्रणी राष्ट्र निर्माताओं में उच्च स्थान है और अपनी नीतियों के प्रति अडिग रहने के कारण ही उन्हें लौहपुरुष की उपाधि दी गई थी।
सरदार पटेल ने लंदन से वकालत की पढ़ाई पूरी कर अहमदाबाद में प्रैक्टिस शुरू की थी। वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से अत्यधिक प्रेरित हुए और इसीलिए उन्होंने गांधी जी के साथ भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में हिस्सा लिया। वे भाई-भतीजावाद की राजनीति के सख्त खिलाफ थे और ईमानदारी के ऐसे पर्याय थे कि उनके देहांत के बाद जब उनकी सम्पत्ति के बारे में जानकारियां जुटाई गई तो पता चला कि उनकी निजी सम्पत्ति के नाम पर उनके पास कुछ नहीं था। वह जो भी कार्य करते थे, पूरी ईमानदारी, समर्पण, निष्ठा और हिम्मत से साथ पूरा किया करते थे। उनके जीवन से जुड़े कई ऐसे प्रसंग सामने आते हैं, जो इस महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कुशल प्रशासक के जीवन को समझने में सहायक हैं।
सरदार पटेल अन्याय सहन करने के सख्त खिलाफ थे और वे स्वयं भी बचपन से ही अन्याय के खिलाफ पुरजोर आवाज उठाते थे। बताया जाता है कि उनके स्कूल के अध्यापक पुस्तकों का व्यापार किया करते थे और बच्चों को स्कूल से ही किताबें खरीदने के लिए बाध्य करते थे, जिसका विरोध सरदार पटेल ने किया था।
एक किसान परिवार में जन्मे वल्लभ भाई पटेल जब छोटे थे, तब अपने पिताजी के साथ खेत पर जाया करते थे। एक दिन जब उनके पिताजी खेत में हल चला रहे थे तो वल्लभ भाई पटेल उन्हीं के साथ चलते-चलते पहाड़े याद कर रहे थे। उसी दौरान उनके पांव में एक बड़ा सा कांटा चुभ गया किन्तु वे हल के पीछे चलते हुए पहाड़े कंठस्थ करने में इस कदर लीन हो गए कि उन पर कांटा चुभने का कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा। जब एकाएक उनके पिताजी की नजर उनके पांव में घुसे बड़े से कांटे और बहते खून पर पड़ी तो उन्होंने घबराते हुए बैलों को रोका और बेटे वल्लभ भाई के पैर से कांटा निकालते हुए घाव पर पत्ते लगाकर खून बहने से रोका। बेटे की यह एकाग्रता और तन्मयता देखकर वे बहुत खुश हुए और जीवन में कुछ बड़ा कार्य करने का आशीर्वाद दिया।
वल्लभ भाई पटेल वकालत की पढ़ाई करने के लिए सन् 1905 में इंग्लैंड जाना चाहते थे लेकिन पोस्टमैन ने उनका पासपोर्ट और टिकट उनके भाई विठ्ठल भाई पटेल को सौंप दिए। दोनों भाईयों का शुरूआती नाम वी.जे. पटेल था, ऐसे में बड़ा होने के नाते उस समय विट्ठल भाई ने स्वयं इंग्लैंड जाने का निर्णय लिया। वल्लभ भाई पटेल ने बड़े भाई के निर्णय का सम्मान करते हुए न केवल बड़े भाई को अपना पासपोर्ट और टिकट दे दिया बल्कि इंग्लैंड में रहने के लिए उन्हें कुछ धनराशि भी भेजी।
सरदार पटेल का जीवन अत्यंत सादगीपूर्ण था और उनका स्वभाव भी बेहद सहज तथा नम्र था। सरदार पटेल उन दिनों भारतीय लेजिस्लेटिव असेंबली के अध्यक्ष थे। असेंबली के कार्यों से निवृत्त होकर एक दिन जब वे घर के लिए निकल ही रहे थे, तभी एक अंग्रेज दम्पत्ति वहां पहुंचा, जो विदेश से भारत घूमने के लिए आया था। सरदार पटेल सादे वस्त्रों में रहते थे और उन दिनों उनकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी। अंग्रेज दम्पत्ति ने इस वेश में देखकर उन्हें वहां का चपरासी समझ लिया और असेंबली में घुमाने के लिए कहा। सरदार पटेल ने बड़ी ही विनम्रता से उनका यह आग्रह स्वीकार करते हुए उन्हें पूरे असेंबली भवन में घुमाया। इससे खुश होकर दम्पति ने सरदार पटेल को बख्शीश में एक रुपया देने का प्रयास किया लेकिन सरदार पटेल ने अपनी पहचान उजागर न करते हुए विनम्रतापूर्वक लेने से इन्कार कर दिया।
अगले दिन जब असेंबली की बैठक हुई तो वह अंग्रेज दम्पत्ति लेजिस्लेटिव असेंबली की कार्रवाई देखने के लिए दर्शक दीर्घा में पहुंचा और सभापति के आसन पर बढ़ी हुई दाढ़ी तथा सादे वस्त्रों वाले उसी शख्स को देखकर दंग रह गया। वह मन ही मन ग्लानि से भर उठा कि जिस शख्स को चपरासी समझकर उन्होंने उसे असेंबली घुमाने के लिए कहा, वो कोई और नहीं बल्कि स्वयं इस असेंबली के अध्यक्ष हैं। अंग्रेज दम्पत्ति सरदार पटेल की सादगी, सहज स्वभाव और नम्रता का कायल हो गया और उसने असेंबली की कार्रवाई के बाद सरदार पटेल से क्षमायाचना की। एकीकृत भारत की निर्माता यह महान् शख्सियत 15 दिसम्बर 1950 को चिरनिद्रा में लीन हो गई।
उन्हें मरणोपरांत 1991 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया गया था। बहरहाल, मातृभूमि के लिए सरदार पटेल का समर्पण, निष्ठा, संघर्ष और त्याग प्रत्येक भारतवासी को राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता के लिए स्वयं को समर्पित करने की प्रेरणा देता है। अखण्ड भारत के महान शिल्पी सरदार पटेल का जीवन हमें बताता है कि कैसे एक व्यक्ति अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति, लौह नेतृत्व और अदम्य राष्ट्रप्रेम से देश के भीतर की सभी विविधताओं को एकता में बदलकर एक अखण्ड राष्ट्र का स्वरूप दे सकता है।
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