अभी यह कहना दूर की कौड़ी होगी कि भारतीय विमान सेवाएं रूस का यह प्रस्ताव स्वीकार कर ही लेंगी। वजह भारतीय विमान कंपनियों की यह शंका है कि उन्होंने जिन कंपनियों से अपने विमान पट्टे पर ले रखे हैं, कंपनियां रूस पर पश्चिमी देशों के कड़े प्रतिबंधों के चलते शायद इस प्रस्ताव पर सहमत न हों।
ताजा जानकारी के अनुसार, रूस ने अपनी घरेलू विमान सेवाओं के लिए भारत से मदद मांगी है। बताया जा रहा है कि रूस ने भारत के साथ ही मध्य एशिया के अन्य देशों और ‘मित्र’ देशों से कहा हे कि वे रूस में घरेलू उड़ानें संचालित करने में मदद करें। बता दें कि रूस—यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी प्रतिबंधों से मास्को प्रभावित हुआ है। इसी वजह से पैदा हुई विमानों की कमी और दूसरी तरफ मांग के बढ़ते जाने को देखते हुए रूस ने यह रास्ता अपनाने का सोचा है।
रूस और यूक्रेन के बीच पिछले करीब ढाई वर्ष से ज्यादा समय से युद्ध दिड़ा है जिसके मंद पड़ने के आसार आज भी नजर नहीं आ रहे हैं। इस वजह से पश्चिमी देशों ने रूस पर इतने अधिक प्रतिबंध लगाए हैं कि रूस के लिए अपनी विमानन सेवाओं को सुचारु रखने में निश्चित ही समस्याएं आ रही हैं। रूसी एयरलाइन्स विमानों की कथित कमी का सामना कर रही हैं। उनके लिए हवाई यात्रा की बढ़ती मांग को पूरा करना बेहद मुश्किल हो रहा है।
कई रिपोर्ट बताती हैं कि मास्को इसी कमी की पूर्ति के लिए ‘दोस्तों’ की तरफ मुड़ा है और उनसे कहा है कि उसकी घरेलू उड़ानें सुचारू रखने में मदद करें। इसमें सबसे पहले भारत का नाम है। बताते हैं, रूस ने इस संबंध में भारतीय विमान सेवा प्रदाता कंपनियों से चर्चा भी चलाई है। पता चला है कि इस चर्चा में ‘कैबोटेज’ प्रस्ताव का नाम भी सुनाई दिया है। ‘कैबोटेज’ के मायने हैं कोई विदेशी विमान सेवा किसी दूसरे देश में वहां की घरेलू सेवाओं की उड़ानें संचालित करे।
रिपोर्ट आगे बताती हैं कि पिछले महीने चीन तथा कुछ मध्य एशियाई देशों में यह प्रस्ताव चर्चा में लाया गया था। गत दिनों रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा के वक्त भी यह प्रस्ताव चर्चा में आया था।
लेकिन, अभी यह कहना दूर की कौड़ी होगी कि भारतीय विमान सेवाएं रूस का यह प्रस्ताव स्वीकार कर ही लेंगी। वजह भारतीय विमान कंपनियों की यह शंका है कि उन्होंने जिन कंपनियों से अपने विमान पट्टे पर ले रखे हैं, कंपनियां रूस पर पश्चिमी देशों के कड़े प्रतिबंधों के चलते शायद इस प्रस्ताव पर सहमत न हों।
सच तो यह है कि भारत की विमान कंपनियां अपने देश में ही परिचालन पर भारी दबाव झेल रही हैं, उनके पास विमान भी कम हैं। वे अपने यहां ही विमान बढ़ाने में दिक्कत महूसस कर रही हैं, बाहर की सेवाएं वे कैसे संभाल पाएंगी, इसे लेकर भी संशय बना हुआ है।
भारत की विमान कंपनियों को डर यह भी है कि अगर वे रूस में सेवाएं देती हैं तो कहीं पट्टे पर विमान देने वाली कंपनियों को नाराज करने से उनका बीमा कवर न खो जाए। ऐसे में रूस के प्रस्ताव को कहां तक कामयाबी मिलेगी, कहना मुश्किल है। रूस ने संभवत: उज्बेकिस्तान और कजाकिस्तान से भी इस प्रस्ताव पर बात की है। इस माह के शुरू में रूस के परिवहन मंत्री रोमन स्टारोवोइट ने कहा भी था कि मॉस्को घरेलू उड़ानें संचालित करने के लिए ‘मित्र’ देशों के संपर्क बनाए हुए है।
इस संदर्भ में कजाकिस्तान के परिवहन विभाग ने पिछले सप्ताह कहा था कि वैसे अभी तक इस मुद्दे पर रूस की तरफ से कोई आधिकारिक अनुरोध तो नहीं किया गया है। अभी तो वह देश अपनी ही बढ़ती घरेलू मांग की पूर्ति करने पर गौर कर रहा है। करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इस दृष्टि से वह देश भी रूस को कितना संतुष्ट कर पाएगा, कहा नहीं जा सकता।
दिलचस्प बात है कि रूस की विमानन सेवाओं के बेड़े में कई पश्चिमी विमान शामिल हैं। फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला बोलने से पहले, रूस की विमान सेवाओं में बोइंग और एयरबस विमानों की अच्छी—खासी संख्या थी। लेकिन प्रतिबंधों के बाद, पश्चिमी देशों की इन कंपनियों ने रूसी एयरलाइंस को विमानों की आपूर्ति रोक दी है, साथ ही उनकी साथी कंपनियों ने सॉफ़्टवेयर तक रूस की पहुंच बंद कर दी है।
एक आंकड़े के अनुसार, यूक्रेन युद्ध से पहले, रूसी एयरलाइंस के पास 850 विमानों का विशााल बेड़ा था। लेकिन 2023 की शुरुआत तक यह आंकड़ा गिरकर 736 रह गया था। अंदाजा लगाया गया है कि पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण 2026 तक यह बेड़ा आधा रह सकता है। हालांकि रूस ने अपनी विमानसेवाओं के लिए 2030 तक 1,000 विमान अपने ही देश में बनाने की योजना बनाई हुई है। लेकिन उत्पादन में लगातार देर होती रहती है।
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