कहा जाता है कि समान सोच और एक-दूसरे से सहयोग करने की भावना के साथ चलने से हर प्रकार की सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। कुछ ऐसा ही हो रहा है दिल्ली के मटियाला गांव में रह रहे सोलंकी परिवार के साथ। इसमें 11 पुरुष, 10 महिलाएं और 16 बच्चे हैं। ये सभी एक ही छत के नीचे बने 33 कमरों के मकान में रहते हैं।
इनका चूल्हा एक है। घर की महिलाएं साथ मिलकर भोजन बनाती हैं। यह परिवार सतबीर सोलंकी, महेश सोलंकी, आनंद सोलंकी, दिनेश सोलंकी और स्व. हरिओम सोलंकी का है। इन भाइयों के कुल सात पुत्र हैं। ये सभी अपना ही काम करते हैं। कोई भवन निर्माण की सामग्री बेचता है, कोई विद्यालय चलाता है तो कोई परिवार की देखभाल
करता है।
आनंद सोलंकी बताते हैं, ‘‘परिवार के लोग जो भी कमाई करते हैं, वह परिवार के मुखिया को देते हैं। और जब जिसको जिस चीज की जरूरत होती है, उस पर सभी मिलकर निर्णय लेते हैं और उसकी जरूरतें पूरी कर दी जाती हैं।’’
परिवार के मुखिया सतबीर सोलंकी कहते हैं, ‘‘सभी के साथ रहने से परिवार समृद्ध हुआ है। यदि साथ नहीं रहते तो शायद आज हम लोग जहां हैं, वहां नहीं पहुंच पाते। घर के बच्चों की अच्छी शिक्षा मिल रही है। एक बिटिया एम.बी.बी.एस. कर रही है, तो दूसरी एम.सी.ए. कर रही है। बाकी बच्चे भी अच्छी तरह पढ़ रहे हैं।’’
उल्लेखनीय है कि यह परिवार पहले पांच एकड़ जमीन पर खेती करके गुजारा करता था। बाद में द्वारका उपनगरी बसने लगी तो इनकी जमीन सरकार ने ले ली। इसके बाद सभी भाई अलग-अलग काम करने लगे। इसी से गुजारा होने लगा। बाद में सभी भाइयों ने तय किया कि सभी को समान अवसर मिले इसलिए आपस में संपत्ति का बंटवारा नहीं करना है।
इससे यह हुआ कि जो भाई थोड़ा पीछे छूट रहा था, वह भी आगे बढ़ गया। उसके बच्चों को भी अच्छी शिक्षा मिल रही है। परिवार के एक युवा सदस्य सोनू सोलंकी बताते हैं, ‘‘हम सात भाइयों में से छह का विवाह हो चुका है। मजेदार बात यह है कि जितनी भी बहुएं आई हैं, वे सभी संयुक्त परिवार की हैं। यानी वे संयुक्त परिवार के महत्व को समझती हैं। इसलिए यहां भी सामंजस्य बैठा लेती हैं। यही कारण है कि आज 37 सदस्य एक साथ रह रहे हैं।’’
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