विश्लेषण

पुरुष से महिला बनी ट्रांस वुमन ने छीनीं महिलाओं से जीत और मेडल्स: लगभग 900 मेडल्स छिन गए महिला खिलाड़ियों से

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सोनाली मिश्रा

इन दिनों डायवर्सिटी के नाम पर उन ट्रांस-पहचान को सामान्य बनाने पर जोर दिया जा रहा है। ये ट्रांस पहचान और कुछ नहीं बल्कि महिलाओं के साथ शोषण के रूप में उभर कर आई है। कई वर्षों से यह बहस हो रही थी कि महिला पहचान मानने वाले पुरुष, जैविक महिलाओं का अधिकार छीन रहे हैं।

कई महिला खिलाड़ियों ने बार-बार इसका विरोध किया था। मगर अब यूएन की Violence against women and girls, its causes and consequences रिपोर्ट में खेलकूद की प्रतिस्पर्धाओं में महिलाओं के साथ हो रहे अन्याय और हिंसा के मामलों को बताया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि खेल-कूद में महिलाओं और लड़कियों को हर स्तर पर कई प्रकार की हिंसा का सामना करना पड़ता है।

इसमें इन बातों पर चिंता जताई गई है कि जब केवल महिलाओं के लिए जो खेल हैं, उनमें महिलाओं की टीम में जब पुरुषों को सम्मिलित कर लिया जाता है और फिर उनके साथ शारीरिक हिंसा होती है। इसमें वालीबॉल, बास्केटबाल और फुटबॉल जैसे खेल सम्मिलित हैं। कई संस्थाओं द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर यह कहा गया है कि ट्रांस-वुमन खिलाड़ी, अर्थात शरीर से पुरुष और मन से महिला, (हार्मोनल उपचारों या सर्जरी द्वारा महिला बनकर) खिलाड़ियों ने महिला खिलाड़ियों को चोटिल किया है। बोस्टन ने मार्च में ऐसा ही एक मामला आया था जब एक ट्रांस वुमन खिलाड़ी ने एक जैविक लड़की खिलाड़ी को खींच कर गिरा दिया था।

इस वीडियो के सामने आने पर एक बार फिर से यह बहस तेज हुई थी कि महिलाओं की खेलकूद की प्रतिस्पर्धाओं में उनके साथ जैविक महिलाएं ही रहें, ट्रांस-महिलाएं नहीं। महिलाओं के साथ खेलकूद में हिंसा पर इस रिपोर्ट में भी इस तथ्य को इंगित किया गया है कि कैसे लड़कियां इन नई बनी लड़कियों के हाथों घायल हो रही हैं? इस रिपोर्ट में लिखा है कि “वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, खेलों में पुरुषों को कुछ प्रदर्शन के लाभ होते हैं। एक अध्ययन में दावा किया गया है कि गैर-कुलीन खेलों में भी, “सबसे कम शक्तिशाली पुरुष सबसे शक्तिशाली महिला की तुलना में अधिक शक्ति पैदा करता है” और कहा गया है कि, जहां पुरुषों और महिलाओं की फिटनेस का स्तर लगभग समान है, पुरुषों की औसत पंचिंग शक्ति महिलाओं की तुलना में 162 प्रतिशत अधिक मापी गई है।“

पेरिस ओलंपिक्स में भी उठा था यह विषय

इस रिपोर्ट में भी कुछ फेडरेशन की नीतियों के विषय में प्रश्न उठाए गए हैं। इसमें कहा गया है कि कुछ मामलों में उन पुरुषों को भी महिला श्रेणी में खेलने के लिए अनुमत किया जाता है, जो खुद को महिला मानते हैं या फिर महिला बन जाते हैं। “अंतर्राष्ट्रीय महासंघों और राष्ट्रीय शासी निकायों द्वारा क्रियान्वित की गई नीतियों और साथ ही कुछ देशों में राष्ट्रीय कानून के द्वारा उन पुरुषों को महिला खेल श्रेणियों में प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति दी गई है जो खुद को महिला के रूप में पहचानते हैं। अन्य मामलों में, इस प्रथा पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध नहीं है और इसलिए इसे व्यवहार में बर्दाश्त किया जाता है।“

और साथ ही रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि महिला श्रेणी को मिश्रित श्रेणी में बदलना महिला खिलाड़ियों के लिए हानिकारक है। इसमें लिखा है कि इससे मेडल्स पर भी असर पड़ा है। इस रिपोर्ट में लिखा है, “महिला खेल श्रेणी को मिश्रित-लिंग श्रेणी से बदलने के परिणामस्वरूप, पुरुषों के साथ प्रतिस्पर्धा करते समय पदक सहित अवसरों को खोने वाली महिला एथलीटों की संख्या में वृद्धि हुई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, 30 मार्च 2024 तक, 29 विभिन्न खेलों में 400 से अधिक प्रतियोगिताओं में 600 से अधिक महिला एथलीटों ने 890 से अधिक पदक खो दिए हैं।“

उसके बाद यह भी लिखा है कि पुरुष खिलाड़ियों को कुछ खेलों में अपनी शारीरिक स्थिति का फायदा मिलता है और इसके कारण महिला खिलाड़ियों के साथ अन्याय होता है। यह रिपोर्ट कहती है कि “आनुवंशिक रूप से पुरुष एथलीटों के लिए फार्मास्युटिकल टेस्टोस्टेरोन सप्रेशन से भी पुरुषों को होने वाले लाभों में कमी नहीं आएगी फिर चाहे वे खुद को किसी भी रूप में पहचाने जाएं।“ इस अध्ययन में महिला खिलाड़ियों के सामने आने वाली तमाम चुनौतियों और खतरों के विषय में बताया गया है और यह भी कहा गया है कि ट्रांस-वुमन का महिला खिलाड़ियों के साथ खेलना महिलाओं के साथ धोखा है। इस रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया गया है कि उन प्रतिस्पर्धाओं की आवश्यकता है जो केवल उन्हीं व्यक्तियों के लिए उपलब्ध हों, जिनकी जैविक यौनिक पहचान महिला है।

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