भारत

जानें हींग कैसे बनती है, भारत में कैसे आई और इसकी महंगाई के कारण

भारत की रसोई में हींग का उपयोग एक अनिवार्य मसाले के रूप में किया जाता है। इसका एक चुटकी इस्तेमाल तड़का, दाल, सब्ज़ियों और अन्य व्यंजनों में किया जाता है, जिससे खाने का स्वाद दोगुना हो जाता है।

Published by
Mahak Singh

भारत की रसोई में हींग का उपयोग एक अनिवार्य मसाले के रूप में किया जाता है। इसका एक चुटकी इस्तेमाल तड़का, दाल, सब्ज़ियों और अन्य व्यंजनों में किया जाता है, जिससे खाने का स्वाद दोगुना हो जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह विशेष मसाला कैसे बनता है, किस पौधे से तैयार होता है, और क्यों इसकी कीमत इतनी अधिक होती है? आइए जानते हैं हींग की पूरी कहानी।

हींग कैसे बनती है?

हींग का उत्पादन फेरुला एसाफोइटीडा नामक पौधे से किया जाता है, जो जंगली सौंफ की प्रजाति है। यह पौधा लगभग 1 से 1.5 मीटर लंबा होता है। इस पौधे की जड़ से एक चिपचिपा तरल पदार्थ निकलता है, जिसे इकट्ठा करके प्रोसेस किया जाता है। कच्ची हींग की खुशबू बहुत तीखी होती है और इसे सीधे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसलिए इसे प्रोसेस किया जाता है, जिसमें चावल का आटा, गोंद, स्टार्च, और अन्य सामग्री मिलाई जाती है। फिर इस मिश्रण को हाथ या मशीन से गोल या पाउडर के आकार में तैयार किया जाता है।

भारत में हींग का आगमन

हींग की उत्पत्ति पश्चिमी एशिया, विशेषकर ईरान और इसके आसपास के क्षेत्रों में मानी जाती है। भारतीय उपमहाद्वीप में हींग का आगमन मुगलों के साथ हुआ, जिन्होंने इसे अपने साथ लाया। हालांकि, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इससे पहले भी कई जनजातियाँ और कबीले हींग के साथ भारत आया करते थे। इस प्रकार, हींग धीरे-धीरे भारत के विभिन्न हिस्सों में फैल गई।

हींग की महंगाई का कारण-

हींग को सबसे महंगे मसालों में गिना जाता है। इसकी महंगाई के पीछे कई कारण हैं-

खेती की कठिनाई-

हींग की फसल को तैयार होने में लगभग 4 से 5 साल का समय लगता है।

उपज की कमी-

एक ही पौधे से सिर्फ आधा किलो हींग प्राप्त होती है, जिससे इसकी उपलब्धता सीमित हो जाती है।

प्रोसेसिंग की लागत-

हींग की प्रोसेसिंग में समय और संसाधन लगता है, जो इसकी कीमत को बढ़ाता है।

शुद्धता-

हींग की कीमत इस बात पर भी निर्भर करती है कि उसमें प्रोसेसिंग के दौरान क्या मिलाया गया है। कम मिलावट वाली शुद्ध हींग महंगी होती है।

Share
Leave a Comment