भारत के हृदय स्थल में स्थित त्रिपुरी के महान कलचुरि वंश का 13वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अवसान हो गया था। सीमावर्ती शक्तियां इस क्षेत्र को अपने अधीन करने के लिए लालायित थीं। अंततः इस संक्रांति काल में एक वीर योद्धा जादो राय (यदु राय) ने तिलवाराघाट निवासी एक ब्राह्मण सन्यासी सुरभि पाठक के भगीरथ प्रयास से त्रिपुरी क्षेत्र के अंतर्गत गढ़ा कटंगा क्षेत्र में गोंड वंश की नींव रखी। यही आगे चलकर गढ़ा मंडला के साम्राज्य के रूप में सुविख्यात हुआ। यह उपाख्यान चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य की याद दिलाता है कि वर्ण व्यवस्था कर्म से निर्धारित होती है। कालांतर में यह साम्राज्य महान् गोंडवाना साम्राज्य के नाम से जाना गया।
अधिकांश गोंड राजाओं के मंत्री ब्राम्हण ही हुए हैं जो इस बात का प्रमाण है कि धर्म, वर्ण और जाति को लेकर भारत में कभी किसी प्रकार का वैमनस्य नहीं रहा। जिसे प्रकारांतर से अंग्रेजों और वामपंथियों के साथ परजीवी इतिहासकारों ने फैलाया है। रामनगर प्रशस्ति के अनुसार गोंड राजाओं की वंशावली में 53 राजाओं के नाम मिलते हैं। इस प्रशस्ति के लेखक राजकवि और पंडित जय गोविंद हैं, इसके अनुसार 34 वीं पीढ़ी में मदन सिंह(मदन शाह) का नाम आता है और यहीं से स्व की भावना से अभिप्रेत होकर गोंडवाना साम्राज्य का वास्तविक उत्कर्ष शुरू होता है।
मदन सिंह ने गढ़ा कटंगा के अंतर्गत मदन महल की पहाड़ियों की अनगढ़ चट्टानों पर एक सुदृढ़ किले का निर्माण कराया, जिसे मदन महल का किला कहा जाता है। यह किला विश्व का सबसे छोटा परंतु सुरक्षित और सभी व्यवस्थाओं से परिपूर्ण अभेद्य किला माना जाता है। राजा मदन सिंह ने गोंडवाना साम्राज्य की सीमाओं को विस्तार देना शुरू किया। मालवा के महाराजा महालक्ष देव (महलक देव) से मैत्री स्थापित की।
राजा महलक देव ने मांगी मदद
सन् 1290 में जब कड़ा और मानिकपुर के सूबेदार अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा पर आक्रमण करने की योजना बनाई। राजा महलक देव ने राजा मदन सिंह से सहायता मांगी, तब मदन सिंह ने अपने मंत्री विभूति पाठक से परामर्श कर सहायता करने का वचन दिया। महालक्ष देव (महलक देव) चाहते थे कि अलाउद्दीन खिलजी को रास्ते में ही रोक लिया जाए ताकि उन्हें युद्ध की तैयारी का समय मिल जाए। मालवा के मंत्री हरनंद (कोका) को मदन सिंह ने संदेश भेजा और गोंडी सेना को लेकर धसान नदी के किनारे डेरा डाल दिया। वर्षा काल का समय था, अलाउद्दीन खिलजी की सेना जैसे ही नदी पार करने लगी और कुछ सेना नदी के बीच में थी तभी गोंडी सेना ने छापामार युद्ध शैली में जहरीले तीरों, अग्निबाण और लुकेत सांपों के बाणों से हमला बोल दिया। अचानक हमले से अलाउद्दीन खिलजी की सेना में खलबली मच गई। उसकी नावें डुबो दी गईं और उसके शस्त्रागार में आग लगा दी गई। कुछ ही घंटे में अलाउद्दीन खिलजी पराजित हुआ, और पुन: कड़ा और मानिकपुर लौट गया। इस प्रकार गोंडवाना सेना की विजय हुई और मालवा नरेश महालक्ष देव ने राजा मदन सिंह के प्रति आभार व्यक्त किया।
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जब हारा अलाउद्दीन खिलजी
अलाउद्दीन खिलजी ने कुपित होकर अचानक गोंडवाना साम्राज्य पर हमला किया। राजा प्रारंभ में पराजित होकर भानतलैया स्थित बड़ी खेरमाई की शिला के पास बैठ गए, जहाँ उन्हें आध्यात्मिक अनुभूति हुई, पूजा के बाद उनमें अद्भुत शक्ति का संचार हुआ और मदन शाह ने पुनः तुर्क सेना पर आक्रमण कर अलाउद्दीन खिलजी को परास्त कर खदेड़ दिया। इसलिए जब अलाउद्दीन खिलजी सुल्तान बना तब भी उसने गोंडवाना पर आक्रमण करने का साहस न किया।
राजा अमान दास ने शाह की उपाधि धारण की
मदन सिंह के उपरांत क्रमशः उग्रसेन, ताराचंद्र(रामकृष्ण) , ताराचंद, उदय सिंह, मान सिंह, भवानीदास, शिवसिंह, हरनारायण, सबलसिंह, राजसिंह, दादीराय ,गोरखदास (जबलपुर अंतर्गत गोरखपुर बसाया) अर्जुन दास (अर्जुन सिंह) और उसके उपरांत 48 वीं पीढ़ी में अमान दास का जन्म हुआ। अमान दास बाल्यकाल से ही पराक्रमी थे और युवा अवस्था तक आते-आते उन्होंने बृहत् गोंड राज्य की नींव डाली। आगे चलकर अमान दास ने मालवा के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी को पराजित कर शाह की उपाधि धारण की और संग्राम शाह के नाम से प्रसिद्ध हुए।
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