राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : गौरवमयी शताब्दी यात्रा में 'पंच-परिवर्तन' से राष्ट्रीय पुनर्निर्माण
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : गौरवमयी शताब्दी यात्रा में ‘पंच-परिवर्तन’ से राष्ट्रीय पुनर्निर्माण

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यात्रा तमाम चुनौतियों और झंझावातों से भरी रही है, लेकिन संघ ने हमेशा अपने मूल्यों और लक्ष्यों को कायम रखा। अब 100वें वर्ष की यात्रा में संघ अपने 'पंच-परिवर्तन' के लक्ष्यों के साथ समाज को नई दिशा देने के लिए प्रतिबद्ध है।

by केशव शर्मा
Oct 25, 2024, 11:52 pm IST
in मत अभिमत
प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

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नागपुर में डॉक्टर हेडगेवार के घर “सुक्रवारी” से प्रारंभ हुआ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अपने 99 वर्षों की गौरवशाली यात्रा पूरी कर विजयादशमी के अवसर पर 100वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। यह संगठन जिसने भारतीय समाज में स्वतंत्रता, समरसता और चेतना जागरण का बीड़ा उठाया, अब अपने ‘पंच-परिवर्तन’ के लक्ष्यों के साथ समाज को नई दिशा देने के लिए प्रतिबद्ध है।

संघ की शुरुआत और उद्देश्य

संघ ने अपनी औपचारिक शुरुआत नागपुर में डॉक्टर हेडगेवार के नेतृत्व में की। उस समय का औपनिवेशिक समाज स्वतंत्रता की लड़ाई में संघर्षरत था और इसी बीच संघ ने समरसता और समाज की एकजुटता का संदेश दिया। संघ का मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त कुरीतियों का निराकरण करते हुए राष्ट्र प्रथम की भावना को बढ़ावा देना था। संघ ने स्वतंत्रता के बाद भी समाज में अपनी अहम भूमिका निभाते हुए भारतीय नागरिकों में राष्ट्रप्रेम और समर्पण का भाव जगाया।

शताब्दी वर्ष और पंच-परिवर्तन की दिशा

सितंबर में आयोजित अखिल भारतीय समन्वय बैठक में संघ ने अपने शताब्दी वर्ष के लक्ष्यों का खुलासा किया, जिनमें ‘पंच-परिवर्तन’ पर विशेष जोर दिया गया है। ये पांच परिवर्तन भारतीय समाज को अगले कुछ वर्षों में दिशा देने वाले हैं:

  • सामाजिक समरसता : समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सौहार्द और प्रेम बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित।
  • कुटुम्ब प्रबोधन : परिवार को राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली इकाई के रूप में संवर्धित करना।
  • पर्यावरण संरक्षण : पृथ्वी को माता मानकर पर्यावरण संरक्षण हेतु जीवनशैली में बदलाव।
  • स्वदेशी और आत्मनिर्भरता : देश की स्वदेशी अर्थव्यवस्था और आत्मनिर्भरता पर जोर।
  • नागरिक कर्तव्य : प्रत्येक नागरिक का सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वहन और राष्ट्रहित में योगदान।

विजयादशमी के अवसर पर संघचालक का संदेश

विजयादशमी के पावन अवसर पर संघचालक मोहन भागवत ने ‘पंच-परिवर्तन’ पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला और यह बताया कि यह परिवर्तन भारतीय समाज की दिशा और दशा को आने वाले समय में निर्धारित करने वाले हैं। उन्होंने समाज में समरसता और एकजुटता को बढ़ावा देने के संघ के प्रयासों पर भी जोर दिया।

संघ की शाखाओं और सामाजिक कार्यक्रमों का महत्व

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दैनिक शाखाओं ने स्वयंसेवकों में न केवल सौहार्द और प्रेम का भाव जगाया, बल्कि मजबूत नेतृत्व और कौशल क्षमता जैसे गुणों का भी विकास किया। संघ की शाखाओं से निकले कई स्वयंसेवक आज राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण नेतृत्व कर रहे हैं। संघ समय-समय पर समाज में बंधुत्व और सामाजिक सौहार्द बढ़ाने हेतु साल भर चलने वाले कार्यक्रमों का आयोजन करता है। इन कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करना और उन्हें राष्ट्र की सेवा में योगदान देने के लिए प्रेरित करना है।

स्वतंत्रता के बाद संघ की भूमिका

स्वतंत्रता के बाद संघ ने पर्दे के पीछे एक मजबूत स्तंभ के रूप में काम करते हुए भारतीय समाज के विभिन्न अवयवों को एकत्रित किया। संघ ने नागरिकों में ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना को प्रबल किया और समाज में वैमनस्य को खत्म करने का प्रयास किया। संघ ने अपने मूल वैचारिक अधिष्ठान से कभी समझौता नहीं किया और सदैव सामाजिक सौहार्द की दिशा में कार्य किया। आज, संघ अपनी अनवरत यात्रा में 100 वर्षों का मील का पत्थर पार कर एक नई ऊंचाई पर पहुंच रहा है।

भारतीय समाज में संघ की अनवरत यात्रा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यात्रा तमाम चुनौतियों और झंझावातों से भरी रही है, लेकिन संघ ने हमेशा अपने मूल्यों और लक्ष्यों को कायम रखा। संघ का यह अनवरत प्रयास समाज को एकजुट करने और राष्ट्र के विकास में योगदान देने के लिए प्रेरित करता रहा है। ‘पंच-परिवर्तन’ के लक्ष्यों के साथ संघ का यह प्रयास निश्चित रूप से भारतीय समाज की दिशा और दशा को नया मोड़ देने वाला साबित होगा।

(युवा लेखक केन्द्रीय विश्वविद्यालय गुजरात से अन्तर्राष्ट्रीय सबंध में स्नातकोत्तर हैं और पत्र पत्रिकाओं में सम सामयिक विषयों पर लेखन का कार्य करते हैं )

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