1 फरवरी 2024, एक ऐसे मामले को लेकर न्यायालय आधी रात खुला, जिसमें हिंदुओं ने सैकड़ों वर्षों तक प्रतीक्षा की। यह किसी हत्या या किसी फांसी का मामला नहीं है, बल्कि यह आस्था का मामला था। एक ओर थी इतिहास और आस्था की अर्जी तो दूसरी ओर यह हठ कि इतिहास और वर्तमान न्याय व्यवस्था में से किसी को भी नहीं मानना है। हिंदुओं के सबसे बड़े आराध्य महादेव की नगरी काशी में बाबा के भक्त अपने बाबा के मूल रूप की प्रतीक्षा कर रहे हैं और साथ ही उन स्थानों पर पूजा के लिए भी न्यायालय गए थे, जहां पर हाल तक ही पूजा करते आ रहे थे।
व्यास तहखाने में पूजा की अनुमति के अधिकार को चुनौती देने के लिए मुस्लिम पक्ष रात को तीन बने न्यायालय गया था। ऐसा नहीं था कि मुस्लिम पक्ष की याचिका पर पहली बार न्यायालय आधी रात को बैठा था। ऐसे और भी अवसर आए हैं, जब न्याय के मंदिर में आधी रात तक सुनवाई हुई है। आतंकवादी याकूब मेनन की फांसी रुकवाने के लिए भी आधी रात को न्यायालय में याचिका दायर की गई थी और उस पर भी सुनवाई हुई थी। भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के दोषी और पाकिस्तानी नागरिक अजमल कसाब को भी सुनवाई के तमाम अवसर दिए गए थे और सर्वोच्च न्यायालय ने देश के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का दोषी माना था और उसके बाद ही उसे फांसी दी गई थी।
याकूब मेनन जहां मुंबई में हुए बम धमाकों का दोषी था, तो पाकिस्तानी अजमल कसाब ने अपने साथियों के साथ मुंबई को दहला दिया था। अनगिनत स्थानों पर अंधाधुंध गोलीबारी की थी, जिसमें 166 लोग मारे गए थे। ये तमाम उदाहरण भारत की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका के उदाहरणों में गिने जा सकते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं, जो यह बताते हैं कि भारत की न्यायपालिका स्वतंत्र रही है, जिसमें 12 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ आया निर्णय भी शामिल है। जिसके बाद देश ने आपातकाल झेला था।
परंतु भारत के प्रति या कहें नरेंद्र मोदी के विरुद्ध कुछ भी एजेंडा सेट करने वाला पश्चिमी मीडिया अब भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका पर केवल इस कारण प्रहार कर रहा है क्योंकि वह उनके एजेंडे के अनुसार निर्णय नहीं दे रहा है। जैसा कि सीजेआई चंद्रचूड़ ने पिछले ही दिनों कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय जनता का न्यायालय है, और उसके उसी चरित्र को बना रहने देना चाहिए। जनता का न्यायालय होने का अर्थ यह नहीं होता कि वह संसद में विपक्ष की भूमिका निभाए। मगर माननीय सीजेआई को यह भी कहना चाहिए था कि सर्वोच्च न्यायालय जनता का न्यायालय है, मगर इसका अर्थ यह नहीं है कि वह एजेंडा मीडिया की भाषा बोलने लगे, जनता का न्यायालय होने का अर्थ यह कतई नहीं है कि वह सरकार या हिंदुओं का विरोध करने वाली औपनिवेशिक मीडिया के भारत विरोधी एजेंडे को पालने लगे। सीजेआई सहित भारत की न्यायप्रिय जनता को भी यह नहीं पता होगा कि भारत विरोधी मीडिया भी केवल इस आधार पर उनपर हमले करेगी कि भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका औपनिवेशिक और कम्युनिस्ट मीडिया के एजेंडे के अनुसार निर्णय नहीं देती है।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने दिल्ली दंगों के मुख्य आरोपी उमर खालिद को लेकर एक लेख प्रकाशित किया है और जिसमें यही लिखा है कि उमर खालिद को इसलिए जेल में रखा हुआ है, क्योंकि उसने मोदी का विरोध किया था। एक प्रकार से उमर खालिद के तमाम अपराधों को मोदी विरोध के नाम पर दबाने की कुचेष्टा की गई है। यह बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि कैसे देश के खिलाफ साजिश रचने को भी मोदी विरोध तक सीमित कर दिया है।
दिल्ली दंगों में कितने लोग मारे गए थे, और कितने घायल हुए थे एवं साथ ही कितनी संपत्ति इस हैवानियत पर कुर्बान हो गई थी, यह आंकड़ों में दर्ज है। मगर फिर भी दिल्ली के बहाने पूरे देश को दहलाने की साजिश न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार केवल मोदी विरोध है। नागरिकता संशोधन अधिनियम, जिसमें भारतीय मुस्लिमों की कोई बात थी ही नहीं, बल्कि वह पड़ोसी देशों के गैर मुस्लिम नागरिकों को नागरिकता देने के लिए है। इस अधिनियम का विरोध करते हुए इस देश ने देखा था कि कैसे पूरे देश को बंधक बना लिया गया था और जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प वर्ष 2020 में भारत आए थे तो अंतर्राष्ट्रीय संदेश देने के लिए दिल्ली को दहलाया गया था।
उमर खालिद तब चर्चा में आया था जब वर्ष 2016 में संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी के खिलाफ जेएनयू में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। उसी में जेएनयूएसयू के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैया कुमार (जो अब कांग्रेस नेता है) और 7 अन्य स्टूडेंट्स के खिलाफ राष्ट्र्रद्रोह का केस दर्ज किया गया। वर्ष 2018 में भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा से जुड़ी एक एफआईआर में भी उमर खालिद का नाम था और उस पर यह आरोप था कि उसके भाषणों के कारण दो समुदायों मे नफरत फैली है। उमर खालिद पर यह आरोप है कि उसने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान नागरिकों से बाहर निकलकर सड़कें ब्लॉक करने को कहा ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोपेगेंडा फैलाया जा सके।
उमर खालिद को यूएपीए में गिरफ्तार किया गया है। पुलिस के अनुसार उमर खालिद ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के दौरे के समय चक्का जाम की योजना बनाई थी। उमर खालिद की जमानत को लेकर बार-बार याचिकाएं दायर की जा रही हैं और वे खारिज भी हो रही हैं। ऐसे में न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा एक पूरा प्रोपोगेंडा लेख लिखना और यह साबित करने की कुचेष्टा करना कि मोदी के प्रति व्यक्त असंतोष के कारण उमर खालिद को जेल में रखा जा रहा है, मोदी विरोधी एजेंडे के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। न्यूयॉर्क टाइम्स का भारत विरोधी रुख भी जगजाहिर है।
मंगल मिशन पर कार्टून भी याद है
वर्ष 2023 में सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने न्यूयॉर्क टाइम्स पर भारत के विषय में झूठ फैलाने का आरोप लगाया था। उन्होनें कश्मीर मे प्रेस कई स्वतंत्रता पर उसमें प्रकाशित एक एजेंडा ओपिनियन को लेकर यह आरोप लगाया था। भारत के मंगल मिशन को लेकर तो भारत के विरोध में बनाया गया न्यूयॉर्क टाइम्स का कार्टून अभी तक लोगों को याद है, जिसमें विवाद बढ़ने पर न्यूयॉर्क टाइम्स को माफी भी माँगनी पड़ी थी।
खालिस्तानी मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश
एक स्वतंत्र भारत, स्वतंत्र न्यायपालिका और भारत का बोध कराने वाली सरकार के प्रति औपनिवेशिक मीडिया का रवैया वही रहता है, जो न्यूयॉर्क टाइम्स का है। अभी हाल ही में भारत ने कनाडा और अमेरिका में खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों पर प्रश्न उठाने आरंभ किये हैं, भारत ने इन देशों के दोगलेपन को बताना आरंभ किया है, तो क्या न्यूयॉर्क टाइम्स ने इसी से ध्यान भटकाने के लिए भारत की न्यायपालिका पर प्रश्न उठाता हुआ लेख लिखा, जिसमें यह प्रमाणित करने का प्रयास किया कि उमर खालिद ने कुछ नहीं किया है, केवल मोदी के प्रति असंतोष है! देश की जनता के लिए परेशानी उत्पन्न करना, देश की राजधानी दिल्ली में दंगों की योजना बनाना और अपना प्रोपोगेंडा दूर तक पहुंचाने के लिए चक्का जाम करना मोदी के प्रति असंतोष नहीं, बल्कि देश के विरुद्ध अपराध होता है। और हाँ, यह भी बात ध्यान रखी जाए कि उमर खालिद के अब्बा पूर्व में सिमी के सदस्य रह चुके हैं। सिमी एक प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन है जिसे भारत सरकार द्वारा आतंकवाद को बढ़ावा देने, शांति भंग करने, और देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरे में डालने के लिए यूएपीए के तहत प्रतिबंधित किया गया है।
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