मत अभिमत

भारत का ‘कलरव’ नष्ट करने का कुत्सित षड़यंत्र ‘मंत्र विप्लव’

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सार्थक शुक्ला

वर्ष था 2015, एक शब्द चर्चा में आया ‘सहिष्णुता’, उस समय नरेन्द्र मोदी को सत्ता संभाले एक-डेढ़ वर्ष ही हुआ था, तब एक अवार्ड वापसी गैंग ने अवार्ड वापस किए और ‘सहिष्णुता’ की दुहाई दी। पीके फिल्म में सनातनियों की आस्था से खिलवाड़ करने वाले अभिनेता आमिर खान की तत्कालीन पत्नी को भारत में असुरक्षित भी महसूस होने लगा था, जिसका समर्थन उन्होंने भी किया। कांग्रेस की राजमाता भी ये राग अलापने में पीछे न थीं। आखिर ये सब किसके दबाव में हो रहा था ? जिसके दबाव में भी हुआ हो, कुछ समय बाद यह राग अपने आप ही बंद हो गया लेकिन हाल ही के कुछ वर्षों में हमारे देश में हिंदू धर्म के प्रति एक विशेष वर्ग की ‘असहिष्णु’ प्रवृत्ति उभरकर सामने आने लगी है। सनातन हिंदू समाज के प्रति कट्टरपंथी मुस्लिम समाज की दृष्टि हिंसक होने लगी है। भारत के भीतर भी जहां वे बहुसंख्यक हैं उन इलाकों में सनातनियों के प्रति ‘असहिष्णुता’ का भाव है। इसके पीछे किसी बाहरी साजिश की बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

ऐसा इसलिए चूंकि पिछले कुछ वर्षों से लगातार ऐसी घटनाएं हिंदू समाज को निशाना बनाकर हो रहीं हैं, जिनसे ‘कट्टरपंथी समाज’ की मानसिकता का प्रदर्शन हो रहा है, चाहे बहराइच में दुर्गा महोत्सव की विसर्जन यात्रा में रामगोपाल मिश्रा की हत्या हो, चाहे जामिया में दीपावली मना रहे छात्र-छात्राओं की बनाई हुई रंगोली को पैरों से रौंदकर जलते हुए दीयों को लात मारकर बुझाने और ‘अल्लाह-हू-अकबर’ और ‘फिलिस्तीन जिंदाबाद’ के नारे लगाना हो।

भारत के भीतर भी कई संभावित संकट हैं, जिनकी ओर अब हमें ध्यान देना चाहिए, कई बाहरी शक्तियों द्वारा हमारे देश में भी बांग्लादेश जैसी स्थिति लाने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है। कुछ शक्तियां नहीं चाहती कि भारत अपने सामर्थ्य में वृद्धि करे। डीप स्टेट, वोकिज्म और कल्चरल मार्क्सिज्म ये तीनों विचारों ही ‘मंत्र विप्लव’हैं | “समाज की विविधताओं को अलगाव में बदलकर टकराव की स्थिति पैदा करना, सत्ता, प्रशासन, कानून, संस्था सबके प्रति अनादर का व्यवहार सिखाना, इससे उस देश पर बाहर से वर्चस्व चलाना आसान हो जाता है और इसे ‘मंत्र विप्लव’ कहते हैं।” आज भी हमारे देश के ही कई लोग कहते हैं कि भारत में ऐसी चीजें नहीं हैं, लेकिन सत्य यह है कि ये सब बहुत पहले से अपने यहां है और इसके स्पष्ट रूप अब दिखाई देने भी शुरू हो गए हैं । यह समस्त समाज को एक चेतावनी भी है। क्या ऐसा है कि हम उन शक्तियों के कुत्सित प्रयासों को समझ नहीं पा रहे हैं जो हमारी संस्कृति और विकास को प्रभावित करना चाहते हैं ? क्या यह सही समय नहीं है कि जब हम इन मुद्दों पर खुलकर चर्चा करें और उनकी सच्चाई को उजागर करें ? इन तीन विचारों के वैश्विक प्रभाव पर बात करें तो समझ आता है कि ये विचार सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि सभी प्राचीन संस्कृतियों और परंपराओं के विरुद्ध हैं। सामान्य जनमानस को भी इसके प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है।

क्या है डीप स्टेट ?

आसान भाषा में समझें तो समझ लीजिए कि कुछ मुट्ठी भर लोग हैं जो दुनिया की सरकारों, कंपनियों और समाज को अपने इशारों पर नचाना चाहते हैं। इनकी चाहत यह है कि कोई भी देश अपनी संस्कृति पर गर्व न कर सके और न ही अपनी परंपराओं को आगे बढ़ा सके। बस हीन भावना का एक अंतहीन चक्र चलता रहे और इनका ‘एजेंडा’ सफल होता रहे। अमेरिका में बैठे इन डीप स्टेट के नाकाबिल लोग चाहते हैं कि हर देश की सरकार में इनकी हां में हां मिलाने वाले चमचे बैठे रहें, इसीलिए जब बांग्लादेश में ऐसा नहीं हुआ तो वहां ‘तख्तापलट’ करवा दिया गया। वहां की जनता को ही, उनकी ही सरकार के खिलाफ खड़ा करके, उनका ही नुकसान करके, उन्हीं को आपस में लड़वाकर अपने चमचे सरकार में बिठा दिए। इनका इतिहास देखकर समझ आता है कि ये लोग अपने खतरनाक मंसूबों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, इसीलिए तो लोकतंत्र की बड़ी-बड़ी बातें करने वाला अमेरिका भी बांग्लादेश की उस सरकार का समर्थन कर रहा है। अमेरिका, बांग्लादेश की सरकार जो सेना के दबाव में बनी हुई है और जिसमें एक भी लोकतान्त्रिक रूप से चुना हुआ नेता नहीं है, का समर्थन कर रहा है। हम सभी जानते हैं कि भारत में किसान आंदोलन को कैसे जातीय रंग दिया गया इसे जातीय कट्टरता और मजहबी उन्माद का तांडव वहां पर किया गया। अचानक ही जाटों और सिखों को भड़काने का काम शुरू हो गया, मोदी सरकार को तीन कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा। आप सोचिए एक पूर्ण बहुमत वाली चुनी हुई सरकार को ऐसे अचानक पीछे हटना पड़ा लेकिन राष्ट्रहित में नरेन्द्र मोदी जी की सरकार ने इस बात को भांप लिया था कि खतरा बहुत बड़ा है। यह कौनसा लोकतंत्र है कि बांग्लादेश में आप सेना द्वारा समर्थित सरकार का समर्थन करते हैं जिसमें एक भी चुने हुए लोग नहीं है और भारत में एक चुनी हुई सरकार के फैसले के खिलाफ आप हजारों लोगों को सड़क पर आने के लिए उकसा रहे होते हैं ठीक इसी तरह लद्दाख को जब जम्मू एवं कश्मीर से अलग कर एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया जो कि वहां के लोगों की एक पुरानी मांग थी, यह निर्णय मोदी सरकार ने लिया क्योंकि बौद्ध प्रभाव वाले लद्दाख को अब अब्दुल्ला-मुफ्ती परिवार की जंजीरों से मुक्त कराया जा सके। यह बात भी उन्हें मंजूर नहीं थी लेकिन हम देखते हैं कि जैसे ही लद्दाख को अपनी स्वायत्तता मिलती है वहां पर सोनम वांगचुक नाम का एक शख्स जो कि कांग्रेस के पूर्व मंत्री का बेटा है, दिल्ली में डेरा डालने के लिए निकल पड़ता है, कभी राकेश टिकैत को सामने खड़ा कर बनकर ये उत्तर प्रदेश में अराजकता फैलाते हैं तो कभी लद्दाख में सोनम वांगचुक को आगे कर हंगामा करते हैं। इसके अलावा जगह-जगह होने वाले प्रायोजित उन्माद चाहे दुर्गा पूजा के दौरान की कोशिशें हों, चाहे गणेश पूजा के दौरान की घटनाएँ हों, चाहें जामिया जैसी घटनाएँ हों इन सबको समझकर हमें जागरूक होने की आवश्यकता है।

हमको जानना चाहिए कि भारतीय सभ्यता को तबाह करने के उद्देश्य से हमारे यहां अपने अड्डे जमाने के लिए जुटे डीप स्टेट के सरगना में सबसे बड़ा चेहरा है वो है जॉर्ज सोरोस, हम यह भी याद रखें कि सोरोस एक चेहरा है इसके अलावा भी पीछे से कुछ और सोरोस इन षड्यंत्रों में शामिल हैं।भारतीय अर्थव्यवस्था पर चोट करने के उद्देश्य से भारत के सबसे अमीर शख्स गौतम अडानी को निशाना बनाकर पूरी तैयारी की गई हिंडनबर्ग नमक अमेरिकी रिपोर्ट ने अडानी समूह के खिलाफ एक ऐसी रिपोर्ट छापी कि शेयर नीचे गिर जाएं और फिर अमेरिका ने शॉर्ट सेलिंग का पूरा मजा लूटा और उससे मोटी कमाई करने लगे लेकिन जैसे ही अडानी समूह ने फिर से अपने पांव जमाए और शेयर वापस चढ़ने लगे हिंडनबर्ग ने फिर से रिपोर्ट निकाली लेकिन अब भारत की जागरूक जनता ये चाल समझ चुकी थी कि यह सब एक ड्रामा है, यहाँ यह भी बताना आवश्यक है कि हिंडनबर्ग में जॉर्ज सोरोस का भी पैसा लगा हुआ है। केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर भी जॉर्ज सोरोज को खतरनाक शख्स बता चुके हैं अब देखिए फरवरी 2023 में तो जॉर्ज सरोस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अलोकतांत्रिक ठहराते हुए कहा था कि अडानी के खिलाफ हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद भारत में लोकतंत्र की बहाली का दरवाजा खुलेगा। इनके हिसाब से 100 करोड़ मतदाताओं की चुनी हुई सरकार गलत है सिर्फ इसलिए क्योंकि वो नेता इन्हें पसंद नहीं है। जॉर्ज सोरोस की बातों से स्पष्ट हो जाता है कि ऐसी अमेरिकी ताकतों का उद्देश्य सिर्फ भारत में बांग्लादेश जैसी स्थितियाँ उत्पन्न करना है |

भारत में अपनी योजनाओं को अपने प्रोपेगेंडा को एजेंडा को पूरा करने का इनका सबसे बड़ा हथियार है मुसलमानों को हिंदुओं के खिलाफ भड़काना। जॉर्ज सोरोस पूरी दुनिया में यह माहौल बनाने में लगा हुआ है कि भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है और 22 करोड़ की जनसंख्या वाले अल्पसंख्यकों पर। ध्यातव्य है कि 22 करोड़ कई देशों की जनसंख्या भी नहीं है । यह जानना भी जरूरी है कि सोरोस का एक ओपन सोसाइटी फाउंडेशन भी है, जिसका भारत में निवेश सिर्फ भारत को तबाह करने के लिए ही है जिससे कई राष्ट्र विरोशी संगठनों को फंड करके ऐसा माहौल तैयार किया जाता है कि देश मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। सीएए के खिलाफ जो विरोध प्रदर्शन और दंगे हुए उनमें भी ऐसी ही विदेशी ताकतों की भूमिका थी। 2020 में जॉर्ज सोरोस ने कहा था कि पीएम मोदी भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं। इस बयान में सनातन परंपरा का पुनर्जीवित होना उनके लिए सिरदर्द बन गया है क्योंकि भारत इनकी कठपुतली की तरह नाचने को तैयार नहीं है। भारत अब अपने अस्तित्व पर गर्व कर रहा है। जम्मू-कश्मीर की बात करें तो वहां के हालात को लेकर पूरी दुनिया में हो हल्ला मचाया जाता है कि भारत ने वहां जबरन कब्जा कर रखा है लेकिन पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाला वाली जो कश्मीर है उसकी बात होती आपने कहीं नहीं सुनी होगी। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में 60 प्रतिशत से भी अधिक मतदान हुआ, ये इस बात का सबूत है कि लोग अपने अधिकार का वहां पर बिना किसी व्यवधान के पालन कर रहे हैं | मणिपुर की स्थिति तो हम सबको याद होगी कई महीनों तक वहां आग लगती रही और हमने देखा कि पादरियों ने मैतेई हिंदुओं के खिलाफ कुकी ईसाइयों को भड़काने का काम किया यह सब एक सुनियोजित साजिश है जिसमें भारत की ‘सांस्कृतिक एकता’ को तोड़ने का लगतार प्रयास किया जा रहा है।

क्या है ‘वोकिज्म’ ?

इसी तरह एक विचार है ‘वोकिज्म’, यह भी भारत के लिए खतरा बनता जा रहा है। उदाहरण के लिए हमारे भारत में किन्नर समाज को हमेशा सम्मान दिया गया है उन्हें शुभ माना जाता है फिर इस देश में पश्चिम से आए एलजीबीटीक्यू आदि इत्यादि का समूह प्रस्तुत कर विकसित किया गया है, जहां हर साल एक नया अक्षर जुड़ जाता है। और हद तो यह है कि छोटे-छोटे बच्चों को भी यह सब पढ़ाया जा रहा है उनके दिमाग में यह भरा जा रहा है बस यही है ‘वोकिज्म’ का एक उदहारण है। ‘वोक’ होने का मतलब उदाहरण से समझें तो जैसे ‘हेलोवीन’ जैसे विदेशी त्यौहारों पर अजीबोगरीब वेशभूषा पहनकर घूमना, मजे करना और हनारे अपने पर-त्यौहारों जैसे होली पर पानी बचाने का ज्ञान देना दीपावली पर प्रदूषण बढ़ने और जानवरों की चिंता का ढोंग करना ही उनके अर्थों में ‘वोक’ होने का अर्थ है। अपनी हिंदी और संस्कृत जैसी सुंदर भाषाओं को गाली देना और अंग्रेजी में बनावटी एक्सेंट के साथ बातें करना। वोक होने का मतलब है खुलेआम सेक्स की बातें करना, धर्म स्थलों में अश्लील कपड़े पहनकर घूमना और यह हमारा अधिकार है बोलकर इसका बचाव करना और एक से अधिक शारीरिक संबंधों को बढ़ावा देना, अपने देश के उद्योगपतियों को गाली देना और बिल गेट्स जैसे जो बाकी उद्योगपतियों की वाहवाही करना ही ‘वोक’ होने के नाम पर पाश्चत्य अनर्गल संस्कृति हम पर थोपी जा रही है।

क्या है कल्चरल मार्क्सिज्म?

इसी तरह कल्चरल मार्क्सिज्म यानि सांस्कृतिक मार्क्सवाद के तहत एक बड़ा अभियान चल रहा है जो दुनिया भर की जीवित प्राचीन संस्कृतियों को मिटाकर पश्चिमी संस्कृति को थोपने का प्रयास कर रहा है। वामपंथियों ने मार्क्सवाद ने भारत को कितना नुकसान पहुंचाया है यह किसी से छिपा नहीं है। वामपंथी विचारधारा से प्रभावित कई इतिहासकारों ने ऐसी कहानियां हमारे सामने प्रस्तुत कीं कि हम अपनी ही धरती के इतिहास से हतोत्साहित होने लगे, हमें यह विश्वास दिलाया गया कि हम असभ्य लोग थे जिन्हें सभ्य-समझदार और दयालु विदेशियों ने आकर सब कुछ समझाया। इस मानसिकता को अब तोड़ा जा रहा है और इसीलिए वे बेचैन हैं। सिंधु घाटी से लेकर सिनौली तक की खुदाई से निकल रहे तथ्य उनके सीने में जलन पैदा कर रहे हैं। कैसे हमारे ऋषि मुनियों ने कैसे उपनिषदों की रचना की और विविध दर्शन के सिद्धांत दिए ? क्या हमने कभी सोचा है कि इसी धरती पर बैठकर हमारे पूर्वजों ने बिना किसी उपकरणों के कितनी जटिल खगोलीय गणनाएँ कैसे कीं जिनके कैलेंडर आज तक चल रहे हैं ? सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर सिनौली तक हर खुदाई हमें यह बताती है कि जब बाकी दुनिया पत्ते पहनकर जंगलों में घूम रही थी तब हम एक समृद्ध और सभ्य समाज थे।

भारत भूमि की इस पावन धरा पर अपने कुत्सित प्रयासों में लगे ऐसे तत्त्व न जाने कितने ही वर्षों से हमारी अस्मिता से खिलवाड़ कर रहे हैं लेकिन आज की सरकार और सरकार को चुनने वाले सज्जन नागरिक वृंद अब इसके सजग प्रहरी हैं। इस ‘डीप स्टेट’,‘वोकिज्म’,और ‘सांस्कृतिक मार्क्सवाद’ के जैसे नामों से चलाए जा रहे ‘मंत्र विप्लव’ का जबाव देने हेतु प्रत्येक भारतीय को और अधिक सतर्क, और अधिक मजबूत, और अधिक चैतन्य होने के आवश्यकता है।

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