दीवाली का पर्व हर साल भारत के हर कोने में रोशनी और खुशियों के साथ मनाया जाता है। दीयों और मोमबत्तियों से सजी इस रात में घरों को सजाने के साथ-साथ विशेष पकवान भी बनाए जाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों दिवाली के दिन कुछ विशेष प्रकार की सब्जियों का सेवन किया जाता है? पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में दिवाली के अवसर पर सूरन की सब्जी बनाने की परंपरा है। इस लेख में हम जानेंगे कि आखिर इस परंपरा का क्या महत्व है और इसके पीछे कौन-कौन सी मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।
जिमीकंद की धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता
जिमीकंद को कायस्थ और ब्राह्मण समुदाय में खास स्थान प्राप्त है। दिवाली के दिन इसे बनाने की परंपरा का सीधा संबंध समृद्धि और खुशहाली से माना जाता है। यह मान्यता है कि जिमीकंद की सब्जी शुभ होती है और इसके सेवन से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। इसका कारण यह है कि इस जड़ वाली सब्जी को समृद्धि का प्रतीक माना गया है। इसका एक टुकड़ा मिट्टी में दबा रह जाने पर उससे एक नया पौधा उत्पन्न हो जाता है, जो समृद्धि और पुनर्जन्म का सूचक है।
लक्ष्मी पूजन में जिमीकंद का महत्व
दिवाली पर माता लक्ष्मी के स्वागत के लिए कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं, जिनमें जिमीकंद का स्थान खास माना जाता है। मान्यता है कि जिमीकंद को लक्ष्मी पूजन में शामिल करने से घर में बरकत आती है और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है। जिमीकंद की सब्जी कभी खराब नहीं होती और लंबे समय तक सुरक्षित रहती है, इसलिए इसे स्थायित्व और निरंतरता का प्रतीक माना गया है। दिवाली के दिन इसे बनाकर माता लक्ष्मी को अर्पित किया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि जिस प्रकार यह सब्जी हमेशा फलती-फूलती है, उसी प्रकार परिवार में भी तरक्की और खुशहाली बनी रहे।
स्वास्थ्य लाभ
जिमीकंद को सेहत के लिए भी लाभकारी माना गया है। इसमें विटामिन बी6, पोटेशियम, और डायटरी फाइबर जैसे पोषक तत्व होते हैं जो पाचन तंत्र को बेहतर बनाते हैं। इसके सेवन से कब्ज, गैस, और अन्य पाचन संबंधी समस्याओं में भी आराम मिलता है, जो त्योहार के दौरान शरीर को संतुलित बनाए रखने में सहायक है।
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