भारत

सतर्कता बरतें, झांसे में न आएं

Published by
बालेन्दु शर्मा दाधीच

‘डिजिटल गिरफ्तारी’ एक नई किस्म की आनलाइन धोखाधड़ी है। इसमें ठग शिकार को यह यकीन दिलाते हैं कि ‘उनके विरुद्ध किसी वित्तीय, कबूतरबाजी, ड्रग्स की तस्करी या ऐसे ही दूसरे गंभीर अपराध की जांच चल रही है। इसलिए जांच पूरी होने तक वे ‘डिजिटल’ या ‘वर्चुअल’ गिरफ्तारी में हैं।’ कुछ ठग किसी कूरियर कंपनी का प्रतिनिधि बनकर कॉल करते हैं कि उनके नाम से जुड़ा एक संदिग्ध पैकेज जब्त किया गया है।

यानी जाने या अनजाने में उनसे कोई गंभीर अपराध हुआ है। मादक द्रव्य नियंत्रण ब्यूरो, भारतीय रिजर्व बैंक, राज्य पुलिस और यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय के नाम से भी लोगों को फर्जी कॉल किए जा रहे हैं। साइबर अपराधी बेहद चालाक हैं और अपनी रणनीति को लगातार बदलते रहते हैं। वे फर्जी दस्तावेज, तस्वीरें और वीडियो बनाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेजिलेंस (एआई) और डीपफेक तकनीक का भी इस्तेमाल करते हैं।

अपराधी अपने शिकार को गिरफ्तारी का भय दिखाकर सहयोग करने और नजरबंद रहने को कहते हैं। पीड़ित को वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सॉफ्टवेयर के जरिए लगातार उनके साथ जुड़े रहने के लिए मजबूर किया जाता है। इस दौरान वे पीड़ित से संवेदनशील जानकारी हासिल करते हैं। जैसे- पीड़ित से सत्यापन के लिए अपना आधार नंबर, जांच के लिए बैंक खातों का विवरण, ईमेल पासवर्ड, सोशल मीडिया के पासवर्ड आदि। वीडियो कॉल कर उन्हें लगातार मानसिक तनाव में रखा जाता है और निगरानी के लिए उनसे लगातार कमरे के चारों तरफ का दृश्य दिखाने के लिए भी कहा जाता है। भय और चिंता के कारण अनेक लोग टूट जाते हैं और जल्दी निर्णय लेने के लिए मजबूर हो जाते हैं, बिना इस बात की पुष्टि किए कि कॉल असली है या नहीं।

हाल ही में वर्धमान समूह, जिसका कारोबार 10,000 करोड़ रुपये से अधिक है, के प्रबंध निदेशक एसपी ओसवाल साइबर धोखाधड़ी के शिकार हुए। साइबर अपराधियों ने यह कहकर उन्हें झांसे में लिया कि उनके विरुद्ध धनशोधन के आरोपों की सीबीआई जांच चल रही है। अपराधियों ने जाली दस्तावेजों, जाली खुफिया अधिकारियों के अलावा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली जाली पीठ की रचना तक कर डाली।

अदालत में सुनवाई का दृश्य निर्मित करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमता और डीप फेक तकनीक का प्रयोग करके फर्जी वीडियो बनाया गया। बाद में इस कथित पीठ ने ओसवाल के विरुद्ध ‘निर्णय’ भी सुना दिया, जिसके बाद वे सात करोड़ से अधिक की रकम का भुगतान करने को तैयार हो गए। जरा सोचिए कि साइबर अपराधी कितने चालाक हैं और किस हद तक जा सकते हैं!

ऐसी धोखाधड़ी रोजमर्रा की बात हो चली है और किसी के साथ भी हो सकती है। रोजाना ऐसे मामलों के खबरों में आने, सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की लगातार चेतावनियों के बावजूद पढ़े-लिखे लोग साइबर ठगों के झांसे में आ रहे हैं। इनमें पद्म विभूषण से पुरस्कृत सज्जन, सेना के सेवानिवृत्त अधिकारी, शिक्षक, डॉक्टर, वैज्ञानिक आदि भी शामिल हैं। अपराधी साइबर सुरक्षा जागरूकता की कमी का लाभ तो उठाते ही हैं, सुरक्षा एंजेंसियों और जांच एजेंसियों के प्रति लोगों के मन में डर, जेल जाने और बदनामी का भय दिखाकर भी पैसे ऐंठते हैं। बीते तीन माह में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में ऐसे 600 मामले पुलिस की नजर में आए हैं, जिनमें हर व्यक्ति को 20 लाख रुपये से अधिक की चपत लगी है।

इन घटनाओं से चिंतित भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र ने परामर्श जारी किया है कि ‘‘सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय, राज्य पुलिस, कस्टम विभाग या न्यायाधीश वीडियो कॉल के जरिए किसी की डिजिटल गिरफ्तारी नहीं करते। लोगों को भयभीत होने की नहीं, सतर्क  रहने की जरूरत है।’’ डिजिटल गिरफ्तारी जैसी धोखाधड़ी से बचने के लिए सबसे जरूरी है जागरूकता। किसी अनजान व्यक्ति से न निजी जानकारी साझा करें,

न अनजाने नंबर पर कॉल करें और न ही अनजान संदेश, ईमेल आदि में मौजूद लिंक को क्लिक करें। असली संस्थाएं आपसे इस तरह की जानकारी नहीं मांगतीं। कूरियर कंपनी या कानून प्रवर्तन का दावा करने वाले कॉल को तुरंत काट दें और सीधे कंपनी के आधिकारिक माध्यमों से संपर्क  करें। कानून प्रवर्तन एजेंसियां फोन पर गिरफ्तारी की धमकी नहीं देतीं। ऐसी कॉल वाले नंबर को ब्लॉक करें और पुलिस या साइबर क्राइम शाखा को सूचित करें।

संदिग्ध गतिविधियों के लिए अपने बैंक और अन्य डिजिटल खातों की नियमित जांच करें। ऐसी सेवाओं में नामांकन करें जो आपके डेटा के खतरे में पड़ने पर आपको सूचित करती हैं। अपने डिजिटल खातों के लिए हमेशा दो-स्तरीय सत्यापन सक्षम करें।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट एशिया में वरिष्ठ अधिकारी हैं)

 

Share
Leave a Comment

Recent News