भारत

श्रीअन्न आहार का अनुशासन

Published by
अरविंद कुमार मिश्रा

अच्छे स्वास्थ्य और पोषण के लिए स्वस्थ आहार पहली आवश्यकता है। ऐसा कहा जाता है कि यदि आपका खानपान अच्छा है तो दवा की जरूरत नहीं पड़ेगी, वहीं भोजन अच्छा न हो तो कोई भी दवा काम नहीं करती। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्तमान समय में बीमारियों की सबसे बड़ी वजह पर्याप्त भोजन न मिलने के साथ गैर-पोषक खाद्यान्न का सेवन तथा रासायनिक खेती के दुष्प्रभाव हैं। इससे लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने के साथ वे कई बीमारियों की चपेट में आते हैं। ऐसे में हमारी खाद्य संस्कृति व जलवायु में रचे-बसे श्रीअन्न पोषण के साथ ही पर्यावरणीय चुनौतियों का भी समाधान करते हैं। प्रोटीन, मपकॉर्बोहाइड्रेट, एंटीआक्सिडेंट, फाइबर, आयरन, मैग्नीशियम और कैल्शियम से भरपूर श्रीअन्न हजारों साल से खाद्य शृंखला का अहम हिस्सा रहे हैं।

पिछली शताब्दी में खाद्यान्न उत्पादन, वितरण और उपभोग की पूरी शृंखला में हुए बदलाव से मोटे अनाज हमारी थाली से दूर होते चले गए। बाजरा, कोदो, ज्वार, कुटकी के जो खेत बारिश के पानी से ही लहलहाते थे, उन खेतों में चावल, गेहूं और गन्ने की बंपर पैदावार के लिए भू-जल और रासायनिक उर्वरकों का बेतहाशा उपयोग होने लगा। इसका असर सिर्फ मानवीय स्वास्थ्य पर ही नहीं, शस्य श्यामला धरती पर भी पड़ा। हालांकि देर से ही सही, लोगों में अब स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी है। ऐसे में एक बार फिर खेत से लेकर थाली तक श्रीअन्न की मौजूदगी बढ़ गई है।

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अनुसार इस साल श्रीअन्न का उत्पादन पिछले वर्ष के 173.21 लाख टन की तुलना में 175.72 लाख टन अनुमानित है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के अनुसार भारत विश्व में श्रीअन्न (मिलेट्स) के शीर्ष 5 निर्यातकों में से एक है। भारत ने 2021-22 में 62.95 मिलियन डॉलर के मुकाबले 2022-23 में 75.46 मिलियन डॉलर मूल्य के श्रीअन्न का निर्यात किया।

नाबार्ड द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार युवाओं में स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता से श्रीअन्न में उपभोक्ताओं की रुचि बढ़ रही है। इस अध्ययन में श्रीअन्न के उपभोग संबंधी व्यवहार में 2021 में किए गए एक सर्वेक्षण पर आधारित अनुसंधान का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि 28 प्रतिशत लोगों ने स्वास्थ्य संबंधी कारणों से श्रीअन्न का सेवन शुरू किया। 15 प्रतिशत सहभागियों ने वजन घटाने के लिए श्रीअन्न खाना शुरू किया। मोटे अनाज हमारी धार्मिक आस्था और रीति-रिवाज का भी हिस्सा रहे हैं। आईसीएमआर-राष्ट्रीय पोषण संस्थान के अनुसार एक दिन में हमारे द्वारा सेवन किए जाने वाले खाद्यान्न में मोटे अनाज की हिस्सेदारी लगभग 33 प्रतिशत होनी चाहिए।

पोषक तत्वों से युक्त मोटे अनाज

भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के अनुसार श्रीअन्न में मौजूद महत्वपूर्ण पोषक तत्व कई स्वास्थ्य लाभ पहुंचाते हैं। इनमें गैर स्टार्च वाले पॉलीसैकेराइड और रेशे होते हैं। इससे रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) नियंत्रित रहती है। यह मधुमेह रोगियों के लिए वरदान की तरह है। श्रीअन्न में पाए जाने वाले प्रोटीन और घुलनशील रेशे पेट से जुड़े विकार में लाभदायक होते हैं, क्योंकि ये कॉलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रित करते हैं। मोटे अनाजों के रूप में काफी लोकप्रिय रागी को कैल्शियम का अच्छा स्रोत माना जाता है। यह हड्डियों के स्वास्थ्य और मांसपेशियों के संकुचन और स्नायुतंत्र के लिए गुणकारी है। पौष्टिकता से भरपूर मोटे अनाज में चावल, गेहूं की तुलना में बेहतर सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं।

खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी बाजरा

बाजरा सूखा प्रतिरोधी होता हैं। किसान इसे कम लागत में शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्रों में भी तैयार कर सकते हैं। यह एक ओर जहां पोषक तत्वों से भरपूर होता है, वहीं जलवायु संकट की परिस्थितियों में भी खाद्य सुरक्षा को मजबूती देता है। किसान राजस्थान की शुष्क जलवायु में भी बाजरा (पर्ल मिलेट) का उत्पादन मुख्य फसल के रूप में करते हैं। इसमें आयरन और फाइबर पर्याप्त मात्रा में होता है। ऐसे में यह स्थानीय लोगों की पोषण आवश्यकताओं को पूरा करता है। यह रक्त-अल्पता (एनीमिया) जैसी स्थिति से बचाव में सहायक है। बाजरे से मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। कॉलेस्ट्रॉल स्तर में सुधार होता है। यह कैल्शियम, आयरन और जिंक की कमी को दूर करता है।

आयरन का अच्छा स्रोत कोदो

कोदो शरीर की उपापचय क्रियाओं को संतुलित करता है। इसमें आयरन की मात्रा अधिक होती है, जिससे यह रक्त के लिए फिल्टर का काम करता है। इसका सेवन उच्च रक्तचाप जैसी स्वास्थ्य चुनौतियों को कम करता है और मस्तिष्क संबंधी कोशिकाओं को स्वस्थ रखता है। कोदो में कैंसर-रोधी गुण पाए जाते हैं। कुटकी को थायरॉयड ग्रंथि से जुड़े विकारों को झेल रहे लोगों के लिए काफी स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। इसे सांवा के नाम से भी जाना जाता है। इसकी मांग काफी अधिक रहती है। श्वसन से जुड़ी परेशानियों में इसके सेवन की सलाह दी जाती है।

फास्ट फूड का पोषक विकल्प

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास विभाग ने श्रीअन्न को पोषण अभियान में शामिल किया है। एकीकृत बाल विकास परियोजनाओं (आईसीडीएस) में मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो को शामिल करने से बच्चों में कुपोषण की समस्या कम हो रही है। देश की अलग-अलग राज्य सरकारों ने श्रीअन्न से बने व्यंजन को मध्याह्न भोजन में शामिल किया है। इससे खून की कमी, सूखारोग (रिकेट्स) और कुपोषण से लड़ाई मजबूत होगी।

देश में जिस तरह जीवनशैली आधारित बीमारियां जैसे मोटापा, मधुमेह और ह्दय रोग बढ़ रही हैं, उससे निजात दिलाने में मोटे अनाज काफी सहायक हैं। दरअसल, बाजरे से लेकर रागी, कोदो, कुटकी और जौ से पिज्जा, बर्गर, चाउमीन समेत सभी फास्ट फूड के विकल्प तैयार किए जा रहे हैं। मैदा से बने फास्ट फूड जहां सुपाच्य नहीं होते, वहीं श्रीअन्न से बने व्यंजन पाचन तंत्र को मजबूती देते है।

इसी तरह पैकेट बंद जंक फूड जैसे चिप्स,सैंडविच, कुरकुरे के बेहतर स्वस्थ विकल्प लेकर आए हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार मोटे अनाज में गुल्टन नहीं होता। इससे मोटापा और मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। पाचनतंत्र को व्यवस्थित रखने में इनका कोई सानी नहीं। ये आंत से जुड़ी बीमारियों के साथ ही मधुमेह जैसी बीमारियों से भी बचाव करते हैं। मोटे अनाज का उपयोग कई तरह के व्यंजन बनाने में किया जा सकता है। रोटी, डोसा, चीला, कुकीज, केक, दलिया, उपमा, बिस्कुट, इडली, पैनकेक, टिक्की, सलाद, लड्डू, पुलाव, पायसम, डबल रोटी तैयार करने में बाजरे का इस्तेमाल होता है।

पिछले कुछ दशकों में अत्यधिक अनाज उत्पादन के लिए रासायनिक खाद का उपयोग बढ़ा है। इससे एक ओर हमारे खेत बंजर हो रहे हैं, वहीं इसका सीधा असर मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ा है। ऐसे में श्रीअन्न का उत्पादन पर्यावरण अनुकूल कृषि के साथ ही पोषक आहार के लिए अत्यंत आवश्यक है।

Share
Leave a Comment