काशी, जिसे विश्व की सबसे प्राचीन नगरी के रूप में जाना जाता है, न केवल धार्मिक तीर्थयात्रियों का प्रमुख स्थल है, बल्कि विभिन्न धर्मों के प्रति गहरी आस्था रखने वालों के लिए भी एक पवित्र स्थान है। यहां की आध्यात्मिकता और संस्कृति इतनी गहरी है कि यह दुनिया भर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। ऐसा ही एक मामला हाल ही में सामने आया, जब लिथुआनिया निवासी हेनरिक्स ने ईसाई मत को छोड़कर सनातन धर्म अपना लिया।
सड़क दुर्घटना और भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन
हेनरिक्स का सनातन धर्म से जुड़ने का सफर तब शुरू हुआ जब वे एक सड़क दुर्घटना का शिकार हुए। इस दुर्घटना में घायल होने के दौरान जब उनकी आंखें बंद हुईं, तो उन्होंने अपने भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन किए। यह अनुभव उनके लिए एक दिव्य संदेश के समान था, जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। श्रीकृष्ण के दर्शन ने उनके मन में सनातन धर्म के प्रति एक गहरी रुचि और लगाव पैदा कर दिया। यह सपना उनके लिए इतना महत्वपूर्ण था कि उसी पल हेनरिक सनातन धर्म की ओर रुख करने का निर्णय लिया।
भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य दर्शन के बाद हेनरिक्स ने गहराई से सनातन धर्म के बारे में जानने की कोशिश की। उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन शुरू किया, जो उनके आध्यात्मिक जागरण का पहला कदम बना। गीता के विचार और दर्शन ने हेनरीक्स को सनातन धर्म की जड़ों तक पहुंचने के लिए प्रेरित किया। उनकी आस्था इतनी प्रबल हो गई कि वे इस धर्म को पूरी तरह से अपनाने के लिए भारत आ गए।
काशी में धर्म परिवर्तन
हेनरिक्स की यह यात्रा उन्हें काशी, ब्रह्म निवास स्थित मठ तक ले आई, जहां उन्होंने विधि-विधान से सनातन धर्म को स्वीकार किया। अखिल भारतीय संत समिति, काशी विद्वत परिषद, और विश्व हिंदू परिषद के विद्वानों की उपस्थिति में उन्होंने ईसाई धर्म को त्यागकर सनातन धर्म की शरण ली। धर्म परिवर्तन के दौरान उन्होंने सनातन धर्म के नियमों और परंपराओं का पूर्ण रूप से पालन किया। उनके इस परिवर्तन के साथ ही उनका नाम हेनरिक्स से बदलकर ‘केशव’ रख दिया गया और उन्हें कश्यप गोत्र से जोड़ा गया। इसके बाद उन्होंने माथे पर त्रिपुंड लगाया, जो उनके सनातन धर्म में गहरे आस्था और समर्पण का प्रतीक बना। सनातन धर्म अपनाने के बाद केशव ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा कि वे अब इस धर्म की गहराई में जाकर ईश्वर को प्राप्त करना चाहते हैं।
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