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‘सांघिक गीत पैदा करते हैं समरसता’

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WEB DESK

गत 9 अक्तूबर को नागपुर में नादब्रह्म संस्था ने देशभक्ति एवं संस्कार गीत प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत करने के लिए एक समारोह आयोजित किया। इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने विजेता विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया।

प्रथम स्थान पाने वाले को 21,000, द्वितीय को 15,000 और तृतीय को 11,000 रु. की राशि दी गई। श्री भागवत ने अपने उद्बोधन में कहा कि सांघिक गीत के माध्यम से समरसता उत्पन्न होती है। सुर से सुर मिलाकर गाने से एकात्मता की भावना बढ़ती है।

हर इंसान में संगीत, गायन और गीत होता है। इसे बाहर लाना समय की मांग है। इंसान के पास दिल है, वह धड़कता है, उससे लय आती है। इंसान की आवाज में उतार-चढ़ाव होता है।

मन की भावनाएं स्वरों को उतार-चढ़ाव देती हैं। भावनाओं को व्यक्त करना स्वरों का काम है। संगीत में इतनी ताकत है कि इसके शब्द दिलो-दिमाग को छू जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि जो संगीत और नाटक नहीं जानता वह इंसान नहीं है।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर की कविता ‘अनेक फुले फुलती’ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हमारे भीतर जो भी गुण, कला है, उसे अच्छे काम में समर्पित करें तो वह सार्थक होती है। उद्यमी सत्यनारायण नुवाल ने कहा कि नादब्रह्म का कार्य बहुत अनोखा और सराहनीय है।

कार्यक्रम की प्रस्तावना सुधीर वारकर ने रखी। सुधीर पाठक ने देशभक्ति गीतों की एक पुस्तिका प्रकाशित करने और हर प्रांत में ऐसी प्रतियोगिताएं आयोजित करने की घोषणा की। कार्यक्रम का संचालन श्वेता शेलगांवकर ने किया।

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