जम्‍मू एवं कश्‍मीर

जम्मू-कश्मीर में पहली बार भारत के संविधान पर ली गई शपथ, संविधान की दुहाई देने वाले राहुल गांधी ने क्यों साधी चुप्पी?

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सोनाली मिश्रा

नई दिल्ली । लोकसभा चुनावों के दौरान और अभी तक कॉंग्रेस और इंडी गठबंधन के नेता केवल संविधान बचाओं का ही नारा लगा रहे हैं। हर किसी को याद रहता है कि कैसे राहुल गांधी वह लाल किताब हाथ में लेकर संविधान बचाने के लिए कोई भी कदम उठाने के लिए तैयार रहते हैं। मगर ये वही राहुल गांधी हैं, जिन्होनें संविधान को लेकर इतनी बड़ी घटना पर कोई टिप्पणी नहीं की, जिसका श्रेय पूरी तरह से केवल और केवल मोदी सरकार को जाता है।

यह घटना है जम्मू-कश्मीर के नए निर्वाचित मुख्यमंत्री का भारत के संविधान के प्रति शपथ लेना। 8 अक्टूबर 2024 को जम्मू कश्मीर के चुनावों में नेशनल कान्फ्रन्स की जीत हुई और उसके नेता उमर अब्दुल्ला ने 16 अक्टूबर को राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। यह अवसर इसलिए और विशेष बन गया था कि जहां राज्य में पूरे दस वर्ष के बाद चुनाव हुए थे तो वहीं ये चुनाव धारा 370 हटने के बाद हुए थे।

इससे पहले जब वर्ष 2009 में उमर अब्दुल्ला ने घाटी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तो उस समय उन्होनें जम्मू और कश्मीर के संविधान की शपथ ली थी।

दरअसल धारा 370 की समाप्ति से पहले कोई भी व्यक्ति यदि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेता था, तो वह भारत के संविधान के स्थान पर जम्मू-कश्मीर के संविधान की शपथ लेता था। जम्मू-कश्मीर में अलग संविधान था। जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की शर्त धारा 370 थी, जिसके अंतर्गत उसे विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था।

जम्मू-कश्मीर अपने पर लागू संविधान के आधार पर ही संचालित होता था। इस धारा का दुरुपयोग किस सीमा तक हुआ, वह कश्मीर में उपजे अलगाववाद के उदाहरणों से देखा जा सकता है। कश्मीर में शेष भारत से गए लोगों के साथ क्या व्यवहार होता था, वह भी किसी से छिपा नहीं है और यह भी किसी से नहीं छिपा है कि कैसे इस कथित विशेष प्रावधान के कारण क्षेत्र का विकास ही नहीं रुका था, बल्कि वहाँ पर भारत विरोधी भावनाएं भी हावी थीं।

कैसे इस धारा का सहारा लेकर कश्मीर में हिंदुओं के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता था, यह भी सभी जानते थे। मगर फिर भी किसी भी राजनीतिक दल ने और जो संविधान बचाने जैसी बातें करते हैं, उन्होनें कभी भी उस धारा को हटाने का प्रयास नहीं किया, जो पूरे राज्य के बीच एक अलगाववाद की भावना का विस्तार कर रही थी।

मगर 5 अगस्त 2019 को इस भेदभाव वाली धारा को इतिहास बना दिया गया। और यही कारण है कि उमर अब्दुल्ला ने देश के संविधान के प्रति शपथ ली।

भारतीय जनता पार्टी के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी प्रदेश के संविधान का विरोध किया था और उन्होनें उस समय नारा दिया था कि एक ही देश में दो विधान नहीं चलेंगे। मगर कॉंग्रेस की नीतियों के कारण एक ही देश में दो संविधान चलते रहे। अब जब उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और जब उन्होनें भारत के संविधान पर शपथ ली, तो संविधान बचाओं की दुहाई देने वाले राहुल गांधी की समझ में आया या नहीं, परंतु भारत की आम जनता और ऐसे पत्रकारों के संज्ञान में अवश्य गया, जो भारत की आत्मा से जुड़े हैं।

वरिष्ठ पत्रकार अमिताब अग्निहोत्री ने इस विषय को लेकर एक्स पर पोस्ट लिखा कि “संविधान को लेकर मचते रहने वाले सियासी ग़दर के बीच एक बड़ी घटना ये हुई कि पहली बार जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री ने भारत की एकता -अखंडता को महफूज रखने और भारत के संविधान के पालन की शपथ ली है— यह परिवर्तन शुभ है — यह संविधान की जय है —यह तब संभव हो पाया जब मोदी सरकार ने धारा 370 हटा कर राज्य को देश की मुख्यधारा से जोड़ा–

इसे लेकर सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने उमर अब्दुल्ला के दोनों वीडियो साझा किये। लोगों ने इस पर खुशी व्यक्त की कि अंतत: भारत के ही एक प्रांत के नव निर्वाचित मुख्यमंत्री ने भारत के संविधान की ही शपथ ली। मगर जो बात अमिताभ अग्निहोत्री ने कही कि संविधान की जय तभी हो पाई, जब मोदी सरकार ने धारा 370 हटाकर राज्य को देश की मुख्यधारा से जोड़ा, वह बात क्या संविधान की कॉपी हाथ में लेकर लहराने वाले राहुल गांधी नहीं समझते हैं? या वह समझकर भी अपने वोट बैंक के प्रति समर्पण दिखाते हुए स्वीकारते नहीं हैं और धारा 370 को वापस लाने की बात करते हैं।

आखिर उन्होनें इस बात को क्यों नहीं सराहा कि जम्मू-कश्मीर में पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने पहली बार भारत के संविधान की शपथ ली और न ही संविधान की दुहाई देने वाले और कथित सेक्युलर दलों ने इसे सराहा।

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