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सुप्रीम कोर्ट से ईशा फाउंडेशन को राहत, ‘लड़कियों को जबरन रखने’ के आरोप खारिज

Published by
Mahak Singh

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ईशा फाउंडेशन और इसके संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव को बड़ी राहत दी। जब अदालत ने उस मामले को खारिज कर दिया जिसमें एक पिता ने दावा किया था कि उसकी दो बेटियों का ब्रेनवॉश किया गया और उन्हें जबरन आश्रम में रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि बेटियां वयस्क हैं और अपनी इच्छा से आश्रम में रह रही हैं।

तमिलनाडु के कोयंबटूर स्थित ईशा फाउंडेशन के खिलाफ यह मामला तब सामने आया जब एक व्यक्ति ने आरोप लगाया कि उसकी दो बेटियों—गीता (27) और लता (24)—का ब्रेनवॉश कर उन्हें सद्गुरु के आश्रम में रहने के लिए मजबूर किया गया है। याचिका में दावा किया गया था कि बेटियों को उनके परिवार से संपर्क करने से वंचित रखा गया और आश्रम में अवैध रूप से कैद किया गया है।

इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने पहले पुलिस को आश्रम की जांच के आदेश दिए थे और पिता के आरोपों पर संज्ञान लिया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को गलत ठहराते हुए हस्तक्षेप किया और कहा कि दोनों लड़कियों की उम्र और उनकी स्वेच्छा से आश्रम में रहने के फैसले को देखते हुए यह जांच अनावश्यक थी।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि गीता और लता, दोनों वयस्क हैं और अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का हस्तक्षेप इस मामले में अनुचित था क्योंकि दोनों बेटियां अपनी इच्छा से आश्रम में रह रही थीं और उन्हें किसी प्रकार का दबाव या जोर-जबरदस्ती नहीं किया गया था। अदालत ने कहा, “पिता अपनी बेटियों के जीवन को नियंत्रित नहीं कर सकते,” और उन्हें सुझाव दिया कि वे अदालतों में याचिका दायर करने के बजाय अपनी बेटियों का विश्वास जीतने की कोशिश करें।

सुप्रीम कोर्ट ने ब्रेनवॉशिंग के आरोपों को भी खारिज कर दिया और कहा कि इस तरह के आरोप बिना ठोस सबूतों के लगाए जा रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, “ऐसे मामलों का इस्तेमाल संस्थानों और लोगों को बदनाम करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।” अदालत ने यह भी कहा कि बेटियों के अदालत में पेश होने के बाद याचिका का उद्देश्य पहले ही पूरा हो चुका था, और उनके बयानों ने सारी स्थिति स्पष्ट कर दी थी।

पुलिस जांच

इस मामले के अलावा, मद्रास हाईकोर्ट में एक और याचिका लंबित थी जिसमें पुलिस जांच के आधार पर ईशा फाउंडेशन पर कई गंभीर आरोप लगाए गए थे। इसमें दावा किया गया था कि आश्रम से जुड़े कई लोग लापता हो गए हैं, और फाउंडेशन के आउटरीच प्रोग्राम में काम करने वाले एक डॉक्टर के खिलाफ बाल यौन शोषण का मामला भी दर्ज किया गया है।

ईशा फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में यह प्रस्तुत किया कि तमिलनाडु पुलिस की रिपोर्ट से स्पष्ट हो चुका है कि दोनों बेटियां स्वेच्छा से आश्रम में रह रही हैं। कोर्ट ने भी इस रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए पिता की याचिका को खारिज कर दिया।

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