गुजरात

सौर क्रांति का अगुआ गुजरात

Published by
सोनल अनडकट

गुजरात के गांधीनगर में गत दिनों चौथा वैश्विक अक्षय ऊर्जा निवेशक सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें जर्मनी, आस्ट्रेलिया, डेनमार्क और नॉर्वे जैसे देशों के अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने भी हिस्सा लिया। इस सम्मेलन के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने गुजरात में अक्षय ऊर्जा के 100 गीगावाट मिशन की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य 2030 तक गुजरात में 100 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन करना है।

सम्मेलन में अत्याधुनिक नवाचारों को दर्शाने वाली प्रदर्शनी भी लगी थी, जिसमें सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों, स्टार्टअप और प्रमुख उद्यमियों ने भाग लिया। इस मौके पर भारत की 200 गीगावाट से अधिक स्थापित गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता की उल्लेखनीय उपलब्धि में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले लोगों को सम्मानित किया गया। 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने और और नवीकरणीय ऊर्जा में प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के भारत के लक्ष्य पर भी चर्चा की गई।

तैयार हो रहा 1000 वर्ष का आधार

इस तीन दिवसीय सम्मेलन एवं प्रदर्शनी का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। उन्होंने कहा कि गुजरात श्वेत क्रांति, मधु (शहद) क्रांति के बाद अब सौर क्रांति का अग्रदूत बना है। गुजरात देश का पहला ऐसा राज्य है, जिसने अपनी सौर नीति बनाई। सौर ऊर्जा पर इसके बाद ही राष्ट्रीय नीतियां बनीं। उन्होंने कहा कि जलवायु मामलों से संबंधित मंत्रालय स्थापित करने में गुजरात दुनिया के अग्रणी राज्यों में से एक है। गुजरात ने तब से सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करना शुरू किया था, जब दुनिया ने इसके बारे में सोचा तक नहीं था।

अपने तीसरे कार्यकाल के शुरुआती 100 दिन में हरित ऊर्जा क्षेत्र में हुए विकास का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए 7,000 करोड़ रुपये से अधिक की व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण योजना शुरू की गई है। भारत 12,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ 31,000 मेगावाट जलविद्युत उत्पादन की दिशा में काम कर रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत सिर्फ आज के लिए नहीं, बल्कि अगले 1000 वर्ष के लिए आधार तैयार कर रहा है। भारत का लक्ष्य सिर्फ शीर्ष पर पहुंचना नहीं, बल्कि शीर्ष पर बने रहने के लिए स्वयं को तैयार करना है। तेल-गैस के भंडार की कमी को देखते हुए भारत ने सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, परमाणु और जल विद्युत जैसे नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भविष्य बनाने का फैसला किया है। 2047 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य है।

उन्होंने कहा कि पीएम सूर्य घर नि:शुल्क विद्युत योजना के तहत 1.30 करोड़ से अधिक परिवारों ने पंजीकरण कराया है और अब तक 3.25 लाख घरों में रूफटॉप सोलर लगाए जा चुके हैं। इस योजना से 20 लाख रोजगार का सृजन हुआ है और पर्यावरण संरक्षण भी हो रहा है। सरकार का लक्ष्य इस योजना के तहत 3 लाख युवाओं को कुशल जनशक्ति के रूप में तैयार करना है। इनमें से एक लाख युवा सोलर पीवी तकनीशियन होंगे। उन्होंने कहा कि हर 3 किलोवाट सौर बिजली से 50-60 टन कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन को रोका जा सकेगा। जब 21वीं सदी का इतिहास लिखा जाएगा, तब भारत की सौर क्रांति स्वर्ण अक्षरों में लिखी जाएगी।

उन्होंने कहा कि मोढेरा देश का पहला सौर गांव है, जहां सदियों पुराना सूर्य मंदिर है। इस गांव की सारी जरूरतें सौर ऊर्जा से पूरी होती हैं। पूरे देश में ऐसे कई गांवों को आदर्श सौर ग्राम बनाने का अभियान चल रहा है। इनमें श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या भी है, जहां सभी घरों, कार्यालय, सेवा को सौर ऊर्जा से ऊर्जान्वित करने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार ने देश में 17 शहरों की पहचान की है, जिन्हें सौर शहरों के रूप में विकसित किया जाना है। इसके अलावा, कृषि क्षेत्र में भी सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए किसानों को सिंचाई के लिए सौर पंप तथा छोटे सौर संयंत्र लगाने में सहायता की जा रही है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अक्षय ऊर्जा से जुड़े हर क्षेत्र में भारत तेजी से और बड़े पैमाने पर काम कर रहा है। बीते एक दशक में भारत ने पहले के मुकाबले परमाणु ऊर्जा से 35 प्रतिशत अधिक बिजली उत्पादन किया है। भारत हरित हाइड्रोजन के क्षेत्र में वैश्विक प्रमुख बनने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए लगभग 20,000 करोड़ रुपये का हरित हाइड्रोजन मिशन शुरू किया गया है। यही नहीं, भारत में कचरे से ऊर्जा उत्पादन के लिए भी एक बड़ा अभियान चल रहा है। देश में अक्षय ऊर्जा की बढ़ती मांग को देखते हुए सरकार नई नीतियां बना रही है और हर तरह से सहायता प्रदान कर रही है।

भागीदारों ने दिखाया उत्साह

आरई-इन्वेस्ट-2024 सम्मेलन की विशेषता यह थी कि उद्योगों, राज्यों और वित्तपोषकों ने 500 गीगावाट बिजली उत्पादन के लक्ष्य के प्रति उत्साह दिखाया। अक्षय ऊर्जा डेवलपर्स ने 570 गीगावाट क्षमता जोड़ने का संकल्प लिया, जबकि वित्तीय संस्थानों ने परियोजनाओं के लिए 25 लाख करोड़ रुपये का सहयोग देने की बात कही। इस सम्मेलन में कई समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए, जिनमें से एक जीयूवीएनएल और पीजीसीआईएल के साथ गुजरात सरकार का समझौता शामिल था, जिसमें 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया जाएगा। इस बार सम्मेलन में 9,460 मेगावाट पंप हाइड्रो परियोजना के लिए 59,000 करोड़ के एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। बीते वर्ष गुजरात ने लगभग 62,000 मेगायूनिट जलविद्युत उत्पादन किया था। प्रभावी जल प्रबंधन की बदौलत राज्य ने पंप हाइड्रो परियोजनाएं भी शुरू की हैं। इसके लिए 50 स्थलों की पहचान की गई है।

ऊर्जा सुरक्षा और हरित ऊर्जा की दृष्टि से देखें तो इसमें कोई संदेह नहीं कि गुजरात दशकों से नवीकरणीय ऊर्जा के विकास में अग्रणी रहा है। गुजरात ने रूफटॉप सोलर सिस्टम स्थापित करने में एक मिसाल कायम की है। राज्य की 50,000 मेगावाट से अधिक की स्थापित ऊर्जा क्षमता में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी 54 प्रतिशत है। गुजरात ने जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करके पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ ऊर्जा सुरक्षा और हरित ऊर्जा के नए आयाम दिए हैं।

प्रदर्शनी का अवलोकन करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब चारणका में देश का पहला सौर पार्क शुरू किया गया था। जलवायु परिवर्तन के लिए समर्पित विभाग बनाने वाला गुजरात दुनिया का पहला राज्य है। गुजरात में 300 दिन तक प्रचुर मात्रा में धूप निकलती है। देश की सबसे लंबी तटरेखा होने के साथ-साथ यहां पवन ऊर्जा की भी काफी संभावनाएं हैं। भारत की सौर उत्पादन क्षमता में लगभग 53 प्रतिशत हिस्सा गुजरात का है। स्वच्छ ऊर्जा पहल के लिए गुजरात को 4,490 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जिसका राज्य ने बेहतर उपयोग किया है। गुजरात ने 2030 तक 100 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा है।

अक्षय ऊर्जा निवेशक सम्मेलन ने गुजरात में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव लाने में मजबूत भूमिका निभाई है। पहला अक्षय ऊर्जा सम्मेलन फरवरी 2015 में नई दिल्ली में आयोजित किया गया था। दूसरा शिखर सम्मेलन अक्तूबर 2018 में दिल्ली-एनसीआर और तीसरा नवंबर 2020 में कोविड-19 के कारण वर्च्युअल आयोजित किया गया था। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा इस वर्ष पहली बार सम्मेलन का आयोजन दिल्ली से बाहर गुजरात में आयोजित किया गया।

इस सम्मेलन में 40 से अधिक सत्र, 5 पूर्ण चर्चाएं और 115 से अधिक बी2बी (बिजनेस टू बिजनेस) बैठकें हुईं, जिनमें 140 देशों के 25,000 प्रतिनिधियों और 200 से अधिक वक्ताओं ने भाग लिया। कार्यक्रम के भागीदार देश आस्ट्रेलिया, डेनमार्क, जर्मनी और नॉर्वे रहे, जबकि देश में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना शामिल थे। शिखर सम्मेलन में अमेरिका, ब्रिटेन, बेल्जियम, यूरोपीय संघ, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर और हांगकांग के उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडलों ने भी भाग लिया।

इस आयोजन से भारत और दुनिया भर से अग्रणी वित्तीय संस्थानों, निवेशकों, स्टार्टअप्स और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र की प्रमुख हस्तियां एक साथ एक मंच पर आईं। शिखर संमेलन में पूर्ण और समानांतर सत्र आयोजित किए गए, जिसमें कार्बन उत्सर्जन को कम करने में हरित हाइड्रोजन की भूमिका में तेजी लाने और अपतटीय और तटवर्ती पवन ऊर्जा को मुख्यधारा में लाने जैसे विषयों को शामिल किया गया। बायो एनर्जी, बैटरी एनर्जी स्टोरेज और हाइड्रोपावर पर भी अलग-अलग सत्र आयोजित किए गए। शिखर सम्मेलन में भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में गुजरात के नेतृत्व एवं पवन व सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विस्तार के लिए उसकी रणनीतियों पर भी चर्चा हुई।

भारत सभी क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसमें गुजरात अग्रणी भूमिका निभा रहा है। वर्तमान में यह रूफटॉप सौर प्रणाली स्थापना के साथ-साथ पवन ऊर्जा उत्पादन में देश में पहले स्थान पर, जबकि सौर ऊर्जा उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। राज्य सरकार सौर पैनल और पवन टरबाइन विनिर्माण में अग्रणी बनने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही है। राज्य के 1600 किलोमीटर लंबे समुद्री तट पर 32 से 35 गीगावाट अपतटीय पवन ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है। नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी स्थापित करने के लिए गुजरात एक स्मार्ट विकल्प है। साथ ही, यहां निवेश के लिए जरूरी विभिन्न बुनियादी ढांचे, लॉजिस्टिक सुविधाओं के साथ व्यापार अनुकूल नीतियां भी हैं।

Share
Leave a Comment

Recent News