सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A की संवैधानिक वैधता पर अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। यह निर्णय असम में बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों को नागरिकता देने से जुड़ा है, जिसे 1985 में असम समझौते के तहत नागरिकता अधिनियम में संशोधन करके लागू किया गया था। संविधान पीठ ने 4-1 के बहुमत से इस धारा को संवैधानिक करार दिया, जबकि एक न्यायाधीश ने असहमति जताई।
धारा 6A का संबंध असम समझौते से है, जिसे 1985 में असम आंदोलन के बाद केंद्र सरकार और असम के आंदोलनकारियों के बीच समझौते के तहत पेश किया गया था। इस धारा के अनुसार, 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम में प्रवेश करने वाले अवैध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान की जाएगी। असम में इस प्रवासी समस्या ने वहां के जनसांख्यिकीय संतुलन को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिसमें अधिकांश प्रवासी बांग्लादेश से आए थे।
मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, एमएम सुद्रेश, और मनोज मिश्रा ने बहुमत से धारा 6A को संवैधानिक ठहराया। मुख्य न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि असम के सामने जो विशेष परिस्थितियां थीं, यह अधिनियम उनका राजनीतिक समाधान था। असम के जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक परिदृश्य को देखते हुए, यह अधिनियम राज्य की संस्कृति और पहचान की सुरक्षा के लिए एक जरुरी कदम था।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह प्रावधान केवल असम के लिए बनाया गया था, और इसे अन्य क्षेत्रों में लागू नहीं किया गया। असम में बांग्लादेश से आए प्रवासियों की संख्या और उनके प्रभाव को पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्यों से तुलना करना गलत होगा, क्योंकि असम का क्षेत्रफल और संसाधन पश्चिम बंगाल की तुलना में बहुत कम हैं। 40 लाख प्रवासियों का प्रभाव असम में अधिक गंभीर है, जबकि पश्चिम बंगाल में 57 लाख प्रवासियों का प्रभाव उसकी विशालता के कारण असम के मुकाबले कम है।
इस ऐतिहासिक फैसले में जहां चार न्यायाधीशों ने धारा 6A की संवैधानिकता को सही ठहराया, वहीं न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने इसे असंवैधानिक करार दिया।
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