व्यक्ति, समाज व राष्ट्र की अवनतिकारी जड़ : कल्चरल मार्क्सवाद
May 18, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम मत अभिमत

व्यक्ति, समाज व राष्ट्र की अवनतिकारी जड़ : कल्चरल मार्क्सवाद

सामान्य जन के बीच अपनी विश्वसनीयता को कायम रखने हेतु वर्षों से विकिपीडिया तटस्थता का स्वांग रचता आया है।

by जान्हवी नाईक
Oct 14, 2024, 11:44 am IST
in मत अभिमत
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

सामान्य जन के बीच अपनी विश्वसनीयता को कायम रखने हेतु वर्षों से विकिपीडिया तटस्थता का स्वांग रचता आया है। किंतु इस बहुचर्चित एवं तथाकथित तटस्थता वाले चेहरे के पीछे छिपे हुए एजेंडा, पक्षपात और ‘सेलेक्टिव – भ्रामक रिपोर्टिंग’ का ऐसा जटिल मायाजाल है जिससे दुर्भाग्यवश सभी अनभिज्ञ हैं, विशेषकर वे जो विकिपीडिया को सर्वाधिक विश्वसनीय स्रोत मानते आए हैं। हाल ही में विख्यात डिजिटल मीडिया वेबसाइट द्वारा विकिपीडिया के इसी दिखावटी चेहरे का तथ्यों सहित खुलासा किया गया। दरअसल उस रिपोर्ट के अनुसार, विकीपीडिया वामियों द्वारा वित्तपोषित एक ऐसी वेबसाइट है जो प्रचुर मात्रा में हिंदू और हिंदुओं से संबंधित सभी मामलों में भारत एवं समाज विखंडन के उद्देश्य से पक्षपाती ‘तथ्य’ व भ्रामक जानकारी का प्रसार बहुत से वर्षों से कर रही है। उसी विकिपीडिया पर यदि आप कल्चरल मार्कसिज्म खोजेंगे बड़ी चतुराई से सर्वप्रथम तो विकिपीडिया शीर्षक में ही इसे एक षड्यंत्र सिद्धांत कहकर नकार देता है, तदोपरान्त यही विकिपीडिया कल्चरल मार्कसिज्म को परिभाषित करते हुए कहता है कि – “सांस्कृतिक मार्क्सवाद” एक धुर दक्षिणपंथी यहूदी विरोधी षड्यंत्र सिद्धांत को संदर्भित करता है जो फ्रैंकफर्ट स्कूल को आधुनिक प्रगतिशील आंदोलनों, पहचान की राजनीति और राजनीतिक शुद्धता के लिए जिम्मेदार बताता है।”

‘कल्चरल मार्कसिज्म’ शब्द से पूरी तरह अनभिज्ञ लोग, इस शब्द को एक अत्यंत बौद्धिक शब्द के रूप में देखते होंगे ; हालाँकि जो लोग इस शब्द से परिचित हैं, उनके पास इसे एक दुर्जेय चुनौती के रूप में पहचानने की समझ भी होगी, जिसे परास्त करना कठिन है। कल्चरल मार्कसिज्म की दुनिया में जाने से पूर्व, आइए पहले हम मार्क्सवाद का संक्षिप्त अवलोकन करें।

मार्क्सवाद की तीन महत्वपूर्ण ‘विशेषताएं’ हैं –
  • यह दुनिया को दो भागों में विभाजित करता है, उत्पीड़क एवं उत्पीड़ित।
  • यह तीन आरआरआर (RRR) पर विशेष बल देता है – विद्रोह (रिबेल), अस्वीकृति (रिजेक्ट) एवं विरोध (रेजिस्ट) क्रांति केवल अर्थव्यवस्था के आधार पर लाई जा सकती है।

मार्क्सवाद विचारधारा के ऐतिहासिक अवलोकन से ज्ञात होता है कि यह पूर्णतया एक असफल विचारधारा रही, सोवियत संघ एवं बाद में अमेरिका का पतन इस बात का सटीक उदाहरण है। हालांकि कुछ समय पश्चात, पश्चिमी बुद्धिजीवियों को यह भान हुआ कि समाज में क्रांति केवल आर्थिक आधार पर नहीं आ सकती, इस हेतु संस्कृति को मुख्य केंद्र में रखना होगा। इसलिए पश्चिमी जगत में मार्क्सवादी सिद्धांतों को नकारते हुए सामाजिक न्याय (सोशल जस्टिस) के नाम पर 1960 के दशक में कईं समाज — राष्ट्र विघटनकारी सिद्धांत उभरकर आए। वर्ग संघर्ष सिद्धांत की निरर्थकता को समझते हुए इन पश्चिमी ‘बुद्धिजीवियों’ ने संस्कृति, परिवार, परंपराओं, त्यौहारों, नैतिकता और धर्म जैसे सामाजिक मानदंडों को अस्वीकार करने, विरोध करने और विद्रोह करने के लिए सांस्कृतिक मार्गों के माध्यम से आरआरआर फॉर्मूला चुना, जिससे समाज को एक गहन खोखलेपन की ओर ले जाया जा सके। इस प्रकार मार्क्स के मूल सिद्धांत – आरआरआर – और सांस्कृतिक साधनों के माध्यम से नई प्रणालियों की स्थापना को कल्चरल मार्क्सिजम कहा जाता है। वैसे तो कल्चरल मार्क्सवाद का हिंदी अनुवाद सांस्कृतिक मार्क्सवाद होना चाहिए किंतु संस्कृति और कल्चर के अर्थ बहुत भिन्न होते हैं, इसलिए यह अनुवाद करना उचित नहीं है। तो आइए कल्चरल मार्क्सवाद के बारे में और बातें जानते हैं…

1924, जर्मनी में सामाजिक अनुसंधान संस्थान — जिसे प्रख्यात से फ्रैंकफर्ट स्कूल के नाम से जाना जाता है — के तहत उभरी कल्चरल मार्क्सिजम की विचारधारा को होर्खाइमर के मार्गदर्शन में स्थापित किया गया था।

दरअसल, फ्रैंकफर्ट स्कूल एक 11-सूत्री योजना प्रस्तुत करता है, जिन्हें वामपंथियों द्वारा जमीनी स्तर पर भारत के समकालीन परिदृश्य में लागू होता हुआ हम स्पष्ट रूप में देख पाते हैं। वे 11 सूत्र इस प्रकार है –

  • नस्लवाद से संबंधित अपराधों की मनगढ़ंत निर्मिति करना।
  • भ्रम की स्थिति उत्पन्न करने के लिए निरंतर परिवर्तन करना।
  • बच्चों को सेक्स और समलैंगिकता की शिक्षा देना।
  • स्कूलों और शिक्षकों के प्रभुत्व को कम करना।
  • मूल देशवासियों की पहचान को नष्ट करने के लिए व्यापक घुसपैठ कराना ।
  • अत्यधिक मद्यपान (शराब सेवन) को बढ़ावा देना।
  • चर्चों को खाली करना (भारत के संदर्भ में मंदिर व्यवस्था को अनेक प्रकार से क्षति पहुंचाना।)
  • पीड़ितों के विरुद्ध एक पक्षपाती एवं अविश्वसनीय न्यायव्यवस्था तैयार करना।
  • मीडिया पर नियंत्रण बनाए रखना।
  • परिवारिक विच्छेदन को प्रोत्साहित करना।

उपर्युक्त बातों से हम देख सकते हैं कि कल्चरल मार्क्सिजम तीन आयामों पर कार्य करता है-

विकल्प गढ़ना – किसी भी सत्य का, प्रथा का अथवा वर्षों से चली आ रही सामाजिक व्यवस्था (और अब प्रशासनिक एवं न्यायिक व्यवस्था का भी इसमें सम्मिलित है) के किसी भी आयाम का एक निराधार और अंततोगत्वा विनाशकारी विकल्प गढ़ना।

  • उस विकल्प से जुड़ी हुई झूठी कहानियां गढ़ना।
  • तदनंतर अपने क्षेत्र (सेक्टर्स) के माध्यम से उसे समाज में सरलता व सुचारू पूर्वक लागू करना।
  • वामपंथियों द्वारा विकल्प गढ़ने की यह तकनीक कई उदाहरणों में हमें स्पष्ट देखने को मिलती है जैसे लिंग और लैंगिकता से संबंधित मामलों में — जो कि, समाज और धर्म शास्त्र से बिल्कुल उलट हो — 2000 के दशक से कईं विमर्श गढ़े जा रहे हैं।
इन्हीं वामपंथियों की ‘जमीनी सेना’ –

एलजीबीटीक्यू (LGBTQE+) समुदाय द्वारा सक्रिय रूप से अपने अधिकारों की वकालत किया जाना एवं प्रायः विश्वविद्यालय परिसरों और सड़कों पर सतत उलजलूल विरोध प्रदर्शन करते रहना तो सर्वविदित है ही किंतु उन प्रदर्शनों में ‘अनिवार्य’ रूप से सनातन संस्कृति के विरूद्ध अपमानजनक भाषा के साथ भड़काऊ पोस्टर भी शामिल होते हैं। वर्तमान स्थिति इस हद तक बढ़ गई है कि शीर्ष अदालत इस निरर्थक मामले पर न केवल चर्चा कर रही है अपितु ‘उनके’ हक में निर्णय भी जारी कर रही है। ऐसे में द कश्मीर फाइल्स का वह बहुचर्चित डायलॉग स्मरण हो आता है कि “…..कृष्णा सरकार भले ही उनकी हो लेकिन सिस्टम तो हमारा है!”

इसी प्रकार वर्ष 2022, कर्नाटक में उभरा एक अनूठा, अकल्पनीय और अत्यंत निराधार ‘हिजाब विवाद’ — विद्यालय में सभी छात्रों के द्वारा समान गणवेश धारण करने के स्थापित मानदंडों के विरूद्ध — विद्रोह का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जहां गणवेश के स्थान पर इस्लाम मज़हब की लड़कियां हिजाब पहनने को उतारू थीं।

इसके अलावा, हिंदू ग्रंथों में निहित ऐतिहासिक पात्रों के मूल चरित्र का ठीक उल्टा चित्रण करना तो समय – समय पर धारावाहिक एवं सर्वाधिक फिल्मों से झलकता आया है। उदाहरण के लिए, रावण का अति विद्वान होने के चलते उसका अपार महिमामंडन करना, उसके द्वारा की गई अनैतिकता को सही सिद्ध करते हुए उसकी ‘वैकल्पिक’ छवि निर्मित करना एवं भगवान रघुनंदन द्वारा लिए गए निर्णयों को सही – गलत की कसौटी पर कसना, विकल्प खड़ा करने का ‘सर्वोत्तम’ उदाहरण है।

कुछ माह पूर्व इसी विकल्प विमर्श का एक और अटपटा उदाहरण ‘वर्ड मैग्जीन’ के कवर पेज पर देखने को मिला, जहां कवर पेज पर एलजीबीटीक्यू समुदाय वाले पुरुष मॉडल्स को साड़ी पहने दिखाया गया, इसके अंतर्गत सामान्य सामाजिक मानदंड का विकल्प यूं तैयार किया गया कि “साड़ी सभी के लिए है (साड़ी बिलोंग्स टू एवरीवन), केवल स्त्रियां ही साड़ी क्यों पहने?” इससे कुछ समय पूर्व जेएनयू के पुरूष छात्रों को भी इसी तर्क के आधार पर साड़ी पहन कर प्रदर्शन करते पाया गया था, खैर इसे निरर्थक प्रगतिशीलता और क्या ही कहा जा सकता है!

इसी के साथ भारतीय त्यौहारों को वैकल्पिक अर्थ देने की प्रवृत्ति भी हम कईं वर्षों से देखते आ रहे हैं। उदाहरण के लिए, होली को यौन शोषण और छेड़छाड़ से जुड़े त्यौहार के रूप में या दिवाली को प्रदूषण में योगदान देने वाले उत्सव के रूप में चित्रित करना एक अपरंपरागत दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो इन उत्सवों से जुड़ी उमंग को खराब कर हिंदुओं में स्वयं के त्यौहारों के प्रति एक पश्चाताप उत्पन्न करता है।

तत्पश्चात वामपंथी इन ‘विकल्पों’ के माध्यम से व्यवस्थित रूप में एक कथा का निर्माण करके और बाद में अपने सेक्टर्स के माध्यम से प्रसारित कर इस दिशा में आगे बढ़ते हैं।

कल्चरल मार्क्सवाद – जिसे क्रिटिकल थ्योरी के रूप में भी जाना जाता है – के चार प्रमुख एजेंट हैं :

  • शिक्षाविदों
  • मास मीडिया
  • बॉलीवुड
  • औपचारिक संस्थान

शिक्षाविद – कालानुक्रमिक तरीके से शिक्षाविदों में इस विचारधारा अर्थात कल्चरल मार्क्सिजम के प्रभाव का निरीक्षण किया जा सकता है। इसके कुछ चरण हैं जिन्हें प्रसन्न देशपांडे ने अपनी पुस्तक ‘डिसइंडियनाइजिंग इंडियंस’ (अंग्रेजी पुस्तक) में दिए गए हैं, जिसमें प्रमुख हैं-

  • औपनिवेशिक चरण: भारत में स्वतंत्रता के बाद के शिक्षाविद
  • छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी चरण
  • क्रिटिकल थ्योरी चरण।
  • उत्तर आधुनिकतावाद (पोस्ट मॉडर्निज्म)
  • उत्तरसंरचनावाद (पोस्ट स्ट्रक्चरलिज्म)
  • द न्यू लेफ्ट : मार्क्सवाद का अंतिम चरण
  • अकादमिक बेमेलपन
  • शिक्षाविदों के माध्यम से नया वामपंथ।
  • कल्चरल अध्ययन
  • आइडेंटिटी पॉलिटिक्स (पहचान की राजनीति) शिक्षाविदों द्वारा खड़ी करना।

इनमें उत्तर-संरचनावाद, न्यू लेफ्ट, एकेडमिक मिसमैच आदि प्रमुख हैं। प्रसन्न देशपांडे जी के अनुसार, “डिकंस्ट्रक्शन साहित्यिक, सांस्कृतिक या ऐतिहासिक ग्रंथों के किसी विशेष अर्थ या व्याख्या की केंद्रीयता का विरोध करता है और आमतौर पर प्रचलित और सही अर्थ के विरुद्ध उनके अनिश्चित एवं अवधारणात्मक रूप से गढ़े हुए बिंदुओं का उपयोग करके उन्हें ‘डिकंस्ट्रक्ट’ करता है। इससे सामान्य व्यक्ति विषय वस्तु के प्राथमिक अर्थ को प्रतिस्थापित करके उस अर्थ को गलत मानकर वैकल्पिक अर्थ को अधिक प्राथमिकता देता है। (मूल अंग्रेजी भाषा में, यह अनुवादित उद्धरण है)

देशपांडे डिकंस्ट्रक्शन के उदाहरण बताते हुए आगे कहते हैं –

  • एकलव्य जातिवाद का शिकार है क्योंकि उच्च जाति के द्रोणाचार्य ने उसे तीरंदाजी में प्रशिक्षित करने से इनकार कर दिया था।
  • औरंगजेब एक धर्मनिरपेक्ष शासक के रूप में प्रस्तुत करना।
  • महिषासुर को पीड़ित के रूप में चित्रित करना।
  • बाली को छल का शिकार दिखाना
  • रावण को नायक के रूप में दिखाना।
  • मां सीता को श्री राम द्वारा उपेक्षा का शिकार दिखाना
  • कर्ण को पीड़ित दिखाना।
  • भारतीय परिवार में पिता या पितृवंश प्रमुख और दमनकारी शक्ति केंद्र के रूप में दिखाना एवं इस व्यवस्था के भीतर महिलाओं को दबाया जाता है, ऐसा चित्रित करना।
  • अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यक आबादी के सांस्कृतिक प्रभुत्व के शिकार के रूप में चित्रित करना।
  • महिलाएं, दलित और सभी प्रकार के अल्पसंख्यक (यौन, धार्मिक, जातीय और भाषाई) शिकार डिकाहना। (उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान दबा दी जाती है ऐसा चित्रित करना।)
  • राष्ट्रगान का प्रतिरोध करना (धार्मिक अधिकारों के बहाने)।
  • राष्ट्रगीत का प्रतिरोध करना (अल्पसंख्यक होने के बहाने)।
  • आज, दुर्भाग्य से छात्रों के ‘बौद्धिक ढांचे’ में इन उपरोक्त उदाहरणों को हम देख पाते हैं।

मास मीडिया – जब एक वर्ष पूर्व मेवात हिंसा भड़की थी, तो वामपंथी वेब मीडिया कंपनियों या ‘मीडिया जमात’ [द वायर, द क्विंट इत्यादि] ने इस बात पर जोर दिया कि यह बजरंग दल की गलती है। जबकि वास्तविकता कुछ और ही थी। मज़हब विशेष के लोग जब विरले ही पीड़ित होते हैं, तो इनका नाम न्यूज रिपोर्ट के शीर्षक में लिखा जाता है और विडंबना देखिए जब यही मज़हबी लोग लोग अपराधी होते हैं, तो इनका नाम परिवर्तित करके हिंदू नाम कर दिया जाता है, या नाम ही नहीं बताया जाता है। कईं मीडिया चैनल्स ने तथ्यात्मक तौर पर यह सिद्ध किया कि बजरंग दल के जुलूस को षडयंत्र के अंर्तगत मज़हबी समुदाय के लोगों द्वारा सुनियोजित तरीके से बाधित किया गया था। इस प्रकार मीडिया जमात ने इस पूरी घटना का एक वैकल्पिक अर्थ बनाने या सबसे अलोकप्रिय विमर्श को केंद्र में रखने के लिए यहां ‘डिकंस्ट्रक्शन’ सूत्र (फार्मूला) का पूरी तरह से उपयोग किया।

एक अन्य उदाहरण में पिछले वर्ष सितंबर माह में उज्जैन में घटित हुआ बलात्कार मामला मीडिया के इसी पाखंड को प्रदर्शित करता है, क्योंकि समाचार वेबसाइट्स ने बड़ी चतुराई से पुजारी राहुल शर्मा (जिसने पीड़ित छोटी लड़की को उसके शरीर को ढंकने के लिए भोजन और कपड़े देकर सहायता की और उसे खून बहते और अर्धनग्न स्थिति में देखने के बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया) का नाम छिपा दिया एवं इस मुद्दे को एक मीडिया कंपनी ने जातिगत रुख दे दिया।

बॉलीवुड – बॉलीवुड की कलात्मकता तो मानो जैसे हिंदू घृणा से प्रारंभ हो हिंदू घृणा पर समाप्त होती है। सकल आपराधिक, आतंकी एवं अनुचित मामलों को सीधे तौर पर हिंदुओं व सनातन धर्म से निसंकोच जोड़ने में बॉलीवुड के पटकथाकारों को अपनी शान लगती है । उदाहरण के लिए, एक वेब सीरीज ‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’ में बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों को एक हिंदू के साथ जोड़कर यूं दिखाया गया कि अपराधी के माथे पर एक टीका है और उसने ‘रुद्राक्ष माला’ पहनी है। 90 के दशक में आई ‘दुश्मन’ फिल्म में आशुतोष राणा का पात्र एक सीरियल बलात्कारी दिखाया जाता है, जो लगभग हर आपत्तिजनक डायलॉग के पूर्व ‘कसम भोला की’ कहता दिखाया गया है, वह पात्र भगवान शिव की तस्वीर अपने घर में रखता है एवं पात्र का नाम गोकुल पंडित है। इसके अलावा 70 के दशक की हिट फिल्म ‘बेमिसाल’ के एक दृश्य में मुगल आक्रांताओं के महिमामंडन को भी देखा जा सकता है। इसके साथ ही शुद्ध हिंदी भाषी पात्रों को हमेशा कमज़ोर और उपहास करने वाले विषय के रूप में दिखाया जाता है। खैर, सूची बहुत लंबी है किंतु आवश्यक है कि बॉलीवुड का यह दुस्साहस जनता में बॉलीवुड के प्रति आक्रोश और असहिष्णुता उत्पन्न करे जिससे बॉलीवुड ‘कलात्मकता’ की स्वतन्त्रता का ‘संतुलित और निष्पक्ष’ सदुपयोग कर सके।

शासकीय संस्थान – शासकीय संस्थानों में इस विष का प्रवेश करना हमारी कल्पना से बहुत अधिक घातक सिद्ध होने वाला है। उदाहरणार्थ हाल ही में वित्त मंत्रालय ने कहा कि एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों के लिए अब संयुक्त बैंक खाता खोलने या समलैंगिक रिश्ते में रहने वाले व्यक्ति को लाभार्थी के रूप में नामित करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। कितनी विचित्र बात है कि जिस विचारधारा को लेकर समाज में व्यापक स्तर पर द्वंदात्मक स्थिति बनी हुई है, जिस समुदाय की मांगों एवं उनकी नैतिकता पर आज भी समाज के अधिकांशत: हिस्से प्रश्न चिन्ह लगाते है, जिस समुदाय की संरचना कुत्सित मानसिकता की खोखली और निरर्थक उपज है उसे कानूनी अधिकार प्रदान करना कहां तक उचित है???

इसी प्रकार हमारी परम सम्माननीय न्यायपालिका भी ‘न्यायिक’ निर्णय लिए जाने के मामले में अल्पसंख्यक समुदाय को कभी निराश नहीं करती। अभी हाल ही में सितंबर माह में उत्तर प्रदेश में माफियाओं और अपराधियों को नेस्तनाबूत करने के लिए उनकी अवैध संपत्तियों को बुलडोजर से ध्वस्त करने की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों का कहना था कि “अगर ध्वस्तीकरण की कार्रवाइयों को 2 सप्ताह के लिए रोक दिया जाए तो आसमान नहीं गिर जाएगा। अपने हाथों को रोकिए। 15 दिन में क्या हो जाएगा?” इसी प्रकार समलैंगिक विवाह में भी पांच न्यायधीशों की पीठ ने 3:2 के रूप में निर्णय दिया था जहां दो न्यायधीशों का यह निर्णय था कि समलैंगिक विवाह को कानूनन कर देना चाहिए, वाह री मेरी न्यायपालिका वाह!!!

एक ओर जहां न्यायपालिका निर्णय लेने के लिए पूरी तरह से कानूनी विश्लेषण और संवैधानिक सिद्धांतों पर भरोसा करने का दावा करती है, पूर्वाग्रह के बजाय निष्पक्षता और कानूनी अखंडता के प्रति प्रतिबद्धता पर जोर देती है; जबकि दूसरी ओर, जब हिंदू भावनाओं की बात आती है, तो इन मापदंडों को हमेशा अलग रखा जाता है, आखिर क्यों?

ऐसे में न्यायपालिका में व्याप्त संभावित पूर्वाग्रह का सूक्ष्म विश्लेषण करने की अति आवश्यकता प्रतीत होती है, इसके साथ ही विदेशी अथवा बाहरी हस्तक्षेप / प्रभावों के प्रश्न पर विचार किए जाने जैसा भी है।

इस तरह हमने देश में उभर रही तमाम समस्याओं के मूल कारण का विश्लेषण समझ लिया है, तो फिर इसका समाधान क्या होना चाहिए यह विचारणीय है। कभी-कभी दुश्मनों की रणनीति दुश्मनों पर ही लागू करना, हमारे लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है। लेकिन इसके लिए, किसी को समस्या की सावधानीपूर्वक पड़ताल करने की आवश्यकता होती है।

महाभारत के शल्य पर्व में, दुर्योधन और भीम के बीच गदा लड़ाई का एक दृश्य है, जहां दोनों के बीच का गदा युद्ध समाप्त होते नहीं दिख रहा था, तब भगवान श्री कृष्ण ने भीम को दुर्योधन की जांघ पर आक्रमण करने का संकेत दिया, यद्यपि यह युद्ध के नियमों के विरुद्ध है, फिर भी स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने ऐसा करने की आज्ञा दी है। युधिष्ठिर – जो श्री कृष्ण के साथ खड़े थे– ने युद्ध के नियम उल्लंघन करने हेतु प्रश्नवाचक दृष्टि से श्रीकृष्ण की ओर देखा, तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा ‘मायावी मायया वध्य:’। “माया वाले को माया से ही मारा जा सकता है।” इसलिए जब समाधान की बात आती है तो भगवान श्री कृष्ण की इस सीख को हमेशा याद रखने की आवश्यकता है।

 

 

 

Topics: हिंदू ग्रंथकार्ल मार्क्सwho was karl marxkarl marx literaturekarl marx biographyCultural Marxismkarl marx lifeमार्क्सवादनस्लवादमार्क्सवादी विचारधारामार्क्सकल्चरल मार्क्सवाद
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

UK Police Diversity

यूके में पुलिस में डाइवर्सिटी के नाम पर श्वेत नागरिकों की नियुक्ति पर अस्थाई प्रतिबंध, छिड़ी नस्लवाद की बहस

प्रतीकात्मक तस्वीर

ब्रिटेन की जेनेरेशन जेड: न ही ब्रिटिश होने पर गर्व, न ही देश के लिए लड़ने जाएगी और यूके को कहा नस्लवादी

लोकमंथन में प्रस्तुति देते कलाकार

भारतीयता का संगम

विदेशी शक्तियां भी भारत को आगे बढ़ते नहीं देख पा रही हैं

भारत का ‘कलरव’ नष्ट करने का कुत्सित षड़यंत्र ‘मंत्र विप्लव’

विजयादशमी उत्सव में श्री दत्तात्रेय होसबाले (बाएं से दूसरे), श्री मोहनराव भागवत, श्री शंकर महादेवन एवं अन्य अतिथि

सशक्त और एकजुट समाज के लिए काम कर रहा संघ

डॉ मोहन भागवत, सरसंघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

सरसंघचालक ने कहा, सर्वभक्षी ताकतों ने मार्क्स को भुला रखा है; एक दशक से शांत मणिपुर में अचानक आपसी फूट की आग कैसे लगी ?

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Tatto in islam

देवबंद के मौलाना ने टैटू को बताया इस्लाम और शरिया के खिलाफ, मेंहदी को लेकर कर चुके हैं बयानबाजी

मुरीदके में लश्कर के ठिकाने को भारतीय सेना ने किया नेस्तेनाबूद

…भय बिनु होइ न प्रीति!

Lashkar terrorist appointed in Washington

व्हाइट हाउस में लश्कर के संदिग्ध आतंकी की नियुक्ति, बनाया गया बोर्ड सदस्य

Chinese Airlines In Nepal tax

नेपाल में चीनी एयरलाइंस कंपनियां नहीं देतीं टैक्स, की मनमानी: 400 करोड़ रुपये टैक्स बकाया

Indian army

भारत-पाकिस्तान सीजफायर: भारतीय सेना ने खारिज की 18 मई की समाप्ति की अफवाह, पाक ने फैलाया था ये झूठ

Harman singh Kapoor beaten by Pakistanis

कौन हैं हरमन सिंह और क्यों किया गया उन्हें गिरफ्तार?

Illegal Bangladeshi caught in Uttarakhand

देहरादून-हरिद्वार में बांग्लादेशी घुसपैठिये पकड़े गए, सत्यापन अभियान तेज

Center cuts Mao Fund in Kerala

केरल के माओवादी फंड में केंद्र सरकार ने की कटौती, जानें क्यों?

dr muhammad yunus

चीन के इशारे पर नाच रहे बांग्लादेश को तगड़ा झटका, भारत ने कपड़ों समेत कई सामानों पर लगाया प्रतिबंध

EOS-09

ISRO ने EOS-09 सैटेलाइट सफलतापूर्वक लॉन्च किया, आतंकवाद विरोधी ऑपरेशनों में निभाएगा अहम भूमिका

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies