संघ

संघ कार्य एक कठिन साधना

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हितेश शंकर

राष्ट्र सेवक की अवधारणा में निहित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा एक अनूठा उदाहरण है, जो व्यक्ति की आकांक्षा से जन्म लेकर सामाजिक जागरूकता और राष्ट्र निर्माण का माध्यम बनी है। संघ कार्य केवल संगठनात्मक कामकाज तक सीमित नहीं है, बल्कि एक गहन और ​कठिन साधना है।

संघ कार्य और विचार, सत्य पर आधारित हैं। किसी के विरोध अथवा द्वेष पर नहीं। संघ को समझना आसान भी है और असंभव भी। आप श्रद्धा, भक्तिभाव और पवित्र मन से जिज्ञासा लेकर आएंगे तो संघ को समझना आसान है, लेकिन यदि मन में किसी प्रकार का पूर्वाग्रह रखकर अथवा किसी उद्देश्य को लेकर आएंगे तो संघ समझ में नहीं आएगा।

संघ को सुनकर, पढ़कर समझना टेढ़ी खीर है। संगठन का बनना, चलना और इतने लंबे समय तक अपने ध्येय और स्वभाव को शाश्वत तौर पर साधे रहना कोई सामान्य बात नहीं है। यह सामान्य सांगठनिक क्रियाकलाप नहीं, बल्कि साधना की-सी स्थिति है। अन्य कोई संभवत: इस लंबी साधना में जड़ हो जाता, किन्तु यह अनूठी कार्यपद्धति है, जिसने संघ को चिरजीवंत बनाए रखा है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपने स्थापना काल से ही भारतीय समाज को एक सूत्र में बांधने और उसकी आत्मशक्ति को जाग्रत करने का कार्य किया है। इसका उद्देश्य हमेशा से हिंदू समाज को संगठित, सशक्त और संस्कारित करने का ही रहा है। भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक धारा को अक्षुण्ण रखने, नई पीढ़ी को पुरखों-परंपराओं से जोड़े रखते हुए भविष्य के लिए तैयार करने का यह अप्रतिम कार्य संघ अपने स्थापनाकाल से ही करता आ रहा है।

संघ की स्थापना 27 सितंबर, 1925 को विजयादशमी के दिन नागपुर के महाल इलाके में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा की गई थी। डॉ. हेडगेवार ने अपने गहन चिंतन और राष्ट्र के प्रति समर्पित दृष्टिकोण से यह महसूस किया कि हिंदू समाज में फैले विभाजन और कमजोरी को दूर किए बिना राष्ट्र का पुनरुत्थान कर पाना संभव नहीं है। स्थानीय लोगों ने जब पहले-पहल इसे देखा तो उन्हें यह एक साधारण व्यायामशाला ही प्रतीत हुई। लोगों को लगा भी कि डॉक्टरी की पढ़ाई पढ़ने के बाद ‘केशव जी’ ने यह क्या किया है? किन्तु संघ स्थापना का उद्देश्य केवल शारीरिक शक्ति नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त समाज का निर्माण करना था।

संघ की शुरुआत बड़े-बड़े लोगों की जगह छोटे-छोटे बाल स्वयंसेवकों के साथ हुई। सामाजिक एकता, सद्भाव और राष्ट्रभक्ति की भावना जाग्रत करने की संघ की यह दुरूह, संघर्षपूर्ण और दृढ़ संकल्पित यात्रा सतत
जारी है।

आज जब संघ अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है तो सामाजिक परिवर्तन के इस वैचारिक सांगठनिक अभियान की विस्तृत यात्रा के आयामों को समझना बेहद आवश्यक है। ‘पाञ्चजन्य’ के पन्ने सदा ही संघ के अनूठेपन को आत्मीयता और तथ्यों के साथ समाज के सामने रखने का प्रामाणिक स्रोत रहे हैं। आने वाले पूरे वर्ष में संघ से जुड़ी बौद्धिक जिज्ञासा को शांत करने के लिए इस विषय में अधिकतम जानकारी देने का हमारा प्रयास रहेगा।

संघ का इतिहास केवल संगठनात्मक गतिविधियों का दस्तावेज नहीं है, बल्कि एक दार्शनिक यात्रा का है। संघ का नेतृत्व सदा योग्य और समर्पित व्यक्तियों द्वारा किया गया है। संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार एक चिकित्सक थे और उनके बाद आने वाले सरसंघचालक भी अपने-अपने क्षेत्र में विशेषज्ञ रहे हैं। संघ के दूसरे सरसंघचालक श्री गुरुजी प्राणीशास्त्र, राजनीति विज्ञान व अंग्रेजी में निष्णात थे। संघ के तीसरे सरसंघचालक श्री बालासाहेब देवरस विधि स्नातक थे। चौथे सरसंघचालक श्री रज्जू भैया भौतिकी के प्रोफेसर के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सर्वाधिक लोकप्रिय व सफल प्राध्यापक थे। पांचवें सरसंघचालक श्री कुप्. सी. सुदर्शन दूरसंचार अभियंता थे और वर्तमान सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत पशु चिकित्सक की डिग्री प्राप्त हैं। संघ का नेतृत्व हमेशा उच्च शिक्षित प्राप्त और विविध क्षेत्रों के अनुभवी व्यक्तियों ने ही किया है।

स्वतंत्रता संग्राम में रा. स्व. संघ की भूमिका को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैलाई गईं। संघ के आलोचक कभी नहीं चाहते कि स्वतंत्रता आंदोलन में संघ की भूमिका कभी समग्रता से देश और समाज के सामने आए या इस विषय में तथ्यों पर कभी खुलकर चर्चा हो, लेकिन तथ्य यह है कि डॉ. हेडगेवार ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया था। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें दो बार जेल भी भेजा। एक बार 1921 में और फिर 1930 में।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब देश का विभाजन हुआ तो यह बेहद संघर्षपूर्ण समय था। उस समय संघ के स्वयंसेवकों ने लाखों लोगों की जान बचाई। शरणार्थियों की सहायता करने के लिए संघ ने करीब 3,000 राहत शिविर स्थापित किए थे। संघ के स्वयंसेवकों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए बड़ी संख्या में लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया था। गोवा मुक्ति संग्राम और भाग्यनगर सत्याग्रह भी स्वतंत्रता आंदोलन में संघ के योगदान को इंगित करने वाले महत्वपूर्ण अध्याय हैं।

1954 में संघ के स्वयंसेवकों ने दादरा और नगर हवेली को पुर्तगाली शासन से मुक्त करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। संघ के कार्यकर्ताओं ने देश की स्वतंत्रता के बाद भी सामाजिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। 1952 में वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना हुई, जो अब भारत के 52,000 गांवों में जनजातीय समुदायों के कल्याण के लिए कार्य कर रहा है।

क्षणिक राजनीति में समाज उलझे और लड़खड़ाए, इसकी बजाय राष्ट्रहित के दीर्घकालिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना संघ की कार्य और विचार पद्धति का स्वभाव है। उदाहरण के लिए, संघ ने अनुच्छेद-370 को हटाने की मांग 1950 के दशक से ही उठाई थी, जिसकी परिणति 2019 में इसके उन्मूलन के साथ हुई।

ऐसा कौन-सा सकारात्मक कार्य है जिसे संघ के स्वयंसेवक नहीं कर रहे हैं? समाज और जीवन के विविध क्षेत्रों में स्वयंसेवकों और संघ प्रेरित संगठनों ने निष्ठा, कर्मठता और संस्कारित शैली के माध्यम से अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है।

संघ का आनुषांगिक संगठन विद्या भारती आज देशभर में 20,000 से अधिक विद्यालयों का संचालन करता है। इन विद्यालयों में करीब 35 लाख छात्रों को शिक्षा दी जा रही है। संघ प्रेरणा से स्थापित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) आज दुनिया का सबसे बड़ा छात्र संगठन है, जो 4,500 से अधिक नगरों, ग्रामों और कस्बों में सक्रिय है।
1983 में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने अनुसूचित जातियों के उत्थान और सामाजिक समरसता के लिए समरसता मंच की स्थापना की थी। यह मंच जातिगत भेदभाव को समाप्त करने और समाज के सभी वर्गों के बीच समानता की भावना को बढ़ावा देने का कार्य कर रहा है। विहिप के प्रयासों से देशभर में कई धार्मिक और सामाजिक सुधार हुए हैं, जिनका उद्देश्य हिंदू समाज को एकजुट करना और इसके विभिन्न वर्गों के बीच सामंजस्य स्थापित करना है।

संघ ने कन्वर्जन को रोकने और जनजातीय समुदाय की पारंपरिक पहचान को अक्षुण्ण रखने के गहन प्रयास किए हैं। इसके परिणामस्वरूप ही कई राज्यों में कन्वर्जन विरोधी कानून पारित हुए हैं। संघ प्रेरित हिंदू स्वयंसेवक संघ (एचएसएस) 156 देशों में कार्यरत है, जो वैश्विक स्तर पर हिंदू समाज को संगठित और सशक्त बनाने का कार्य कर रहा है। संघ देश के भीतर और बाहर कई संकटों में राहत कार्य करता रहा है।​ किसी भी तरह की आपदा के दौरान संघ के स्वयंसेवक हमेशा सबसे पहले राहत पहुंचाने वाले होते हैं। फिर चाहे वह ओडिशा में आया सुपर साइक्लोन हो, भुज में आया भूकंप हो या चेन्नै में आई बाढ़।

संघ का कार्य केवल सामाजिक सेवा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बढ़ावा देना भी है। राम जन्मभूमि आंदोलन संघ के सबसे महत्वपूर्ण आंदोलनों में से एक रहा है, जिसका परिणाम आज अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के रूप में दिखाई दे रहा है। संघ ‘स्वदेशी’ विचारधारा को भी प्रोत्साहित करने का कार्य करता है जो ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसे अभियानों में प्रतिबिंबित होती है।

रा.स्व.संघ भारतीय समाज को उसकी जड़ों से जोड़ने और उसे जाग्रत करने की दिशा में कार्यरत है। संघ के स्वयंसेवक आज समाज के हर क्षेत्र में सक्रिय हैं, चाहे वह शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, व्यापार हो या सामाजिक सेवा। संघ ने यह प्रमाणित किया है कि जब समाज की सुप्त शक्तियों को जगाया जाता है, तो राष्ट्र निर्माण की दिशा में एक नई ऊर्जा का संचार होता है।

@hiteshshankar

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