हरियाणा की राजनीति में इस समय जलेबी चर्चा का विषय बनी हुई है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने गोहाना की मशहूर जलेबियां खाईं और मंच से जलेबी की फैक्ट्रियां लगाने, रोजगार उपलब्ध कराने और निर्यात बढ़ाने का वादा किया। लेकिन यह स्वादिष्ट मिठाई, जिसका भारत में सभी स्थानों पर एक अलग ही महत्व है, आखिरकार भारत में कैसे आई? इसका इतिहास बहुत पुराना और दिलचस्प है।
जलेबी की उत्पत्ति का संबंध फारस (अब ईरान) से है। फारसी भाषा में इसे “जुलबिया” कहा जाता है, और मध्य पूर्व के अन्य देशों में भी इस मिठाई को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इतिहासकारों का मानना है कि फारसी व्यापारियों, कारीगरों और मध्य पूर्वी आक्रमणकारियों के जरिए जलेबी भारत आई। यीस्ट से बनी चीज़ों का चलन भी अरब देशों से जुड़ा हुआ है, और वहां से यह मिठाई यूरोप, जर्मनी और उत्तरी अमेरिका तक फैल गई।
भारत में जलेबी की एंट्री
जलेबी का भारत में आगमन मध्यकाल में हुआ। 15वीं शताब्दी के अंत तक इस मिठाई ने भारत के त्योहारों, विवाह समारोहों और धार्मिक कार्यक्रमों में अपनी जगह बना ली थी। मंदिरों में इसे प्रसाद के रूप में भी बांटा जाने लगा, जिससे यह और भी प्रसिद्ध हो गई। भारत में इसे इतनी व्यापक लोकप्रियता मिली कि यह यहां की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बन गई।
भारत के विभिन्न हिस्सों में जलेबी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है और इसे विभिन्न तरह से खाया जाता है। उत्तर भारत में इसे “जलेबी” कहा जाता है, वहीं दक्षिण भारत में इसे “जेलबी” और उत्तर पूर्व में “जिलापी” के नाम से पुकारा जाता है। गुजरात में इसे “फाफड़ा” के साथ खाने की परंपरा है, जबकि मध्य भारत में इसे “पोहा” के साथ खाया जाता है। उत्तर भारत में लोग इसे दही के साथ खाते हैं, और कुछ लोग इसे दूध या रबड़ी में भिगोकर भी खाते हैं। आज भी यह मिठाई भारतीय त्योहारों, जैसे दिवाली, होली और स्वतंत्रता दिवस, का एक प्रमुख हिस्सा है।
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