उत्तर बस्तर के कांकेर जिले के दुर्गकोन्दल में एक गांव है-आमाकढ़। इसी गांव में गौतरियाराम विश्वकर्मा रहते हैं। घूम-घम कर मलेरिया की जांच के लिए संदिग्ध मरीजों के रक्त नमूने लेना, उनकी जांच करवाना और मरीजों का इलाज कराना उनका काम है। इसमें कई बार उन्होंने नक्सलियों की भी मदद की है।
14 अगस्त, 2018 को अपना काम पूरा कर गौतरियाराम सो रहे थे। अगले दिन 15 अगस्त का कार्यक्रम था, जिसमें उन्हें शामिल होना था। रात एक बजे किसी ने दरवाजा खटखटाया। उन्होंने दरवाजा खोला।
सामने वर्दी में कुछ बंदूकधारी खड़े थे। उन्होंने गौतरियाराम से नाम पूछा। जब उन्होंने अपना नाम बताया तो नक्सलियों ने उन्हें बाहर खींच लिया और अपने साथ जंगल ले गए।
वहां उन पर आरोप लगाया गया वे अब उनके खून के नमूने लेने नहीं आते। नक्सलियों ने उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया। गौतरियाराम को नक्सलियों ने तीन गोलियां मारीं।
एक गोली उनके सीने में, एक पेट में और एक कमर में लगी। जब वह बेसुध होकर गिर गए तो नक्सलियों ने उन पर लात-घूंसे बरसाए। अंत में गौतरियाराम को मरा हुए मान कर नक्सली वहां से चले गए।
हालांकि वे किसी तरह बच तो गए, लेकिन नक्सलियों ने उनकी आजीविका के रास्ते ही बंद कर दिए। ऊपर से इलाज पर लंबा-चौड़ा खर्च। आज स्थिति यह है कि उनका परिवार कर्ज में डूबा हुआ है।
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