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सनातन के विरुद्ध षड्यंत्र

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अरुण कुमार सिंह

गत दिनों यह समाचार आया कि विश्व प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर में प्रसाद के लिए जो लड्डू तैयार होते हैं, उनमें घी के स्थान पर गाय की चर्बी और मछली के तेल उपयोग किया जा रहा है। इसके बाद तो पूरे सनातन समाज में सन्नाटा छा गया। संतों और अन्य लोगों ने इसके विरोध में मोर्चा खोला। इसी बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से इस संबंध में बात की और राज्य सरकार से इसकी पूरी जानकारी मांगी। यही नहीं, श्री नड्डा ने देश के हिंदुओं को आश्वस्त किया है कि वे इस मामले की जांच ‘फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड आथरिटी आफ इंडिया’ से कराकर दोषियों को सजा दिलाएंगे। वहीं आंध्र प्रदेश के उप मुख्यमंत्री पवन कल्याण ने इस मामले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी।

उन्होंने कहा, ‘‘यह मामला मंदिरों, उनकी भूमि और अन्य अनुष्ठानिक प्रथाओं के कथित अपमान से संबंधित मुद्दों पर प्रकाश डालता है। एक सनातन धर्म रक्षण बोर्ड गठित करने का समय आ गया है।’’ पवन कल्याण इसे महापाप मानते हैं। यही कारण है कि उन्होंने इस पाप के प्रायश्चित के लिए 11 दिन का एक अनुष्ठान किया। इसके अंतर्गत उन्होंने विजयवाडा स्थित दुर्गा मल्लेश्वर स्वामी मंदिर में झाड़ू भी लगाई। उन्होंने यह भी कहा कि 11 दिन के बाद वे भगवान वेंकटेश के दरबार में जाकर इस बात के लिए क्षमा मांगेंगे कि वे इस महापाप को रोक नहीं पाए।
हालांकि अब मंदिर प्रशासन ने कहा है कि वर्तमान में जो प्रसाद तैयार हो रहा है, वह विशुद्ध है। उसमें मिलावट नहीं हो रही है। इससे पहले मंदिर परिसर का शुद्धिकरण किया गया। वहां के पुजारियों ने शुद्धि अनुष्ठान किया।

ऐसे हुआ ‘पाप’ उजागर

आंध्र प्रदेश में इस वर्ष जून में सत्ता परिवर्तन हुआ और चंद्रबाबू नायडू मुख्यमंत्री बने। सत्ता संभालते ही उन्होंने मंदिर के लड्डुओं में मिलावट की शंका व्यक्त की। इसके बाद मंदिर प्रशासन ने आपूर्ति किए गए घी की जांच करने के लिए उसके नमूने गुजरात स्थित डेयरी विकास बोर्ड की प्रयोगशाला ‘सेंटर आफ एनालिसिस एंड लर्निंग इन लाइव स्टॉक एंड फूड’ भेजे थे। वहां हुई जांच से पता चला कि घी में मिलावट हुई है। घी के नमूनों में गाय की चर्बी, मछली का तेल, सोयाबीन, सूरजमुखी, जैतून का तेल, गेहूं, मक्का, कॉटन सीड, नारियल, पाम आयल जैसे तत्व पाए गए।

इसी रपट के आधार पर मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कुछ दिन पहले कहा था कि तिरुपति मंदिर के प्रसाद में मिलावट की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिए जो भी दोषी हैं, उन्हें सजा अवश्य दी जाएगी। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी पर चारों ओर से अंगुली उठ रही है। यहां तक कि चंद्रबाबू नायडू ने भी उन्हीं को लक्षित करके उपरोक्त बयान दिया। इसके उत्तर में जगनमोहन रेड्डी ने कहा कि चंद्रबाबू नायडू राजनीतिक लाभ के लिए ऐसी बातें कर रहे हैं। इसके साथ ही उन्होेंने इस मामले की जांच के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखा है।

विश्व प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर

प्रतिदिन बनते हैं तीन लाख लड्डू

तिरुपति मंदिर की रसोई में प्रतिदिन तीन लाख लड्डू बनते हैं। यह परंपरा 300 वर्ष से भी पुरानी है। लड्डू बनाने के लिए हर महीने 42,000 किलो घी, 22,500 किलो काजू, 15,000 किलो किशमिश और 6,000 किलो इलायची लगती है। लड्डू तीन प्रकार के होते हैं-40 ग्राम, 175 ग्राम और 750 ग्राम। छोटे लड्डू भक्तों को नि:शुल्क दिए जाते हैं। लड्डओं की बिक्री से मंदिर प्रबंधन को प्रतिवर्ष लगभग 500 करोड़ रुपए की आय होती है।

भले ही जगनमोहन रेड्डी अपने बचाव में कुछ भी कहें या करें, लेकिन जांच में यह बात तो सही पाई गई है कि प्रसाद में मिलावट की जा रही थी और इसकी शुरुआत उनके कार्यकाल में ही हुई थी। उन्होंने घी की आपूर्ति करने वाली कंपनियों के लिए नियमों में छूट भी दी थी। मिलावट की बात तिरुमला तिरुपति देवस्थनानम् बोर्ड के कार्यकारी अधिकारी श्यामल राव ने भी स्वीकारी है। उन्होंने कहा, ‘‘आपूर्तिकर्ताओं ने मंदिर में जांच की सुविधा न होने और बाहरी प्रयोगशाला का उपयोग नहीं किए जाने का लाभ उठाया। घी की गुणवत्ता में भारी गिरावट आई है। मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने घी के साथ लड्डू की गुणवत्ता पर चिंता व्यक्त की थी और चर्बी होने की बात कही थी। तब चार ट्रक घी को जांच के लिए भेजा गया था। रपट आने के बाद आपूर्ति रोक दी गई है और ठेकेदार के विरुद्ध भी कार्रवाई की गई है।’’

उल्लेखनीय है कि तिरुपति मंदिर का संचालन ‘तिरुमला तिरुपति देवस्थनानम् बोर्ड’ करता है। चूंकि मंदिर राज्य सरकार के अधीन है इसलिए इस बोर्ड के अधिकारियों की नियुक्ति सरकार ही करती है। यही कारण है कि मंदिर के लिए बनने वाले प्रसाद की सामग्री ठेकेदारों के माध्यम से जुटाई जाती है। इसके लिए समय-समय पर निविदा निकाली जाती है। इसमें ठेकेदार का चयन होता है। अब जब कोई भी ठेकेदार सामग्री की आपूर्ति करेगा तो उससे गुणवत्ता की आशा नहीं की जा सकती है। वह अधिक कमाई के लिए घटिया से घटिया सामग्री की आपूर्ति करेगा। इस मामले में भी यही हुआ है। इसलिए कुछ संतों ने कहा भी है कि मंदिर के प्रसाद में मिलावट मंदिर पर सरकारी कब्जे के कारण हो रही है। इसलिए संतों ने एक बार फिर से मांग की है कि मंदिरों को सरकारी कब्जे से मुक्त किया जाना चाहिए।

 

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