मत अभिमत

ईरान का इजरायल पर हमला और उसे सही ठहराता भारत का लिबरल्स समूह

Published by
सोनाली मिश्रा

हिजबुल्ला प्रमुख नसरुल्ला की इजरायल के हमले में मौत के बाद इजरायल पर कल रात को ईरान ने हमला किया। यह बहुत ही हैरानी की बात थी कि भारत में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिसकी संवेदनशीलता बहुत ही सीमित है और एकांगी है। वह 7 अक्टूबर 2023 को इजरायल पर हमास के हमलों को क्रांति कहता है और जश्न मनाता है और जब इजरायल वापस हमला करता है तो वह मानवता की दुहाई देते हुए आँसू बहाता है।

यह वह वर्ग है जो इजरायल पर लेबनान के हमलों का समर्थन करता है और जब नसरुल्ला मारा जाता है और लेबनान पर इजरायल हमला करता है, तब वह आँसू बहाता है। अब जब ईरान ने इजरायल पर हमले किये हैं तो वह वर्ग फिर से जश्न मनाने लगा है। यह और भी दुख की बात है कि यही वर्ग जब ईरान की सरकार वहाँ की मुस्लिम महिलाओं पर केवल हिजाब न पहनने को लेकर तरह-तरह के अत्याचार करती है, उन्हें जान से मारती है, और इतना ही नहीं वहाँ के उदारवादी पुरुषों को भी महिलाओं का पक्ष लेने पर मौत के घाट उतारती है, एकदम चुप रहता है और किसी भी तरह की इंसानियत की दुहाई नहीं देता है।

मगर यदि अब इजरायल अपने ऊपर हुए हमलों का बदला लेता है, जैसा कि इजरायल की ओर से प्रतिक्रिया आई है कि ईरान ने हमला करके बहुत गलत किया है तो यही वर्ग आँसू बहाने के लिए आ जाएगा। जैसे ही ईरान ने इजरायल पर हमला किया तो कट्टरपंथी मानसिकता वाली साइमा ने एक ट्वीट किया जिसमें लिखा था कि

“हम अमन चाहते हैं मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़

गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही”

साइमा जैसे लोगों का जंग और जुल्म का दायरा दरअसल बहुत तंग है। यह इतना तंग है कि इसमें केवल कट्टरपंथी मानसिकता की ही पीड़ा आ सकती है।

क्या यही कारण है कि जो राना अयूब और साइमा जैसे लोग ईरान द्वारा इजरायल पर किये जा रहे हमले पर बात करते हैं, इजरायल द्वारा गाजा या लेबनान पर किये जा रहे हमलों पर बात करते हैं, मगर वे लोग अफगानिस्तान और ईरान में मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं के साथ जो किया जा रहा है उस पर चुप्पी साध लेते हैं?

ईरान द्वारा इजरायल पर हुए हमले को लेकर राना अयूब ने ट्वीट किया कि ईरान के टेलीवीजन ईरान में सेलब्रैशन और तेल अवीव पर दागे गए मिसाइल के बीच बंटे हैं।

दुर्भाग्य की बात यह है कि राना अयूब जैसी औरतों को तब टेलीविज़न स्क्रीन नहीं दिखती हैं, जब महसा अमीन जैसी लड़कियों को केवल इसलिए अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है कि उन्होनें हिजाब सही से नहीं पहना था।

ईरान में हजारों लड़कियों के साथ अत्याचार ईरान की खमैनी सरकार कर रही है। असंख्य लड़कियों को मारा जा चुका है और न जाने कितनी अभी जेल में अपनी मौत का इंतजार कर रही हैं। मगर साइमा या फिर राना अयूब जैसी औरतें एक शब्द भी उन लड़कियों के पक्ष मे नहीं बोली थीं। क्या उनके साथ ज़ुल्म नहीं हो रहा था? या फिर ज़ुल्म की परिभाषा उनके लिए शिर्क तक ही सीमित है।

मजे की बात यह भी है कि जो वर्ग ईरान द्वारा इजरायल पर हमले का जश्न मना रहा है, उसे इशारों इशारों मे उचित बता रहा है, उन्हें शायद यह भी डर है कि इजरायल ईरान पर हमला कर सकता है और युद्ध का दायरा बढ़ेगा। इसे लेकर वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने एक्स पर पोस्ट किया कि कैसे लोग एक चेहरे पर दो चेहरे लगा लेते हैं

वैसे इस मामले में रविश कुमार जैसे लोग भी पीछे नहीं रहे। रविश ने एक बार फिर परोक्ष रूप से प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते हुए एक्स पर लिखा कि फोन कर और फ़ोटो खिंचाकर युद्ध रुकवाने वाले नेताओं की परीक्षा का समय है। इन सब की नौटंकियों और समझौतों ने दुनिया को युद्ध में झोंक दिया है।

इजरायल डिफेन्स फोर्सेस ने एक्स पर अपनी पोस्ट में लिखा है ईरानी मिसाइल्स येरूशलम में पुराने शहर पर बरस रही हैं, जो मुस्लिम, ईसाई और यहूदियों के लिए पवित्र जगह है।

भारत का लिबरल गिरोह जाहिर एक बार फिर से इजरायल को ही निशाने पर ले रहा है। उसके अनुसार नेतन्याहू ही आने वाले युद्ध के लिए जिम्मेदार है। ईरान द्वारा इजरायल पर किये जा रहे हमले की निंदा न करते हुए केवल यही सुर अलापा जा रहा है कि इजरायल का वर्तमान नेतृत्व ही इस युद्ध के लिए जिम्मेदार है।

यह वही वर्ग है जो कभी भी ईरानी हुकूमत द्वारा वहाँ की मुस्लिम लड़कियों पर किये जा रहे अत्याचार पर शायद कभी भी कुछ नहीं कहता है। वहाँ पर ईरानी हुकूमत जिस प्रकार उदारवादी युवाओं को मार रही है उस पर मौज रहता है। यह संवेदना इस सीमा तक सिलेक्टिव क्यों है? यह वही वर्ग है जो यहूदियों और हिंदुओं पर उनके धार्मिक अस्तित्व पर हो रहे अत्याचारों पर मौन रहता है और इतना ही नहीं पड़ोसी बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के गिरने के बाद वहाँ पर हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचारों पर भी चुप रहता है और यहाँ तक कि उन्हें नकारता भी है।

 

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