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इस्लामिक कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेकता बांग्लादेश, अब पाठ्यक्रम समन्वय समिति को किया गया भंग

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सोनाली मिश्रा

कथित नए बांग्लादेश में हिंदुओं को उनकी ही भूमि पर उनकी ही देवी की पूजा के उत्सव को लेकर धमकियाँ मिल रही हैं और असंख्य अत्याचार हो रहे हैं। वह अपनी पूर्वी पाकिस्तान की पहचान वापस पाने के लिए लालायित है, उसी नए बांग्लादेश में अब एक और नया विवाद आरंभ हो गया है। नए बांग्लादेश में नई आजादी के बाद पाठ्यक्रम समन्वय समिति बनाई गई थी, जो पाठ्यक्रम को संशोधित करती। उस नई समिति को भी भंग कर दिया गया है। उसे समाप्त कर दिया गया है। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार जहां हर मौके पर कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेकते हुई दिखाई दे रही है तो वहीं पाठ्यक्रम वाले मामले पर भी वह कट्टरपंथियों के सामने ही घुटने टेकती हुई दिखाई दी और जिसे लेकर लोगों में असंतोष है।

शनिवार को शिक्षा मंत्रालय ने समिति को भंग कर दिया। उससे पहले कई मजहबी समूहों ने समिति के दो सदस्यों के नामों पर आपत्ति दर्ज की थी। ये नाम हैं समीना लुथफा जो ढाका यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र की एसोसिएट प्रोफेसर हैं तो वहीं दूसरे हैं कमरुल हसन मामून, जो ढाका यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर हैं। इन दोनों के नामों को लेकर यह आपत्ति थी कि ये दोनों ही लोग इस्लाम के विरोधी हैं।

डेली स्टार के अनुसार यह फैसला तब लिया गया जब कई मजहबी संगठनों ने यह आलोचना की कि आखिर प्राथमिक और सेकन्डेरी स्कूल की किताबों के संशोधन के लिए जो दस सदस्यीय समन्वय समिति बनाई गई थी, उसमें कोई इस्लामिक विशेषज्ञ क्यों नहीं शामिल किया गया? कुछ कट्टरपंथी मजहबी समूह सोशल मीडिया पर लगभग एक सप्ताह से इन दोनों के खिलाफ लिखते हुए आ रहे थे और यह भी सच है कि इन दोनों शिक्षकों को भी समर्थन मिल रहा था।

यह भी हैरानी की बात है कि जिन दोनों प्रोफेसर के नामों पर मजहबी संगठनों को ऐतराज था, और जिनके बारे में यह कहा जा रहा था कि वे मजहब विरोधी हैं, वे दोनों ही प्रोफेसर यूनिवर्सिटी टीचर्स नेटवर्क के सदस्य थे, जिन्होंने शेख हसीना सरकार के खिलाफ क्रांति में योगदान दिया था और शेख हसीना को देश से भगाने में उस संगठन की बहुत बड़ी भूमिका थी। शेख हसीना को देश छोड़कर भागने के लिए मजबूर करने वाले संगठन के इन दोनों ही सक्रिय सदस्यों के खिलाफ शिकायत करने वाले कट्टरपंथी मजहबी संगठनों में जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत-ए-इस्लाम शामिल हैं। और जैसे ही शिकायत की आवाज तेज हुई, कथित मजबूत यूनुस्त सरकार ने अपने कदम वापस खींचते हुए पूरी समिति को ही भंग कर दिया।

इस फैसले के विरोध में हैं नागरिक

ऐसा प्रतीत होता है कि मोहम्मद यूनुस को सत्ता तो सौंप दी गई है और यूनुस ने सेना को भी प्रशासनिक अधिकार दे दिए हैं, मगर फिर भी यूनुस सरकार मजहबी कट्टरपंथियों के आगे घुटने लगातार टेकती हुई दिखाई दे रही है। प्रोफेसर को लेकर जैसे ही निर्णय लिया गया और इसकी सूचना फैली, वैसे ही लोगों के भीतर असंतोष उत्पन्न हो गया और शिक्षा मंत्रालय के पूरी समिति को भंग किए जाने के बाद राजधानी के शाहबाग में ‘शिक्षकों-शिक्षकों-अभिभावकों’ के बैनर तले रैली हुई, जिसमें वक्ताओं ने कहा कि यह फैसला सरकार की गुलामी को दर्शाता है।

प्रश्न यही उठता है कि क्या सरकार वास्तव में गुलाम हो गई है? आखिर सरकार वह कदम क्यों नहीं उठा रही है, जिसे उठाने का दावा करके शेख हसीना को सत्ता से बेदखल किया गया? या फिर यह कहा जाए कि शेख हसीना के सत्ता मे रहते हुए कट्टरपंथी मजहबी दुकानें उस गति से नहीं चल पा रही थीं, जिस गति से अभी चल रही है? यह भी कहा जा रहा है कि इतिहास संबंधी विषयों की विषयवस्तु में परिवर्तन किया जाएगा।

ट्रांसपेरेंसी इंटेरनेशनल बांग्लादेश ने की आलोचना

यूनुस सरकार के इस फैसले का विरोध केवल आम लोगों ने ही नहीं किया बल्कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल बांग्लादेश ने भी नीतिगत निर्णयों पर सरकार के घुटने टेकने को लेकर चिंता जताई और कहा कि यह सरकार कट्टरपंथी मजहबी ताकतों के आगे झुक रही है। एक प्रेस विज्ञप्ति में संस्था ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि यह निर्णय एक ऐसे नए बांग्लादेश के सपने को तोड़ता है जहां पर किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो और जहां पर सांप्रदायिकता न हो। बयान में टीआईबी के कार्यकारी निदेशक इफ़्तेख़ारुज़्ज़मां ने कहा कि “नया बांग्लादेश” एक ऐसा राष्ट्र होना चाहिए जो गैर-भेदभाव, पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों पर निर्मित हो, तथा धार्मिक या वैचारिक थोपे जाने से मुक्त हो।

परंतु प्रश्न यह उठता है कि क्या बांग्लादेश ऐसा हो रहा है? शेख हसीना के प्रधानमंत्री रहते हुए तो यह सोचा भी जा सकता था कि बांग्लादेश अंतत: अपनी बांग्ला भाषा की जड़ों से जुड़ा रहेगा क्योंकि उनकी राजनीति का आधार ही भाषा के आधार पर बना मुल्क था, मगर पूर्वी पाकिस्तान की पहचान की तलाश में किया गया कथित छात्र आंदोलन जो पहले से ही शेख हसीना की आवामी लीग के नेताओं के प्रति और समर्थकों के प्रति घृणा से भरा हुआ था, उस आंदोलन से बनी सरकार कैसे निष्पक्ष हो सकती है? और अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि आखिर शेख हसीना से समस्या क्या थी? पाठ्यक्रम समन्वय समिति को कट्टरपंथी मजहबी संगठनों की चेतावनी के चलते भंग करके मोहम्मद यूनुस सरकार ने यह साबित कर दिया है कि अंतत: बांग्लादेश मुल्क की दिशा और दशा क्या होने जा रही है।

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