विश्लेषण

दर्द अथाह, मन व्यथित

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WEB DESK

दंतेवाड़ा जिले के बचेली गांव के रहने वाले संदीप भारद्वाज भी नक्सलियों द्वारा दिए गए घाव से आहत हैं। आज से लगभग 12 वर्ष पहले 2 मई, 2012 को अपने गांव से वे अपने एक साथी से मिलने के लिए मोटरसाइकिल से निकले। उस समय उनकी आयु केवल 19 वर्ष थी।

अभी थोड़ी ही दूर पहुंचे थे कि अचानक गोलियों की आवाज ने उन्हें अंदर तक थर्रा दिया। वे बताते हैं, ‘‘बचेली के दुगेली रोड पर स्थित आर.ई.एस. कॉलोनी के निकट माओवादियों ने घात लगाकर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। इससे बचने के लिए मैंने मोटरसाइकिल की गति तेज कर दी। इस कारण खतरे के क्षेत्र से तो बाहर हो गया, लेकिन शरीर में कई गोलियां लगीं।’’

इसी दौरान एक राहगीर ने संदीप को बताया कि उनके पैर से काफी खून बह रहा है। उन्हें पिंडली के थोड़ा नीचे ही गोली लगी थी। अस्पताल जाने के बाद पता चला कि गोली पैर के एक तरफ से घुसकर हड्डी को छेदते हुए दूसरी ओर से निकल गई है।

इस कारण कई महीने तक उनका चलना-फिरना बंद रहा। अब वे चल तो लेते हैं, लेकिन पहले जैसी बात नहीं रही। चलने में बड़ी परेशानी हो रही है। इसके साथ ही वे मानसिक परेशानी से जूझ रहे हैं। कहते हैं, ‘‘उस दृश्य को याद कर आज भी सिहरन पैदा होती है। भगवान की कृपा से प्राण तो बच गए, लेकिन नक्सलियों ने जो घाव दिया है, वह शायद जिंदगी भर रहेगा। उस घाव के दर्द को कोई भुक्तभोगी ही बता सकता है।’’

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