छत्तीसगढ़

वसूली करते नक्सली

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राजीव रंजन प्रसाद

छत्तीसगढ़ के वन प्रदेश में तेंदूपत्ता और महुआ वनवासियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण वनोपज है। माओवादी तेंदूपत्ता और महुआ संग्राहकों, ठेकेदारों और धान की खेती करने वाले किसानों से मोटी रकम वसूलते हैं। एक अनुमान के अनुसार, बस्तर संभाग में तेंदूपत्ता संग्रह कार्य से ही नक्सली सालाना 500 करोड़ रुपये की वसूली करते हैं। यही नहीं, वे विभिन्न सरकारी परियोजनाओं से जुड़े ठेकेदारों, परिवहन क्षेत्र से जुड़े लोगों से भी धन उगाही करते हैं।

डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने तेंदूपत्ता संग्रह का कार्य ठेकेदारों से कराने की बजाय सीधे सरकार द्वारा कराने का निर्णय लिया था। इससे माओवादियों की कमाई बुरी तरह प्रभावित हुई थी। लेकिन माओवादियों ने सरकारी तेंदूपत्ता संग्रह केंद्रों में आग लगा दी। इससे सरकार को बड़ी आर्थिक क्षति हुई, तो प्रशासन को पीछे हटना पड़ा। लेकिन आज परिस्थितियां पहले से बहुत अलग हैं।

तेंदूपत्ता संग्राहकों से : नक्सलियों द्वारा सबसे अधिक वसूली तेंदूपत्ता संग्रह से जुड़े लोगों एवं संगठनों से की जाती है। वसूली का गणित इस प्रकार समझिए। एक गांव में कम से कम 50 से लेकर अधिक से अधिक 200 घर होते हैं। गांव में तेंदूपत्ता संग्रह करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को रोजाना 2 गड्डियां नक्सलियों को देना अनिवार्य है।

यदि गांव में 100 तेंदूपत्ता संग्राहक भी हैं, तो इस हिसाब से प्रतिदिन 200 गड्डियां माओवादी ले जाते हैं। 6 रुपये के हिसाब से प्रत्येक गड्डी की कीमत प्रतिदिन 1200 रुपये हुई। यदि महीने में 15 दिन भी तेंदूपत्ता तोड़ा जाता है, तो नक्सलियों की कुल उगाही 18,000 रुपये होती है। इसके अलावा, प्रत्येक गांव से सप्ताह के पहले दिन का मेहनताना भी माओवादियों को देना जरूरी है।

एक दिन में लगभग 5,000 से 8,000 गड्डियां तोड़ी जाती हैं, तो प्रति सप्ताह वसूली 30,000 से 48,000 रुपये हुई। इसके अलावा, गांव में तेंदूपत्ता रखने और सुखाने के लिए स्थान के लिए भी ठेकेदारों से 10,000 से 15,000 रुपये वसूले जाते हैं। अगर ठेकेदार नया हुआ तो उसे आय का आधा हिस्सा माओवादियों को देना पड़ता है।

इसी तरह, माओवादी हर फड़ (अस्थायी दुकान) से भी प्रति गड्डी 30 से 50 पैसे की उगाही करते हैं। अमूमन ठेकेदार तेंदूपत्ते की एक लाख से तीन लाख गड्डियां खरीदते हैं। इस हिसाब से प्रत्येक ठेकेदार माओवादियों को कम-से-कम 30,000 रुपये देता है। यानी प्रत्येक फड़ से नक्सली सालाना एक लाख से डेढ़ लाख रुपये की वसूली करते हैं।

आजकल प्रत्येक गांव के लोग मिलकर तेंदूपत्ता संग्रह करते हैं और आमदनी सभी परिवारों में बराबर बांटी जाती है। इसके लिए तेंदूपत्ता हितग्राही कार्ड बने हुए हैं। माओवादी प्रत्येक हितग्राही कार्ड पर 20 से 50 गड्डियां यानी 150 से 300 रुपये वसूलते हैं।

महुआ संग्रह से : महुआ भी छत्तीसगढ़ के वन प्रदेश से प्राप्त होने वाली एक महत्वपूर्ण वनोपज है। माओवादी महुआ संग्रह करने वाले ग्रामीणों से लेकर ठेकेदारों तक से भी तेंदूपत्ता जैसी वसूली करते हैं। मारे गए नक्सलियों के क्रियाकर्म के लिए प्रत्येक परिवार से एक पैली यानी लगभग 750 ग्राम महुआ वसूला जाता है। यदि कोई घायल नहीं मरता है तो यह महुआ उनके संगठन को चला जाता है।

धान किसानों से : छत्तीसगढ़ की प्रमुख फसल है-धान। नक्सली धान उगाने वाले प्रत्येक किसान से सालाना एक खण्डी या 20 काठा धान (सामान्य भाषा में लगभग 45 किलो) वसूलते हैं। यदि गांव में 100 घर हैं तो 4500 किलो धान सीधे-सीधे नक्सली ले लेते हैं।

निर्माण कार्यों के ठेकेदारों से : विभिन्न सरकारी परियोजनाओं, जैसे-सड़क निर्माण, अस्पताल निर्माण आदि से जुड़े ठेकेदारों से भी नक्सली एक तय रकम वसूलते हैं। यह सामान्यत: कुल निविदा राशि का 10 प्रतिशत होती है। उदाहरण के लिए, जगरगुण्डा में अस्पताल का निर्माण कराया जा रहा था। इसकी लागत 3 करोड़ रुपये थी। नक्सलियों ने ठेकेदार से 30 लाख रुपये वसूले। इसी तरह, अली नामक एक ठेकेदार को सड़क निर्माण का ठेका मिला था, उससे भी 15 प्रतिशत की दर से उगाही की गई।

परिवहन क्षेत्र से : परिवहन उद्योग भी माओवादियों की उगाही से त्रस्त है। सामान्यत: बस संचालकों को प्रति बस सालाना 15 से 20 हजार रुपये नक्सलियों को देने पड़ते हैं। इसी तरह, ट्रैक्टर वालों से सालाना 10 हजार रुपये वसूले जाते हैं।

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