रानी दुर्गावती ने लगभग 16 वर्ष शासन किया और यही काल गोंडवाना साम्राज्य का स्वर्ण युग था। गोंडवाना साम्राज्य राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक,कला एवं साहित्य के क्षेत्र में सुव्यवस्थित रुप से पल्लवित और पुष्पित होता हुआ अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँचा।वर्तमान में प्रचलित जी.एस. टी. जैंसी कर प्रणाली रानी दुर्गावती के शासनकाल में लागू की गई थी, फलस्वरुप तत्कालीन भारत में गोंडवाना ही एकमात्र राज्य था जहाँ की जनता अपना लगान स्वर्ण मुद्राओं और हाथियों में चुकाते थे, इसका उल्लेख स्वयं अकबर के दरबारी लेखक अबुल फजल ने भी किया है। रानी दुर्गावती ने महिलाओं को शिक्षित करने का प्रयास किया और उनके लिए लाख के आभूषणों के लघु उद्योग स्थापित कराए। चिरौंजी, सिंघाड़ा, महुआ एवं इमारती लकड़ी के व्यापार को प्राथमिकता दी । गढ़ा में उन्नत वस्त्र उद्योग था। जड़ी बूटियों से बनी औषधियों के व्यापार को भी बढ़ावा दिया।
जी. एस. टी. जैसी कर व्यवस्था और आर्थिक विकास की अधोसंरचना
गढ़ा -मंडला की वीरांगना, रानी दुर्गावती के शासन में जी.एस.टी. जैसी कर प्रणाली लागू थी। इस प्रणाली से तत्कालीन राज्य की जनता और व्यापारी वर्ग भी अत्यंत प्रसन्न था। जिसके चलते वे कर के रूप में सोने के सिक्के और हाथी तक दिया करते थे। रानी दुर्गावती का गोंडवाना राज्य समृद्ध और संपन्न था, जिसकी चर्चा मुगल शासक अकबर तक पहुंच गई थी और उसने अब्दुल मजीद आसफ खां को रानी दुर्गावती के राज्य पर चढ़ाई करने भेजा। यह सारी बातें कपोल कल्पना नहीं हैं। अबुल फजल द्वारा लिखी गई आईन -ए-अकबरी में रानी दुर्गावती के शासन और कर-प्रणाली का उल्लेख है। वहीं कर्नल स्लीमन द्वारा संपादित ग्रंथ ‘स्लीमन की जीवनी तथा उनकी उपलब्धियाँ’ में संगृहीत है, कि जबलपुर में रानी दुर्गावती के राज्य के बारे में उसने क्या-क्या समझा और जाना।
प्राचीन लेखों में शासकों द्वारा भाग, सीता और हिरण्य नामक करों का वर्णन मिलता है। रानी दुर्गावती एक समान कर व्यवस्था लागू करना चाहती थी, इसलिए बिहार से आए महेश ठाकुर और आधारसिंह की सलाह पर भाग नामक कर प्रणाली लागू की। इसकी गणना भाग= औसत उपज/3 के आधार पर होती थी। जिसमें वनोपज और कृषि दोनों पर समान कर लगाया जाता था। यही व्यवस्था अन्य कुटीर और वर्ग व्यवसाय करने वाले व्यापारियों पर भी लागू थी। भाग कर के पहले वस्तु विनिमय प्रथा लागू थी।
80 हजार गांवों में एक कर प्रणाली थी। जिस प्रकार जीएसटी में केन्द्रीयकृत व्यवस्था के अंतर्गत हर राज्य को एक दर से कर देना निर्धारित किया है। ठीक उसी तरह रानी दुर्गावती के शासन में लगभग 80 हजार गांव भी भाग देते थे। उस दौरान गौंडवाना में 52 गढ़ों के जरिए शासन होता था। जबलपुर केन्द्र था, अन्य क्षेत्रों में सागर, सिवनी, मंडला, छिंदवाड़ा, भोपाल नरसिंहपुर, दमोह, होशंगाबाद, बिलासपुर और नागपुर भी गढ़ों में सम्मिलित थे। कर्नल स्लीमन ने एक गढ़ में 750 गांवों की संख्या बताई है। जबकि अबुल फजल ने रानी के शासन में गांवों की संख्या 80 हजार लिखी है।
पहले हर रियासत जनता से अपने हिसाब से कर वसूलती थी। इसका निश्चित भाग राजा को दिया जाता था। कराधान कहीं ज्यादा तो कहीं कम था। वह रियासतदार के स्वभाव और मर्जी पर आधारित था। रानी दुर्गावती ने अपने शासनकाल में इसमें बदलाव किया। उन्होंने पूरे राज्य में एक जैसे कर की घोषणा की। यह कर राज दरबार पर केन्द्रित हो गया। एक समान कर प्रणाली के तहत राजा को जो कर मिलता था, उसका उचित हिस्सा रियासतों को दिया जाता था। इससे रियासतों की ज्यादती और कर की विसंगतियों पर लगाम लगी।
गोंडवाना में विपुल पशुधन और उन्नत कृषि थी यहाँ का मोटा अनाज(मिलेट्स) पूरे भारत में हुआ।वहीं वस्त्र उद्योग, काष्ठ उद्योग, जड़ी बूटियों से तैयार औषधि उद्योग और शस्त्र उद्योग को बढ़ावा दिया गया। वनांचल में रहने वालों को लाख, औषधि निर्माण, शहद, चार-चिरोंजी और गोंद उद्योग को बढ़ाया गया।नगरीय क्षेत्र में आम, जामुन सीताफल और अमरुद के बगीचे विकसित किए तो ग्रामीण क्षेत्रों में साल, सागौन, खैर, तेंदू और महुआ आदि का संरक्षण और रोपण हुआ।जल संसाधन विकसित किए गए जिससे मत्स्य और सिंघाड़ा उद्योग उन्नत हुआ। रानी दुर्गावती के समय गोंडवाना साम्राज्य के स्वर्ण युग बनाने में कर प्रणाली और आर्थिक नीतियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
गढ़ा बना लघु काशी- वृंदावन और सनातन का केन्द्र
उन दिनों उत्तर – मध्य भारत का हिन्दुओं का धार्मिक केंद्र बिंदु था, जहाँ कोई भी हिन्दू अपनी इच्छानुसार धार्मिक अनुष्ठान कर सकता था, श्रीमद् वल्लभाचार्य के पुत्र गोस्वामी विट्ठलनाथ का आगमन देवताल (गढ़ा) में अक्सर होता था। रानी दुर्गावती के आग्रह पर 3 वर्ष विट्ठलनाथ गढ़ा में ही रहे। यहीं बैठकजी के मंदिर का निर्माण किया गया जहाँ पर शुद्धाद्वैत नियमों से पूजा होती थी, इसलिए इस स्थान को लघुकाशी वृंदावन कहा जाता था,। रानी दुर्गावती के समय ही यहाँ राधा – वल्लभ संप्रदाय पल्लवित हुआ।गढ़ा के चतुर्भुज दास और दामोदर दास इस संप्रदाय में अग्रणी थे। इसलिए कहा गया है कि “हरिवंश चरण बल चतुर्भुज, गोंड देश तीरथ किए”।
रानी दुर्गावती ने माला देवी के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और कुल देवी के रुप में शिरोधार्य किया।नवरात्र पर्व धूमधाम से मनाया जाता था। माँ त्रिपुर सुंदरी बूढ़ी खेरदाई, बड़ी खेरमाई और शारदा देवी के मंदिर आज भी सुप्रसिद्ध हैं।
नारी शिक्षा के लिए प्रथम गुरुकुल व गोलकी मठ का संरक्षण तथा कौशल विकास का प्रबंधन
रानी दुर्गावती ने नारी सशक्तिकरण की दिशा में श्लाघनीय कार्य किये हैं। स्त्रियों को शास्त्र और शस्त्र की शिक्षा देने के उद्देश्य से गढ़ा में विट्ठलनाथ के प्रवास के दौरान ही रानी दुर्गावती ने देवताल के पास पचमठा में स्त्रियों के लिए प्रथम गुरुकुल स्थापित कराया था, जिसमें स्वयं स्वामी विट्ठलनाथ ने स्त्रियों को शिक्षा प्रदान की थी। यहाँ दामोदर ठाकुर, अधार सिंह, कीकर सिंह पानीकार, पद्मनाभ भट्टाचार्य तथा लोंगाक्षि जैंसे विद्वानों ने अध्यापन कार्य किया है।स्त्रियों के लिए एक सैन्य पाठशाला भी स्थापित की गई थी। कौशल विकास केन्द्र स्थापित किए गए थे जिनमें उद्यमिता और कुटीर उद्योग को बढ़ाने के लिए कक्षाएं होती थीं।रानी दुर्गावती ने भेड़ाघाट में स्थित भारत के प्रसिद्ध कलचुरि कालीन तांत्रिक विश्वविद्यालय – गोलकी मठ का जीर्णोद्धार कराया जहां संस्कृत, प्राकृत और पालि भाषा में शिक्षा प्राप्त होती थी।
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