श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णित प्रसंग के अनुसार सृष्टि संचालन के आधार त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) भी जब सृष्टि की रचना करने में असमर्थ हो गये तब ब्रह्मा जी ने दस हजार वर्ष तक कठोर तप किया। तब उस तपशक्ति की ऊर्जा से ब्रह्माण्ड में एक मातृ शक्ति अवतरित हुई जिनसे सृष्टि की शुरुआत हुई। इसीलिए सनातन हिन्दू संस्कृति में ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी’’ (‘जननी’ और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है) कह कर मातृ शक्ति को सर्वोच्च मान्यता दी गयी है।
वैदिक चिंतन कहता है कि “माँ” से समूची सृष्टि का अस्तित्व है। यदि दुनिया में मातृ शक्ति न होती तो सृष्टि की रचना भी न होती। शास्त्र कहते हैं कि जिस घर में माँ का अनादर किया जाता है, वहां कभी भी सुख, शांति व समृद्धि नहीं रह सकती। इसलिए मातृ शक्तियों के देहावसान के उपरांत उनके प्रति विशिष्ट श्रद्धा अर्पित करने के लिए पितृ पक्ष के दौरान ‘मातृ नवमी’ की तिथि निर्धारित की गयी है जो इस वर्ष 26 सितम्बर को पड़ रही है। पितृ पक्ष की इस तिथि पर दिवंगत माँ, दादी-नानी , पत्नी व बहन के श्राद्ध-तर्पण की परम्परा हमारी ऋषि मनीषा द्वारा बनायी गयी है। शास्त्रीय मान्यता है कि ‘मातृ नवमी’ की तिथि को श्रद्धापूर्वक शास्त्रोक्त विधि से किये गये पिण्ड तर्पण से तृप्त होकर मातृ पितर प्रसन्न होकर समूचे परिवार को सुख-सौभाग्य, समृद्धि और कल्याण का आशीष देती हैं। इस दिन श्रीमद्भागवत गीता के नवें अध्याय के पाठ से मातृ शक्ति विशेष रूप से प्रसन्न होती हैं और व्यक्ति को मातृ दोष से मुक्ति मिलती है। इसलिए मातृ नवमी पर दिवंगत मातृ पितरों के श्राध्द तर्पण की ऋषि परम्परा का अनुपालन हर सनातनधर्मी को अवश्य करना चाहिए।
सिद्धपुर का बिंदु सरोवर
यूं तो देश में पितरों के पिंडदान व तर्पण के लिए गया (बिहार), ब्रह्मकपाल (बद्रीनाथ ) व पिशाच मोचन कुंड (काशी ) जैसे दर्जनों सुप्रसिद्ध श्राद्ध तीर्थ हैं। मगर इन सभी प्रमुख श्राद्ध तीर्थों में गुजरात के सिद्धपुर के बिंदु सरोवर का विशिष्ट महत्व है। गुजरात के पाटन जिले में स्थित सिद्धपुर का बिंदु सरोवर एकमात्र ऐसा तीर्थ है, जहां सिर्फ मातृशक्तियों का ही श्राद्ध कर्म किया जाता है। इस श्राद्ध तीर्थ से जुड़ी ‘महाभारत’ की कथा के अनुसार बालयोगी कपिल मुनि के पिता ऋषि कर्दम जब गृह त्याग कर तपस्या के लिए सदा के लिए हिमालय प्रस्थान कर गये तो इससे उनकी माता देवहुति अत्यंत दुखी हुईं और योग साधना द्वारा उन्होंने तत्क्षण देह त्याग दी।
कहा जाता है कि माता के देहावसान के पश्चात कपिल मुनि ने उनकी मोक्ष प्राप्ति के लिए सिद्धपुर के बिंदु सरोवर के तट पर उनका श्राध्दकर्म किया। तभी से यह स्थान ‘मातृ मोक्ष स्थल’ के रूप में प्रसिद्ध हो गया। आज भी दूरदराज से लोग इस जगह अपनी माँ का श्राद्ध करने के लिए आते हैं। कहते हैं कि मातृहन्ता के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान परशुराम ने भी अपनी माता का श्राद्ध सिद्धपुर में बिंदु सरोवर के तट पर ही किया था।
टिप्पणियाँ