विश्लेषण

शराब, शर्त और शर्म

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आशीष राय

कट्टर ईमानदारी का दम भरते हुए लगभग दस साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ रहा है। अन्ना आन्दोलन से निकले नेताओं ने मिलकर आम आदमी पार्टी बनाई थी। यह अलग बात है कि धीरे धीरे लगभग पार्टी के सभी प्रमुख नेताओं को दरकिनार करते हुए अरविंद केजरीवाल ने आआपा को अपने तक केन्द्रित कर दिया। अब उनकी छवि भी ढलान पर है। संभवत: इसी रणनीति के तहत उन्होंने इस्तीफा दिया है ताकि दिल्ली विधानसभा चुनावों में इस मुद्दे को भुना सकें।

अन्ना आंदोलन ने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आम जनता के मन में एक आस जगाई थी। इसी कालखंड में आम आदमी पार्टी पर भरोसा करते हुए दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी की सरकार बनाई थी। परंतु आआपा सरकार के कार्यकाल में सरकार के ऊपर भ्रष्टाचार व कदाचार के आरोप बढ़ते गए। आआपा के कई विधायक व पार्षदों के ऊपर मुकदमे दर्ज हुए।

निर्भया आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाली इस पार्टी के नेताओं पर ही महिलाओं के उत्पीड़न, भ्रष्टाचार, मारपीट जैसे कई आरोप लगे। आआपा के एक पार्षद पर दिल्ली दंगा भड़काने का गंभीर आरोप लगा और वह जेल भी गया।

हाल ही में अरविंद केजरीवाल के निजी सचिव को उन्हीं के आवास पर उन्हीं की पार्टी की महिला सांसद के साथ मारपीट करने पर जेल में जाना पड़ा। उन्हें निचली अदालत और उच्च न्यायालय से जमानत नहीं मिली। तल्ख टिप्पणियों के बाद उच्चतम न्यायालय ने गवाहों की लंबी सूची को देखते हुए लगभग तीन माह बाद यह कहते हुए उन्हें जमानत दी थी कि मुकदमे पर विचार करने में समय लग सकता है।

हर जगह असफल

शिक्षण संस्थानों में वित्तीय अनिमियताओं का आरोप, पानी की समस्या, सड़कों की समस्या, प्रशासनिक व्यवस्था में नाकाम होने सहित अन्य कई समस्याओं के निदान में विफल आम आदमी पार्टी की सरकार और उसके नेताओं पर अराजकता फैलाने का आरोप प्रारंभ से ही लगता रहा है। अपने सरकार की नाकामियों को छिपाने के लिए आआपा सरकार ने धरना प्रदर्शन व उपराज्यपाल के खिलाफ टिप्पणी करके वास्तविकता के विपरीत हमेशा झूठा विमर्श बनाने का प्रयास किया कि केन्द्र सरकार द्वारा दिल्ली सरकार को काम नहीं करने दिया जाता’, लेकिन अब आआपा की कलई खुल चुकी है।

शराब घोटाले ने उतारा नकाब

17 नवंबर 2021 को आआपा सरकार ने नई आबकारी नीति लागू की थी जिसके तहत राजधानी में 32 जोन बनाए गए। हर जोन में 27 दुकानें खुलनी तय हुईं। इस तरह से 849 दुकानें खुलनी थीं। नई शराब नीति में दिल्ली की सभी शराब की दुकानों का निजीकरण कर दिया गया। पहले शराब की 60 प्रतिशत दुकानें सरकारी व 40 प्रतिशत निजी हाथों में थीं। नई नीति लागू होने के बाद 100 प्रतिशत निजीकरण हो गया। दिल्ली सरकार ने तर्क दिया था कि इससे 3,500 करोड़ रुपये का फायदा होगा। परन्तु शराब नीति में अनियमितता के आरोप के साथ-साथ घोटाले की भी बू आने लगी। इस शराब घोटाले का खुलासा 8 जुलाई 2022 को दिल्ली के तत्कालीन मुख्य सचिव नरेश कुमार की रिपोर्ट से हुआ।

इस रिपोर्ट में मनीष सिसोदिया समेत आम आदमी पार्टी के कई बड़े नेताओं पर गंभीर आरोप लगे। दिल्ली सरकार ने अगस्त, 2022 में नई आबकारी नीति को वापस ले लिया। बाद में दिल्ली के उप राज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा सीबीआई जांच की सिफारिश की गई। सीबीआई ने 17 अगस्त 2022 को केस दर्ज किया।

दिल्ली सरकार की इस आबकारी नीति ने केजरीवाल और आआपा नेताओं की ईमानदारी की पोल खोल दी। कट्टर ईमानदार पार्टी का चोला ओढ़कर सरकार चलाने का दावा करने वाली आआपा के नेता प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई के रडार पर आ गये। दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया गिरफ्तार हुए। आआपा के राज्यसभा सांसद संजय सिंह सहित कई अन्य नेताओं को भी जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा। इस दौरान प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई की पूछताछ से बचने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने न्यायालय की शरण ली। परंतु वहां से कुछ राहत न मिलने के कारण अंतत: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी 21 मार्च, 2024 को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए। मुख्यमंत्री रहते हुए गिरफ्तार होने वाले वह पहले राजनेता बन गए। उनकी गिरफ्तारी के तुरंत बाद आम आदमी पार्टी ने घोषणा भी कर दी कि अरविन्द केजरीवाल मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र नहीं देंगे और सरकार जेल से ही चलेगी। यहीं से दिल्ली की राजनीति बदलने लगी।

खुद को ‘आम आदमी’ बताने वाले अरविंद केजरीवाल ने अपनी जो छवि गढ़ी थी, वह अब धुल चुकी है। केजरीवाल ने आमजन पर प्रभाव जमाने के लिए अपनी छवि सामान्य कपड़े पहनने वाला, सामान्य गाड़ी से चलने वाला, सामान्य सुरक्षा में रहने वाला व सामान्य मकान में रहने वाला जैसी बनाई थी लेकिन अब इन सबमें बदलाव साफ दिखने लगा है। मुख्यमंत्री आवास को शीशमहल जैसा बनवा देना, भारी सुरक्षा बंदोबस्त में चलना, भ्रष्टाचार के आरोप में जेल यात्रा, दिल्ली सरकार की निरंतर प्रशासनिक विफलता के कारण जनमानस में फैलता असंतोष, सभी राजनैतिक पार्टियों को भ्रष्ट बताकर उनसे दूरी रखने की घोषणा और फिर सत्ता के लालच के कारण उन्हीं तथाकथित दागी राजनैतिक पार्टियों के साथ खड़ा होने के कारण अब केजरीवाल की छवि प्रभावहीन हो चली है।

जेल में रहे, पर इस्तीफा नहीं दिया

अरविंद केजरीवाल द्वारा अलग-अलग आधार पर न्यायालयों में जमानत याचिकाएं लगाई गईं, परन्तु निचली अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक, कहीं से उन्हें जमानत नहीं मिली, फिर भी केजरीवाल मुख्यमंत्री बने रहे। उनके जेल में रहने के दौरान ही 18वीं लोकसभा का चुनाव 19 अप्रैल से 1 जून में होना था। आम आदमी पार्टी के पक्ष में चुनाव प्रचार के लिए केजरीवाल की आवश्यकता को आधार बना कर उनके द्वारा अंतरिम जमानत याचिका उच्चतम न्यायलय में दाखिल की गई और उच्चतम न्यायालय ने उन्हें चुनाव प्रचार के लिए 10 मई से लेकर 1 जून तक की सशर्त जमानत दी। प्रमुख शर्तों में उनको मुख्यमंत्री कार्यालय और दिल्ली सचिवालय में प्रवेश नहीं करना और आधिकारिक फाइलों पर उनके द्वारा हस्ताक्षर नहीं करना शामिल था।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा और अपने चुनाव प्रचार के दौरान केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से पुरजोर भावनात्मक अपील भी की। लेकिन दिल्ली की जनता संभवत: केजरीवाल के पैंतरे को समझ चुकी थी इसलिए लोकसभा चुनावों में दिल्ली में आआपा और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला। लोकसभा चुनावों में प्रचार के लिए मिली अंतरिम जमानत की अवधि खत्म होने के बाद 2 जून को अरविन्द केजरीवाल को फिर से जेल जाना पड़ा। इस दौरान सशर्त अंतरिम जमानत के कारण केजरीवाल को मुख्यमंत्री के अधिकारों से भी वंचित रहना पड़ा था।

प्रवर्तन निदेशालय वाले मामले में सुनवाई पूरी करके उच्चतम न्यायलय ने निर्णय के लिए मामले को सुरक्षित रख लिया। उसी दौरान न्यायालय की अनुमति लेकर सीबीआई ने भी 26 जून को केजरीवाल को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया। उच्चतम न्यायलय ने 12 जुलाई को प्रवर्तन निदेशालय के मामले में केजरीवाल को सशर्त जमानत दे दी। सीबीआई की गिरफ्तारी के कारण केजरीवाल की रिहाई नहीं हो पाई। दिल्ली उच्च न्यायलय ने सीबीआई की गिरफ्तारी के फैसले को उचित बताते हुए केजरीवाल को निचली अदालत जाने का निर्देश दिया। परन्तु केजरीवाल निचली अदालत न जाकर 12 अगस्त को उच्चतम न्यायलय चले गए। उच्चतम न्यायलय ने सुनवाई पूरी करके 5 सितम्बर को निर्णय के लिए मामले को सुरक्षित रख लिया।

जमानत शर्तों पर

गत 13 सितम्बर को न्यायमूर्ति सूर्यकान्त और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने केजरीवाल को सशर्त जमानत दे दी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने निर्देश दिया कि केजरीवाल इस केस को लेकर कोई भी सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करेंगे। अरविंद केजरीवाल को ट्रायल कोर्ट के सामने हर सुनवाई पर मौजूद होना होगा, जब तक कि उन्हें पेशी से छूट न मिले। अरविंद केजरीवाल अपने कार्यालय नहीं जा सकेंगे और न ही वह सरकारी फाइलों पर दस्तखत कर सकेंगे। हालांकि, बहुत जरूरी होने पर वह फाइल पर दस्तखत कर सकेंगे। जमानत पर बाहर रहने के दौरान वह केस से जुड़े गवाहों से संपर्क नहीं करेंगे, संपर्क की कोशिश भी नहीं कर करेंगे। 13 सितम्बर के आदेश के बाद केजरीवाल जमानत पर जेल से बाहर आ गए। शर्तों के साथ जमानत मिलने के कारण केजरीवाल व उनके कानूनी सलाहकारों को भी यह बात समझ आ गई कि शराब घोटाला केस से बरी होने के लिए उन्हें काफी मशक्त करनी पड़ेगी। केजरीवाल को यह भी पता है कि न्यायलय की शर्तों की अवमानना न्यायालय की अवमानना होती है और इसी बात ने केजरीवाल को बेचैन कर दिया।

छवि सुधारने को बेचैन

दरअसल खुद को ‘आम आदमी’ बताने वाले अरविंद केजरीवाल ने अपनी जो छवि गढ़ी थी, वह अब धुल चुकी है। केजरीवाल ने आमजन पर प्रभाव जमाने के लिए अपनी छवि सामान्य कपड़े पहनने वाला, सामान्य गाड़ी से चलने वाला, सामान्य सुरक्षा में रहने वाला व सामान्य मकान में रहने वाला जैसी बनाई थी लेकिन अब इन सबमें बदलाव साफ दिखने लगा है। मुख्यमंत्री आवास को शीशमहल जैसा बनवा देना, भारी सुरक्षा बंदोबस्त में चलना, भ्रष्टाचार के आरोप में जेल यात्रा, दिल्ली सरकार की निरंतर प्रशासनिक विफलता के कारण जनमानस में फैलता असंतोष, सभी राजनैतिक पार्टियों को भ्रष्ट बताकर उनसे दूरी रखने की घोषणा और फिर सत्ता के लालच के कारण उन्हीं तथाकथित दागी राजनैतिक पार्टियों के साथ खड़ा होने के कारण अब केजरीवाल की छवि प्रभावहीन हो चली है।

केजरीवाल को अपनी प्रभावहीन हो रही छवि को संवारने की चिंता सताने लगी है। सशर्त जमानत के कारण आखिरकार केजरीवाल को त्यागपत्र देने के लिए विवश होना पड़ा और आतिशी मार्लेना को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा पड़ी। हालांकि आतिशी पर भी कई आरोप हैं। सबसे पहले तो उन पर आरोप है कि मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल पूरी तरह विफल रहा है। वहीं आआपा की ही राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने आरोप लगाया है कि आतिशी के परिवार ने आतंकी अफजल को फांसी से बचाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी। देखना यह है कि केजरीवाल का यह पैंतरा उनके कितने काम आता है। बहरहाल इस पूरे घटनाक्रम को देखें तो केजरीवाल का इस्तीफा पूरी तरह राजनीतिक है, न कि नैतिक आधार पर लिया गया फैसला है।
(लेखक सर्वो न्यायलय में अधिवक्ता)

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