विश्लेषण

भारत कब तक टूट जाएगा ? हिंदू बहुल होने से टूटेगा ! करण थापर के सवाल, अरुंधति रॉय और रोमिला थापर के जवाब

Published by
सोनाली मिश्रा

भारत में इन दिनों जातियों के मध्य वैमनस्य बढ़ाने के नए-नए तर्क बनाए जा रहे हैं। ऐसे में कई बार ऐसे प्रश्न भी उठते हैं कि क्या यह विमर्श फैब्रिकेटेड तो नहीं है या फिर भारत को तोड़ने वाली ताकतों द्वारा इसे विशेष रूप से इस्तेमाल तो नहीं किया जा रहा है। यह प्रश्न इसलिए इस समय और प्रासंगिक हो चला है क्योंकि अब सोशल मीडिया पर कथित एलीट पत्रकारों और विचारकों के कुछ पुराने वीडियो वायरल हो रहे हैं, जो भारत की अवधारणा पर प्रहार कर रहे हैं, जिसमें भारत के बिखरने की कल्पना की गई है।

पत्रकार करण थापर का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वे अरुंधती रॉय से बात कर रहे हैं। अरुंधती रॉय से बातचीत का यह वीडियो शायद पुराना है, परंतु उसमें यह स्पष्ट समझा जा रहा है कि वे यह कह रही हैं कि भारत कैसे टूट सकता है और कैसे टूट रहा है।

अरुंधती रॉय का कहना है कि भारत को हिन्दू बहुल बनाने से देश टूट जाएगा। अब प्रश्न यह है कि आखिर भारत हिन्दू बहुल होने से कैसे टूट जाएगा? क्योंकि हिन्दू बहुल तो भारत है ही। और अरुंधती यह भी कहती हैं कि हिन्दू बहुल होने का अर्थ है सेक्युलर न होना। अरुंधती का कहना है कि यह सरकार उसी तरफ जा रही है। करण थापर प्रश्न करते हैं कि यह सरकार हिन्दू बाहुल्य चाहती है और सेक्युलर नहीं चाहती। अरुंधती कहती हैं कि यह रहस्य नहीं है।

अरुंधती कहती हैं कि भारत एक देश नहीं है बल्कि सामाजिक समझौता है। उनका कहना है कि हिन्दू दरअसल कुछ नहीं हैं, बल्कि वे ऐसी जातियों का समूह हैं, जो आपस में लड़ती आ रही हैं, यह आपस में लड़ रहे धर्मों और भाषाओं का समूह है, जिन्हें एकसाथ यदि लाया गया तो इकट्ठा करते हुए देश बंट जाएगा। इस वीडियो के अंत में करण थापर की बात सुननी चाहिए, जिसमें वे प्रश्न करते हैं कि भारत कब तक टूट जाएगा?

आखिर भारत को तोड़ने की इतनी व्यग्रता करण थापर जैसे लोगों को क्यों है? क्यों अरुंधती रॉय जैसे लोग, जिन्हें भारत की हिन्दू पहचान से घृणा है, उन्हें भारत में हिन्दू नहीं चाहिए और भारत की टूटन को लेकर इतना उत्साह क्यों है? अरुंधती रॉय की भारत विरोधी पहचान आज की नहीं है। अरुंधती रॉय कश्मीर को लेकर भी भारत विरोधी रुख अख्तियार कर चुकी हैं और वह यह भी कह चुकी हैं कि कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है।

अरुंधती रॉय की दृष्टि में भारत ने कश्मीर के लोगों पर असंख्य अत्याचार किये हैं। मगर अरुंधती रॉय को कभी यह नहीं लगा कि कश्मीरी पंडितों के साथ आतंकियों ने क्या किया, उस पर बात की जाए।
अरुंधती रॉय, करण थापर जैसे लोग हमेशा ही एक वर्ग द्वारा कथित बुद्धिजीवी ठहराए जाते रहे, जबकि हिंदुओं के प्रति दुराग्रह से भरे करण थापर जैसे लोग नेहरू परिवार के लिए हमेशा ही समर्थन करते रहे। करण थापर और कथित इतिहासकार रोमिला थापर के संबंध में पत्रकार दिलीप मण्डल ने एक्स पर पोस्ट लिखा था। इस पोस्ट में उन्होनें लिखा था कि दिल्ली का पुराना एलीट गैंग अर्थात खान मार्केट गैंग दर्द में क्यों है, वह इनके आपस के संबंध से समझा जा सकता है।

उन्होंने बताया कि करण थापर के सगे मौसा गौतम सहगल की शादी नयनतारा पंडित (सहगल) से हुई जिनकी मां विजयलक्ष्मी पंडित और जवाहरलाल नेहरू सगे भाई-बहन थे। और कथित प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर करण थापर की चचेरी बहन हैं।

जहां करण थापर अरुंधती रॉय के साथ बैठकर हिन्दू बहुल भारत के टूटने को लेकर उत्साहित और बेकल नजर आ रहे हैं, तो वहीं रोमिला थापर के साथ जब वे बातचीत कर रहे हैं तो रोमिला थापर यह कहती हैं कि उन्हें मोदी का भारत पसंद नहीं है। यह बहुत संकुचित और सीमित है और इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा। रोमिला थापर की एक बात समझी जा सकती है कि यदि इतिहासकार रोमिला थापर जैसा एकांगी दृष्टि वाला होगा और अपनी हिन्दू जड़ों से घृणा करने वाला होगा तो वह मोदी के भारत को पसंद नहीं करेगा और इस दृष्टि के प्रति उदार नहीं होगा,

यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह वही रोमिला थापर हैं जिन्होनें कहा था कि महाभारत के सम्राट युधिष्ठिर दरअसल मौर्य वंश के शासक सम्राट अशोक से प्रेरित होकर सिंहासन त्यागना चाहते हैं।
यह भी दुर्भाग्य है कि भारत में कई पीढ़ियों को वह इतिहास पढ़ना पड़ा और उस मीडिया को सुनना पड़ा जिसके मूल में हिन्दू घृणा थी, जिसे अपनी हिन्दू जड़ों से घृणा थी और जिन्होनें अपने कथित इतिहास लेखन और मीडिया के माध्यमों से हिन्दू भारत के प्रति घृणा का विमर्श तैयार करने में सहायता की।

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