आईसी 814: विमान अपहरण के समय मीडिया कवरेज ने की थी आतंकियों की सहायता : कैप्टन देवी शरण सिंह

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सोनाली मिश्रा

नेटफ्लिक्स पर आई सीरीज आईसी 814 लगातार ही चर्चा में है और एक और कारणों से चर्चा में आ गई है। सभी को वह घटना याद होगी जब वर्ष 1999 में कैसे इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट को आतंकवादियों ने हाईजैक कर लिया था और एक यात्री की हत्या भी कर दी थी।

यह भी लोगों को याद है कि कैसे मीडिया ने इसे लेकर हंगामा किया था और पल-पल की रिपोर्ट्स अपने-अपने चैनल्स पर सबसे तेज आदि के कारण दिखाते रहे थे। अपहृत यात्रियों के परिजनों के आँसू के जरिए अपनी टीआरपी बढ़ाते थे थे। सूत्रों के हवाले से सरकार क्या कर सकती है और क्या कर रही है, वह भी अपने चैनल पर दिखाते रहे थे। जो अभियान नितांत गोपनीय रहकर सम्पन्न किया जाना चाहिए था, उस पर चर्चाएं आयोजित की जा रही थीं। क्या मीडिया के इस व्यवहार का कोई भी फायदा आतंकियों को नहीं हुआ होगा, जिन्होंने विमान का अपहरण किया था? क्या नितांत गोपनीय ऑपरेशन के बारे में चौबीसों घंटे बात करके पूरी रणनीति को दुश्मनों के सामने पेश करके मीडिया ने आतंकियों का काम आसान नहीं किया था और क्या ऐसा करके यात्रियों की जान खतरे में नहीं डाली थी?

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अब नेटफ्लिक्स पर एक वीडियो में अपहृत विमान के पायलट रहे कैप्टन देवी शरण सिंह ने मीडिया के इसी गैर जिम्मेदार व्यवहार पर बात करते हुए कहा है कि मीडिया ने जो रिपोर्टिंग की थी वह बहुत खतरनाक थी और इसने अंतत: आतंकवादियों को ही फायदा पहुंचाया। देवी शरण सिंह ने जोर देकर कहा कि मीडिया की जो गतिविधियां थीं, उन्ंहोंने आतंकियों की अपनी योजना बनाने में सहायता की।

कैप्टन देवी शरण सिंह ने उस वीडियो में कहा था “अपहरणकर्ताओं को सारी जानकारियाँ मिल रही थीं। उनके पास एक रेडियो था, जिसमें वे सारी खबरें सुनते थे। वे आगे कहते हैं कि उस समय जो भी मीडिया को बताया जा रहा था, उतनी सूचना मीडिया को नहीं दी जानी चाहिए थी। इसमें हमें बहुत नुकसान पहुंचाया।” उनका यह भी कहना है कि इस कारण यात्रियों की जान पर भी खतरा आया। जब विमान को अमृतसर में उन्होंने ईंधन न होने के कारण उतारा था तो मीडिया में ऐसा कहा गया कि कैप्टन ने अपना काम कर दिया है और अपहरणकर्ता उन्हें नहीं रोक पाए।

मगर देवी शरण कहते हैं कि अपहरणकर्ताओं ने इसे गलत तरीके से लिया। उन्हें लगा कि कैप्टन ने यदि विमान को अमृतसर में उतारा है तो इसका अर्थ है कि वे अपहरणकर्ताओं को मारने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें यह सब जानकारी मीडिया से मिल रही थी, तो वे उन्हें धमका रहे थे और इसने उन्हें अपने काम को करने से रोक दिया। भारत में मीडिया के गैरजिम्मेदार व्यवहार के मामले कई हैं।

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भारत में मीडिया के लाइव कवरेज को लेकर कई बार प्रश्न उठे हैं। कारगिल के युद्ध में भी कई जानकारियाँ मीडिया ने लाइव ऑपरेशन में ऐसी दी थीं, जिनके कारण भारत को नुकसान हुआ था। भारत में सबसे बड़े आतंकी हमले अर्थात 26 नवंबर को मुंबई में जब आतंकवादियों ने हमला किया था तो उसमें भी मीडिया की गैर-जिम्मेदार भूमिका पर आम लोगों ने ही प्रश्न नहीं उठाए थे, बल्कि वर्ष 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी फटकार लगाई थी। मीडिया पर लगातार खबरें प्रसारित हो रही थीं कि सुरक्षाबल कब कौन से कदम उठा रहे हैं और इस प्रकार टीआरपी के लिए लोगों की जान को खतरे में डाल दिया गया था और राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किया गया था। ऐसे अभियानों में टीआरपी रेटिंग के शॉट लगाने को लालायित मीडिया कहीं न कहीं आतंकवादियों का सबसे भरोसेमंद साथी बनकर ही सामने आता है।

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