स्वयंभू नेताओं के झांसे में न आएं मुस्लिम, वक्फ प्रशासन में सुधार राष्ट्र व मुस्लिम हित में
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स्वयंभू नेताओं के झांसे में न आएं मुस्लिम, वक्फ प्रशासन में सुधार राष्ट्र व मुस्लिम हित में

वक्फ बोर्ड में लंबित त्रुटियों को सुधारने के लिए सरकार ने जिन संशोधनों को संसद में पास कराने की बात रखी, उसको विपक्ष ने नकार दिया।

by फिरोज़ बख़्त अहमद
Sep 15, 2024, 01:55 pm IST
in भारत
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वक्फ बोर्ड में लंबित त्रुटियों को सुधारने के लिए सरकार ने जिन संशोधनों को संसद में पास कराने की बात रखी, उसको विपक्ष ने नकार दिया। यही नहीं, मुस्लिम तबके को भी इस मुद्दे पर बरगलाने, भटकाने और भड़काने का काम किया है, कुछ स्वयंभू धर्म निरपेक्ष नेताओं और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठनों ने! भारत और विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय यह जानना चाहता है कि वक्फ बोर्ड बावजूद 9 लाख एकड़ जमीन का मालिक होने के, आज फक्कड़ क्यों है और मुसलमानों, विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं के हाथ में भीख का प्याला क्यों है?!

ऐसा नहीं कि यह संशोधन सरकार वक्फ संपत्ति को हड़पने हेतु लाई है, वास्तव में, लंबे समय से ही वक्फ के अधिकारियों के विरुद्ध बेतहाशा शिकायतें की जाती रही हैं और जहां तक संशोधनों की बात है, 1864, 1913, 1930, 1954, 1955, 1995 और 2013 आदि में संशोधन होते चले आए हैं। केंद्रीकृत लोक शिकायत प्रणाली और निगरानी प्रणाली के द्वारा हजारों शिकायतें स्वयं मुस्लिम तबके से ही समय-समय पर आती रही हैं।

यही कारण है कि 2008 में उस समय के अल्पसंख्यक मंत्रालय के मंत्री के रहमान खान ने भी एक पार्लियामेंट्री कमेटी बनाई थी और कुछ खास नहीं हो पाया, सिवाय इसके कि न्यायाधीश राजेंद्र सच्चर कमेटी ने भी वक्फ बोर्ड के विरुद्ध की गई शिकायतों के आधार पर इसमें संशोधन की मांग की थी, जिनमें कई सुधारों की राय दी गई थी, जैसे, प्रबंधकों के कार्य को विनियमित करना, अभिलेखों का प्रबंधन, पूर्ण वक्फ संपत्ति का डिजिटाइजेशन, कब्जाई वक्फ संपत्ति को वापिस वक्फ में जोड़ना, हास्यास्पद हद तक 10, 12, 40, 100, 1000 रुपए तक के किरायों को बढ़ाना, सामाजिक वर्गों को जोड़ना, तकनीकी विशेषज्ञता, वित्तीय लेखा परीक्षा, वक्फ बोर्डों का पुनर्गठन आदि।

इससे पूर्व भी वक्फ संपत्ति के लिए कई बार पंजीकरण की कोशिश हुई मगर सफ़लता नहीं मिली। यदि ऐसा हो जाता तो न केवल इस संपत्ति को अनाधिकृत कब्जे से मुक्त कराई जायदाद और इतने किराए प्राप्त हो जाते कि बहुत से गरीब घरों के बच्चों के मेडिकल, इंजीनियरिंग, विदेश आदि में पढ़ाई का पैसा जुटाया जा सकता था, सीनियर सिटिजन और बेरोजगार लोगों को भत्ता दिया जा सकता था, मगर भ्रष्ट अधिकारियों ने वक्फ संपत्ति के साथ इसका तिया पांचा कर अपनी जेबें भर लीं। किसी भी सरकार की या इस सरकार की मजाल नहीं कि वक्फ की एक इंच ज़मीन भी ले ले। दूसरी ओर वक्फ के अधिकारियों को भी लोगों को धौंस नहीं देना चाहिए कि फलां गांव या संपत्ति उनकी है, जैसा कि एक दो मामलों में हुआ है। अन्य मुस्लिम देशों में वक्फ बोर्ड सरकार के साथ मिल कर समाजिक और लैंगिक समरसता को आगे बढ़ाते हैं। भारत में भी ऐसा ही होना चाहिए।

उसका कारण यह है कि पिछले छह दशकों से स्वयं को मुस्लिमों का हमदर्द बता कर जिन सरकारों ने मुसलमानों को वोट बैंक बना कर सत्ता का सुख भोगा है, उन्होंने वक्फ बोर्डों से इस बात का कोई हिसाब नहीं लिया कि किस बेदर्दी से वे खरबों की ज़मीन को कौड़ियों के मोल पगड़ी लेकर बेचते रहे और अपनी जायदादें बनाते रहे। तब कांग्रेसी, वामपंथी और मुस्लिम अधिकारों के चैंपियन कहां गुम थे? यदि ये लोग ईमानदारी से मुस्लिम क़ौम की वक्फ द्वारा सेवा करते तो आज भारतीय मुसलमान दुनिया की सबसे अमीर आबादी हो सकते थे! जिस प्रकार से माल-ए-मुफ़्त, दिल-ए-बेदर्द की तरह स्वयं वक्फ बोर्ड के अफसरों, वकीलों, कार्यकर्ताओं आदि ने अपने-अपने समय की सरकारों और पुलिस के साथ मिल कर विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा जमीन घपला किया है, उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है।

असदुद्दीन ओवैसी ने तो खुल कर प्रधानमंत्री “मोडी” (जैसा कि वह उनके नाम को बिगाड़ कर बोलते हैं) पर आरोप लगाया है कि वे मुसलमानों की मस्जिदें, मदरसे, क़ब्रिस्तान आदि को हथिया, सरकार को देना चाहते हैं, जो कि सरासर अमन्नीय और अमानवीय है, क्योंकि वक्फ की ज़मीन कभी सरकारी मिल्कियत बन ही नहीं सकती, जब तक कि वह गैर कानूनी तरीके से सरकारी जमीन पर न बनी हो, जैसा कि शिमला की संजौली मस्जिद का किस्सा है कि जिसके एक भाग को अनाधिकृत सरकारी ज़मीन पर बनाया जा रहा था, जिसका कि संजौली मस्जिद की मुंतजिमा कमेटी ने संज्ञान लिया है और उसे हटाने का निर्णय लेकर अंतर्धर्म सद्भावना का प्रचार किया है। वैसे भी वक्फ बोर्ड की जमीन का मालिक इन्सान नहीं, बल्कि अल्लाह होता है, और मुख्य रूप से यह मस्जिदों, मदरसों, खानकाहों, दरगाहों, कब्रिस्तानों के अतिरिक्त विधवाओं, निर्धनों, गरीब विद्यार्थियों और जरूरतमंदों के लिए होती है।

आज समय है कि मुस्लिम मौजूदा सरकार पर बजाय इल्ज़ाम लगाने के, महिलाओं की सदस्यता और हिंदू अफसरों की नियुक्तियों पर आपत्ति जताने की बजाय सरकार से उनकी भलाई के लिए दान की गई इस बची-खुची ज़मीन संपत्ति को वापिस लाने और उसके किरायों को बढ़ाने का आग्रह करें। यह कहना कि सरकार की नियत वक्फ ज़मीन को लेकर खराब है, मुस्लिम अपना ही नुकसान करने पर तुले हैं। सरकार वक्फ बोर्ड की एक इंच जमीन भी नहीं दबा सकती, यह अलग बात है कि भ्रष्ट वक्फ अफसरों द्वारा की गई बेईमानी के कारण आज दिल्ली की 77 प्रतिशत भूमि पर बड़े-बड़े सरकारी संस्थानों, जैसे उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, सीजीओ कॉम्प्लेक्स, सेंट स्टीफेंस कॉलेज, एंग्लो अरेबिक स्कूल, ज़ाकिर हुसैन कॉलेज, बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग स्थित सभी अख़बारों व कंपनियों के दफ़्तर आदि सभी वक्फ संपत्ति हैं! तभी मध्य प्रदेश के एक जज, गुरतेज सिंह अहलूवालिया ने अदालत में वक्फ बोर्ड के एक केस में किसी को लताड़ा कि सारे भारत को वक्फ बोर्ड की मिल्कियत क्यों नहीं घोषित कर देते !

सच्ची बात तो यह है कि किसी भी मुसलमान ने वक्फ बोर्ड से हिसाब मांगा ही नहीं कि इसके पास प्रति मास कितना पैसा आता है और कितना निर्धन मुस्लिमों, मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों आदि पर खर्च होता है। इन सभी बातों को। ले कर सरकार वक्फ संशोधन लाई है और आंखें बंद कर इसको नकारना ठीक नहीं है।

Topics: waqf board kya hai#muslimराष्ट्र व मुस्लिम हितवक्फ बोर्डWaqf Actwaqf boardwaqf board propertyWaqf Act amendmentModi govt on Waqf boardWaqf board powers reducedwaqf board actwhat is waqf board
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