गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पूज्य गुरुदेव महंत अवेद्यनाथ की 12 सितंबर को पुण्यतिथि है। उनका सपना अयोध्या में रामलला की जन्मभूमि पर भव्य और दिव्य राम मंदिर का निर्माण और बहुसंख्य हिंदू समाज की एकता थी। अपने समय में उन्होंने अपने गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए गोरक्षपीठ की शैक्षिक और सांस्कृतिक परंपरा को समृद्ध किया। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और लोककल्याण को सर्वोपरि माना। गोरखपुर की गोरक्षपीठ नाथपंथ की अध्यक्षीय पीठ है। इसका हर निर्णय नाथपंथ और गोरखपुर के लोगों को सर्वमान्य होता है। गोरखनाथ मंदिर की वर्तमान भव्यता, शानदार वास्तुशिल्प महंत अवेद्यनाथ की ही देन है।
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महंत अवेद्यनाथ सितंबर 12 वर्ष 2014 को ब्रह्मलीन हुए थे। तब अपने शोक संदेश में राम मंदिर आंदोलन के शिखरतम लोगों में शुमार विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक अशोक सिंघल ने कहा था, “वह श्री रामजन्म भूमि के प्राण थे। सबको साथ लेकर चलने की उनमें विलक्षण प्रतिभा थी। उसी के परिणाम स्वरूप श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन के साथ सभी संप्रदायों, दार्शनिक परम्पराओं के संत जुड़ते चले गए।”
महंत अवेद्यनाथ का जन्म 28 मई 1921 को गढ़वाल (उत्तरांचल) जिले के कांडी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम राय सिंह विष्ट था। अपने पिता के वे इकलौते पुत्र थे। उनके बचपन का नाम कृपाल सिंह विष्ट था। नाथ परंपरा में दीक्षित होने के बाद वे अवेद्यनाथ हो गए।
बचपन में माता-पिता का निधन हो गया। कुछ बड़े हुए तो पाल्य दादी नहीं रहीं। इसके बाद उनका मन विरक्त हो गया। ऋषिकेश में संन्यासियों के सत्संग से हिंदू धर्म, दर्शन, संस्कृत और संस्कृति के प्रति रुचि जगी तो शांति की तलाश में केदारनाथ, ब्रदीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और कैलाश मानसरोवर की यात्रा की। वापसी में हैजा होने पर साथी उनको मृत समझ आगे बढ़ गए। ठीक हुए तो मन और विरक्त हो उठा। इसके बाद नाथ पंथ के जानकार योगी निवृत्तिनाथ, अक्षयकुमार बनर्जी और गोरक्षपीठ के सिद्ध महंत रहे गंभीरनाथ के शिष्य योगी शांतिनाथ से भेंट (1940 में) हुई। निवृत्तिनाथ द्वारा ही उनकी मुलाकात तबके गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ से हुई। पहली मुलाकात में उन्होंने शिष्य बनने के प्रति अनिच्छा जताई। कुछ दिन करांची में एक सेठ के यहां रहे। सेठ की उपेक्षा के बाद शांतिनाथ की सलाह पर वह गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ में आकर नाथपंथ में दीक्षित हुए।
उन्होंने चार बार (1969, 1989, 1991 और 1996) गोरखपुर सदर संसदीय सीट से यहां के लोगों का प्रतिनिधित्व किया। लोकसभा के अलावा उन्होंने पांच बार (1962, 1967, 1969, 1974 और 1977) में मानीराम विधानसभा का प्रतिनिधित्व भी किया था। 1984 में शुरु रामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति के शीर्षस्थ नेताओं में शुमार महंत अवेद्यनाथ श्रीरामजन्म भूमि यज्ञ समिति के अध्यक्ष व रामजन्म भूमि न्यास समिति के आजीवन सदस्य रहे। बहुसंख्यक समाज को जोड़ने के लिए सहभोजों के क्रम में महंत अवेद्यनाथ ने बनारस में संतों के साथ डोमराजा के घर सहभोज किया। महंत अवेद्यनाथ ने वाराणसी व हरिद्वार में संस्कृत का अध्ययन किया। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से जुड़ी शैक्षणिक संस्थाओं के अध्यक्ष व मासिक पत्रिका योगवाणी के संपादक भी रहे।
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10 साल पहले (12 सितंबर 2014 ) गोरक्षपीठ के महंत अवेद्यनाथ का ब्रह्म्लीन होना सामान्य नहीं, बल्कि इच्छा मृत्यु जैसी घटना थी। चिकित्सकों के मुताबिक, वर्ष 2001 जब वे पैंक्रियाज के कैंसर से पीड़ित थे। उम्र और आपरेशन के बाद ऐसे मामलों में लोगों के बचने की संभावना सिर्फ 5 फीसद होती है। इसी का हवाला देकर उस समय दिल्ली के एक नामी डाक्टर ने आपरेशन करने से मना कर दिया था। पर बड़े महाराजजी उसके बाद 14 वर्ष तक जीवित रहे। आपरेशन करने वाले डॉक्टर अक्सर पीठ के उत्तराधिकारी (अब पीठाधीश्वर और मुख्यमंत्री) योगी आदित्यनाथ से फोन पर बड़े महाराज का हाल-चाल पूछते थे। यह बताने पर की उनका स्वास्थ्य बेहतर है, हैरत भी जताते थे। बकौल योगी, यह गुरुदेव के योग का ही चमत्कार था।
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