हमारे महान ऋषि भारतीय संस्कृति के उन्नायक व राष्ट्र-धर्म के संरक्षक ही नहीं, अपितु मानवीय चेतना को प्रकाशमान करने वाले ऐसे अनूठे दीप हैं, जिनकी ज्योति कभी भी मंद नहीं हो सकती। संसार की विभिन्न रहस्यमय विद्याओं की खोज और उनके माध्यम से एक जागृत जीवंत व विकसित आर्यावर्त का विकास इन्हीं महान ऋषियों की अप्रतिम मेधा का सुफल है। इन मंत्र दृष्टा ऋषियों ने समूची मानव जाति का जो कल्याण किया है, उसके लिए हम कभी भी उनके उपकारों से उऋण नहीं हो सकते। सनातन धर्मी हिन्दू धर्मावलम्बी प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी का पर्व मनाकर इन महान ऋषियों का शास्त्रोक्त विधियों से नमन-वंदन करते हैं।
अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पंड्या कहते हैं कि यह सच है कि आधुनिक विज्ञान एक युग सत्य बनकर हमारे सामने खड़ा है; मगर आज के वैज्ञानिक आविष्कारों की सबसे बड़ी चूक आत्मिकी की उपेक्षा है। यही वजह है कि आज विज्ञान के नित नूतन हो रहे आविष्कारों ने मानव के अस्तित्व को इस कदर घेर दिया है कि मनुष्य की अपनी चेतना ही विस्मृत होती जा रही है। आज मानव अपने हर समाधान के लिए विज्ञान पर निर्भर है और विज्ञान की वर्तमान स्थिति यह है कि वह जितने समाधान जुटाता है, उससे कहीं अधिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं। इसका एकमात्र निदान है मानवीय चेतना का अध्ययन व मनन। हमारे ऋषि इस विधा के मर्मज्ञ थे। उनका मानना था कि अति भौतिक प्रकृति के नियम और सम्भावनाओं को जाने बिना न तो भौतिक प्रकृति के नियम और न ही इसकी सम्भावनाओं को जाना जा सकता है। “यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे” (जो कुछ भी इस विश्व ब्रह्मांड में है, वह सब कुछ हमारी देह में निहित है) के सूत्र का प्रतिपादन करने वाले वैदिक ऋषियों ने जहां मानव चेतना की विशिष्टताओं को जाना, उसकी सम्भावनाओं को परखा, वहीं उन्होंने यह भी बताया कि मानव चेतना का विस्तार असीम है। वैदिक ऋषियों का यह निष्कर्ष ही भारतीय दर्शन की विविध परम्पराओं में बहुविध रूप से मुखरित हुआ है।
गायत्री महाविद्या के सिद्ध साधक पंडित श्री राम शर्मा आचार्य लिखते हैं कि वैदिक दर्शन की मान्यता के अनुसार हिन्दू धर्म के मूल आधार ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद ये चार ग्रन्थ हैं। ऋग्वेद में लगभग एक हजार सूक्त हैं, यानी लगभग दस हजार मन्त्र। चारों वेदों में करीब बीस हजार से ज्यादा मंत्र हैं। वेदों में वर्णित ऋषि प्रणीत ज्ञान विज्ञान सृष्टि संचालन का मुख्य आधार है, इसीलिये वेदों को सृष्टि का संविधान भी कहा गया है। हमारे समाज में सदियों से जो जन हितकारी प्रथा-परम्पराएं प्रचलित हैं, उनके प्रणेता व प्रेरणा स्रोत हमारे ऋषिगण ही हैं। ये सात शिष्य हैं-वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, अत्रि, भारद्वाज, वामदेव व शौनक। इन ऋषियों ने विभिन्न विषयों पर महत्त्वपूर्ण शोध किये हैं। पुराने समय में जब दिशा बताने वाले यंत्र नहीं थे, तब समुद्र यात्रा के समय दिन में तो सूर्य को देखकर दिशा का अनुमान लगाया जाता था, लेकिन रात में ध्रुव तारे और सप्तऋषि तारामंडल को देखकर दिशा का ज्ञान किया था। इन सात ऋषियों ने इस देश को इतना कुछ दे डाला कि कृतज्ञ देश ने इन्हें आकाश के तारामंडल में बिठाकर एक ऐसा अमरत्व दे दिया कि सप्तर्षि शब्द सुनते ही हमारी कल्पना आकाश के तारामंडलों पर टिक जाती है।
राजा दशरथ के कुलगुरु ब्रह्मर्षि वशिष्ठ सप्तर्षि मंडल के प्रथम सदस्य माने जाते हैं। वैदिक विवरणों के अनुसार ब्रह्मर्षि वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे एक साथ ऋग्वेद के सौ सूक्तों की रचना कर अपनी वरिष्ठता प्रमाणित की थी। ऋषि विश्वामित्र ऋषि होने के पूर्व विश्वरथ नाम के राजा थे। कामधेनु गाय के लिए उनका ऋषि वशिष्ठ से युद्ध हुआ था लेकिन वे हार गये। मगर इस हार ने उन्हें राजा से ऋषि विश्वामित्र बना दिया। गायत्री महामंत्र के प्रणेता विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था। इसी तरह ऋग्वेद के 103 सूक्त वाले आठवें मण्डल के मन्त्रों के रचयिता महर्षि कण्व तथा उनके वंशज तथा गोत्रज माने जाते हैं। वैदिक ऋषि कण्व ने ही सोमयज्ञ की परम्परा डाली थी। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। वैदिक ऋषि भारद्वाज देवगुरु बृहस्पति के पुत्र थे। वनवास के समय श्रीराम इनके आश्रम में गये थे। ॠग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा भारद्वाज ऋषि हैं। इस मण्डल में भरद्वाज के 765 मन्त्र हैं। अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं। “भारद्वाज-स्मृति” एवं “भारद्वाज-संहिता” के रचनाकार भी वही थे। ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा महर्षि अत्रि ने इस देश में कृषि के विकास में योगदान दिया था। अत्रि के कारण ही अग्नि पूजकों के धर्म का सूत्रपात हुआ। वामदेव ने इस देश को सामगान (अर्थात संगीत) दिया। वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के मंत्र द्रष्टा तथा जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं। भरत मुनि द्वारा रचित भरत नाट्य शास्त्र सामवेद से ही प्रेरित है। हजारों वर्ष पूर्व लिखे गए सामवेद में संगीत और वाद्य यंत्रों की संपूर्ण जानकारी मिलती है। वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों के गुस्र्कुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया था।
उपरोक्त वैदिक विभूतियों के अलावा के अलावा उपनिषद काल में अगस्त्य, कश्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, गौतम, व्यास, चरक, सुश्रुत, जमदग्नि-याज्ञवल्क्य व नारद जैसे महान ऋषियों की महान उपलब्धियों ने विश्व मानव के कल्याण का जो दिव्य पथ प्रशस्त किया है, उसके लिए इस पुण्य दिवस पर उनको शत शत नमन!
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