1 सितंबर 2024 को, भारत के न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जुड़ा, जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित एक भव्य समारोह के दौरान सुप्रीम कोर्ट के नए ध्वज और प्रतीक चिह्न का अनावरण किया। इस कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ सहित कई उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश और विधि विशेषज्ञ उपस्थित थे।
सुप्रीम कोर्ट का नया ध्वज और प्रतीक चिह्न
नए ध्वज और प्रतीक चिह्न में अशोक चक्र, सुप्रीम कोर्ट की इमारत और भारत के संविधान के प्रतीक चिह्न को प्रमुखता से शामिल किया गया है। ये प्रतीक भारतीय न्याय व्यवस्था की स्थायित्व, निष्पक्षता, और गरिमा को दर्शाते हैं। ध्वज और प्रतीक चिह्न के माध्यम से भारतीय न्यायपालिका की शक्ति और जिम्मेदारी को व्यक्त किया गया है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का संदेश
इस अवसर पर अपने संबोधन में, राष्ट्रपति मुर्मू ने न्याय व्यवस्था के मौजूदा सामाजिक परिदृश्य पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, “यह हमारे सामाजिक जीवन का एक दुखद पहलू है कि कुछ मामलों में, साधन संपन्न लोग अपराध करने के बाद भी निर्भय और खुलेआम घूमते हैं। जो लोग अपराधों से पीड़ित हैं, वे डरे और सहमे रहते हैं, मानो उन्होंने, बेचारे, कोई अपराध कर दिया हो।”
राष्ट्रपति का यह बयान न केवल न्याय व्यवस्था में व्याप्त असमानता की ओर इशारा करता है, बल्कि यह भी बताता है कि समाज के सबसे कमजोर वर्गों के लिए न्याय सुनिश्चित करना कितना महत्वपूर्ण है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का बयान
कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने भी न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे की स्थिति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वर्तमान में जिला स्तर पर केवल 6.7 प्रतिशत अदालतों का बुनियादी ढांचा महिलाओं के अनुकूल है, जिसे बदलने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, “यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अदालतें समाज के सभी सदस्यों के लिए सुरक्षित और आरामदायक वातावरण प्रदान करें। हमें बिना किसी सवाल के इस तथ्य को बदलना होगा कि जिला स्तर पर हमारे न्यायालयों का केवल 6.7 प्रतिशत बुनियादी ढांचा ही महिलाओं के अनुकूल है।
सीजेआई ने यह भी कहा कि अदालतों की सुलभता बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे का ‘ऑडिट’ आवश्यक है, जिससे न्यायपालिका को और अधिक समावेशी बनाया जा सके।
राष्ट्रपति मुर्मू और सीजेआई चंद्रचूड़ के संदेश न्यायपालिका की भविष्य की दिशा को स्पष्ट करते हैं, जिसमें समाज के सभी वर्गों के लिए न्याय सुनिश्चित करने और अदालतों के बुनियादी ढांचे को और अधिक सुलभ बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने की जरूरत है।
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