निषाद कुमार का नाम आज भारत में खेल प्रेमियों के बीच एक प्रेरणादायक मिसाल के रूप में लिया जाता है। उनकी संघर्षपूर्ण यात्रा और अदम्य साहस हर किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। निषाद ने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी। उनके इसी जज्बे और मेहनत ने उन्हें पेरिस पैरालिंपिक के हाई जंप इवेंट में सिल्वर मेडल तक पहुंचा दिया। T47 वर्ग में हिस्सा लेते हुए, निषाद ने 2.04 मीटर की ऊँचाई पर छलांग लगाकर दूसरा स्थान हासिल किया। इसके साथ ही भारत ने इस पैरालिंपिक में अपना सातवां पदक अपने नाम किया।
निषाद कुमार का जन्म हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनका बचपन साधारण था, लेकिन एक हादसे ने उनकी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। जब निषाद मात्र 8 साल के थे, तो जानवरों के लिए चारा काटते समय उनका हाथ मशीन में आ गया, जिससे उनका दायां हाथ कट गया। इस हादसे ने न सिर्फ उनके शारीरिक जीवन को बदला, बल्कि उनके मनोबल को भी चुनौती दी।
इस हादसे के बाद, निषाद के जीवन में एक नया मोड़ आया, जिसने उनके सपनों को कठिनाइयों के बावजूद नहीं टूटने दिया। उन्होंने अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत में बदलने का संकल्प लिया। उनका परिवार, खासकर उनकी मां, उनके लिए सबसे बड़ा सहारा और प्रेरणा बनीं। उनकी मां खुद एक राज्य स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी और डिस्कस थ्रोअर रही हैं, जिन्होंने हमेशा निषाद को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इसी प्रेरणा के चलते निषाद ने 2009 में पैरा-एथलेटिक्स में कदम रखा और अपनी नई यात्रा की शुरुआत की।
पेरिस पैरालिंपिक में सिल्वर मेडल जीतना निषाद के लिए सिर्फ एक पदक नहीं था, बल्कि यह उनके अदम्य साहस और संघर्ष की एक अद्वितीय पहचान थी। उन्होंने यह साबित कर दिया कि किसी भी मुश्किल परिस्थिति में भी अगर इंसान का हौसला और विश्वास मजबूत हो, तो वह किसी भी चुनौती को पार कर सकता है।
निषाद की इस सफलता के पीछे उनके कोच,परिवार, और दोस्तों का भी बड़ा योगदान रहा। उन्होंने निषाद को हर कदम पर समर्थन दिया और उन्हें कभी हार मानने नहीं दी। निषाद की इस उपलब्धि ने पूरे देश को गर्वित किया है और उन्हें एक प्रेरणादायक उदाहरण के रूप में स्थापित किया है।
निषाद कुमार की कहानी उन सभी लोगों के लिए एक जीवंत प्रेरणा है, जो जीवन में किसी न किसी कठिनाई का सामना कर रहे हैं।
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