POK की कार्यकर्ता अस्मा बतूल बेअदबी के आरोप में गिरफ्तार, बलात्कार पर सलमान हैदर की कविता की थी साझा
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POK की कार्यकर्ता अस्मा बतूल बेअदबी के आरोप में गिरफ्तार, बलात्कार पर सलमान हैदर की कविता की थी साझा

स्पष्ट है कि वे महिलाओं पर ही अपनी बात कर रही हैं। मगर फ़ेसबुक पर सलमान हैदर द्वारा लिखी गई कविता को साझा करने को लेकर उनपर बेअदबी का आरोप लगाया गया और उनके घर को भी जलाने का प्रयास किया गया।

by सोनाली मिश्रा
Aug 30, 2024, 11:11 am IST
in विश्लेषण
Asma Batool arrested in blashphemy case

अस्मा बतूल

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पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रही ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाली कार्यकर्ता अस्मा बतूल को पाकिस्तान में बेअदबी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है। उन्होंने कलकत्ते की बलात्कार पीड़िता को लेकर सलमान हैदर की एक नज़्म साझा की थी। इस कविता में कुछ ऐसा लिखा था कि “खुदा, भगवान या ईश्वर, सब मौजूं थे, जब रेप हुआ!” मगर सलमान हैदर की इस कविता को साझा करने के बाद अस्मा बतूल कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गईं। उन पर बेअदबी का आरोप लगाया गया और भीड़ ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई।

अस्मा बतूल पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर भी मुखर रहती हैं। उनकी सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल में उन्हें होली मनाते हुए देखा जा सकता है। वे हर अन्याय पर अपनी आवाज उठाती हैं, मगर यह हैरत की बात है कि उन्हें उस कविता को साझा करने के आरोप में बेअदबी के आरोप में गिरफ्तार किया गया, जिसे किसी और ने लिखा और न जाने कितने लोगों ने साझा किया है। अस्मा ने अपनी इंस्टा प्रोफ़ाइल पर एक और नज़्म साझा की। उन्होनें इस वीडियो में कलकत्ते की डॉक्टर का चित्र लगाया था और साथ ही उन्होनें उस विदेशी महिला का भी चित्र लगाया था, जिसके साथ अभी हाल ही में पाकिस्तान में पाँच दिनों तक बलात्कार करने के बाद सड़क पर छोड़ दिया था।

इसे भी पढ़ें: Kerala: पहले रेप के आरोपी MLA मुकेश को बचाने की कोशिश की, दबाव बना तो कार्रवाई को मजबूर हुई CPI(M)

स्पष्ट है कि वे महिलाओं पर ही अपनी बात कर रही हैं। मगर फ़ेसबुक पर सलमान हैदर द्वारा लिखी गई कविता को साझा करने को लेकर उनपर बेअदबी का आरोप लगाया गया और उनके घर को भी जलाने का प्रयास किया गया। उनके परिजनों पर यह दबाव डाला गया कि वे अस्मा बलूत से नाता तोड़ लें। इस आशय का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
स्थानीय मौलाना के नेतृत्व में एक भीड़ ने अस्मा बतूल के परिजनों को धमकी दी कि जब तक वे उससे अपना नाता नहीं तोड़ेंगे, तब तक इलाके का कोई भी इंसान ताल्लुकात नहीं रखेगा।

बतूल ने यह कविता अपनी फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल पर साझा की थी, और उसके बाद उन्हें धमकियाँ मिलने लगी थीं। उनके खिलाफ 25 अगस्त को पुंछ में अहलस सुन्नत वाल जमात के अध्यक्ष मौलाना ताहिर बशीर ने एफआईआर दर्ज कराई। अस्मा की फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल से वह पोस्ट अब गायब है, परंतु उनकी प्रोफ़ाइल देखकर यह समझ में आता है कि वे एक स्वतंत्र आवाज उठाने वाली लड़की है। कलकता की डॉक्टर के बलात्कार को लेकर भी काफी मुखर हैं और उन्होंने उस पर और भी पोस्ट की हैं। अस्मा को धमकियाँ भी मिल रही थीं, जिन्हें लेकर उन्होंने फ़ेसबुक पर लिखा भी था।

अस्मा और भी मामलों को लेकर सरकार के खिलाफ मुखर रहती हैं, वे समाज को लेकर मुखर रहती हैं। वे उन मामलों पर भी लिखती हैं, जिस पर सहज कोई लिखता नहीं है। एक कुत्ते को घेरकर उसके कानों में बाजा बजाते हुए बच्चों पर भी उन्होंने लिखा था कि बेजूबानों के प्रति सहनशीलता सिखाए जाने की जरूरत है। बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ अभी हाल ही में हुए अत्याचार पर उन्होंने लिखा था। अस्मा छात्र संगठन जम्मू कश्मीर नेशनल स्टूडेंट्स फेडरेशन से जुड़ी हैं। अस्मा की फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल पर जिन लोगों ने उन्हें समर्थन दिया है, उनमें से कइयों ने इस बात को लिखा है कि अस्मा की आवाज को कई लोग बंद कराना चाहते थे, क्योंकि अस्मा के सवाल उन्हें असहज करते थे। मगर चूंकि वे और किसी बहाने से उसे शांत नहीं करा पाए, तो उन्होनें उसे अब बेअदबी के आरोप में बंद कराने का प्रयास किया है। जो ताकतें उसे और किसी कारण से शांत नहीं करा सकीं उन्होंने अब मजहब का सहारा लेकर शांत कराने की कोशिश की है।

लोगों का कहना है कि जब सरकार में बैठे नुमाइंदे और कुछ नहीं कर पाए तो उन्होंने कट्टरपंथियों को किराए पर लिया और ये पुलिस मुकदमे किए। अस्मा बतूल के साथ इस संगठन के अध्यक्ष अर्सलान शानी के खिलाफ भी शिकायत दर्ज है। यह कविता अर्शलान शानी ने साझा की थी। उन्होंने भी कलकत्ता की बलात्कार पीड़िता को लेकर ही यह कविता साझा की थी। और इस पोस्ट को बाद में अस्मा बतूल ने साझा किया था। ऐसा भी नहीं है कि इन पंक्तियों को पहली बार साझा किया गया हो। इन पंक्तियों को न जाने कितनी बार पाकिस्तान के ही लोगों ने साझा किया है, मगर फिर भी बेअदबी का आरोप लगाया जाना, कहीं न कहीं से लोगों को समझ नहीं आ रहा है।

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वामपंथी पोर्टल marxistreview.asia में इसे लेकर लिखा गया है कि आखिर कैसे एक वायरल सोशल मीडिया का प्रयोग करके एक राज्य किसी भी एक्टिविस्ट के बोलने की आजादी को छीन सकता है। इसका कहना है कि यदि इन घटनाओं पर रोक नहीं लगाई गई तो जल्दी ही कई और एक्टिविस्ट इस काले कानून का शिकार होंगे। यह बहुत हैरान करने वाली बात है कि जहां पाकिस्तान में कम्युनिस्ट एक्टिविस्ट बेअदबी जैसे काले कानूनों का शिकार हो रहे हैं, वहीं भारत का कम्युनिस्ट लेखक वर्ग अपने ही विचारों के कार्यकर्ताओं के दमन को लेकर बात नहीं करता है।

पूरी दुनिया की बहनों एक हो जाओ, का नारा देने वाली फेमिनिस्ट औरतें भी पाक के कब्जे वाले कश्मीर की एक्टिविस्ट अस्मा बतूल के समर्थन में कुछ नहीं कह रहे हैं, जो सलमान हैदर की एक कविता को साझा करने के कारण संकट में है। वे पाकिस्तान में हिंदुओं के अधिकारों को लेकर मौन रहती हैं समझ में आता है, मगर अस्मा बतूल, जो कि एक कम्युनिस्ट पोर्टल के अनुसार स्वतंत्र विचारों वाली या कहें उन्हीं के विचार साझा करने वाली एक्टिविस्ट है, उसकी इस गिरफ़्तारी पर भी यहाँ चुप्पी है, यह समझ से परे है।

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सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के कई स्वतंत्र पत्रकारों ने इसे लेकर पाकिस्तान की निंदा की है और प्रश्न किया है कि क्या केवल हम यही होकर रह गए हैं? सोशल मीडिया पर अस्मा बतूल की रिहाई को लेकर अभियान चल रहा है, अब यह देखना होगा कि अस्मा बतूल रिहा होती हैं या फिर एक बार फिर पाकिस्तान का पूरा सिस्टम कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेक देगा, जैसा कि हाल ही में देखा गया था।

Topics: सोशल मीडियाsocial mediapokinstagramपीओकेइंस्टाग्रामअस्मा बतूल बेअदबीAsma Batool sacrilegeपाकिस्तानPakistan
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