‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ हर साल 29 अगस्त को मनाया जाता है जिसका उद्देश्य लोगों को खेलों के महत्व के बारे में जागरूक करना, खेल संस्कृति को बढ़ावा देना और लोगों को खेलों को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाकर फिट और स्वस्थ रहने के लिए प्रोत्साहित करना है। वास्तव में ‘हॉकी के जादूगर’ के रूप में विख्यात मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन के अवसर पर यह दिन मनाने का सबसे प्रमुख उद्देश्य अनुशासन, दृढ़ता, खिलाड़ी भावना, टीम वर्क इत्यादि खेलों के मूल्यों के बारे में जागरूकता फैलाना है। इस वर्ष राष्ट्रीय खेल दिवस का महत्व इसलिए भी बहुत ज्यादा है क्योंकि इसी महीने कुछ भारतीय खिलाड़ी पेरिस ओलंपिक में भारत की विजय पताका फहराकर लौटे हैं। यह गर्व का विषय है कि भारतीय खिलाड़ी अब क्रिकेट हो या निशानेबाजी, बैंडमिंटन हो या टेबल टेनिस, भारोत्तोलन हो या कुश्ती, हॉकी हो या भाला फैंक, तमाम खेल स्पर्धाओं में वैश्विक मंचों पर सफलता की इबारत लिख रहे हैं। पेरिस ओलंपिक में भले ही भारत के पदकों की संख्या इस बार पिछली बार से कम रही लेकिन छह खिलाड़ियों ने पदक जीतकर और कुछ ने अपने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन कर देश को गौरवान्वित किया। मनु भाकर, सरबजोत सिंह, स्वप्निल कुसाले, नीरज चोपड़ा, अमन सहरावत तथा भारतीय पुरूष हॉकी टीम ने तो ओलंपिक में पदक जीतकर देश में जश्न का माहौल बना दिया। ऐसे में ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के अवसर पर ओलंपिक विजेताओं के प्रदर्शन पर चर्चा करना जरूरी है।
भारत को पेरिस ओलंपिक में सबसे पहली जीत दिलाई थी मनु भाकर ने, जिन्होंने ऐसा कमाल कर दिखाया था, जो 1904 के बाद से किसी भी ओलंपिक में कोई भी भारतीय खिलाड़ी नहीं कर पाया था। पहला कांस्य पदक जीतने के साथ ही वह ओलंपिक के इतिहास में भारत के लिए निशानेबाजी में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला शूटर बन गई और उस पदक के साथ ही मनु ने शूटिंग में भारत के पदक के 12 वर्ष के सूखे को भी खत्म किया। ओलंपिक के 124 वर्ष के इतिहास में मनु से पहले भारत को शूटिंग में केवल 4 पदक ही नसीब हुए थे जबकि भारत केवल पेरिस ओलंपिक में ही मनु के दो पदकों सहित कुल 3 पदक जीतने में सफल हुआ। मनु ने अपना पहला पदक 28 जुलाई को 10 मीटर एयर पिस्टल शूटिंग के महिला वर्ग में जीता और दो ही दिन बाद 30 जुलाई को सरबजोत सिंह के साथ मिलकर 10 मीटर एयर पिस्टल के मिक्स्ड टीम इवेंट में एक और कांस्य पदक जीता।
वह एक ही ओलंपिक में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गई हैं। निशानेबाज सरबजोत सिंह ने 30 जुलाई को मनु के साथ मिक्स्ड 10 मीटर एयर पिस्टल का कांस्य पदक जीता था। सरबजोत के लिए यह पदक इसलिए बेहद महत्वपूर्ण था क्योंकि वह अपने पहले ओलंपिक में भाग ले रहे थे। सरबजोत ने इससे पहले 2023 में भोपाल में आयोजित हुए आईएसएसएफ विश्वकप में 10 मीटर एयर पिस्टल में स्पर्ण पदक जीता था तथा दक्षिण कोरिया में आयोजित हुई 15वीं एशियाई शूटिंग चौंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था। ओलंपिक में भी उन्होंने अपने प्रदर्शन से देश को गौरवान्वित किया।
1 अगस्त को पेरिस ओलंपिक में 50 मीटर राइफल थ्री पोजीशन शूटिंग स्पर्धा में भारत के लिए तीसरा पदक जीता महाराष्ट्र के स्वप्निल कुसाले ने। किसी भारतीय शूटर ने ओलंपिक के इस इवेंट में पहली बार कोई पदक जीता। स्वप्निल वैसे तो 2012 से ही अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेल रहे हैं लेकिन ओलंपिक में भाग लेने के लिए उन्हें 12 वर्ष लंबा इंतजार करना पड़ा और अपने पहले ही ओलंपिक में उन्होंने भारत को पदक दिलाकर इतिहास रच दिया। वह 2022 के एशियाई खेलों की टीम इवेंट में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम में शामिल रहे थे। ओलंपिक में भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी में मिली जीत के दृष्टिगत 8 अगस्त का दिन तो भारत के लिए ऐतिहासिक रहा, जब भारत हॉकी में लगातार दूसरे ओलंपिक में पदक जीतने में सफल हुआ। भारतीय हॉकी टीम ने 41 वर्षों के बेहद लंबे सूखे के बाद 2020 के टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था और इस बार भी कांस्य जीतकर टीम पेरिस में भारत का झंडा बुलंद करने में सफल हुई। भारत के लिए हॉकी में मिली जीत इसीलिए बेहद महत्वपूर्ण थी क्योंकि 1980 के मॉस्को ओलंपिक के बाद से भारत को अब तक केवल दो बार ही ओलंपिक में पदक जीतने का मौका मिला है।
पेरिस ओलंपिक में भारत को यदि स्वर्ण पदक जीतने की सबसे ज्यादा उम्मीद किसी खिलाड़ी से थी तो वह थे भारत के स्टार जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा। भले ही नीरज को चांदी से संतोष करना पड़ा लेकिन इसके बावजूद वे देश के सबसे सफल ओलंपियन बन गए। वह भारत के पहले ऐसे खिलाड़ी बन गए हैं, जिन्होंने व्यक्तिगत स्पर्धा में ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद अगले ओलंपिक में भी एक और पदक जीता। नीरज ओलंपिक में एक स्वर्ण और एक रजत पदक जीतने वाले पहले भारतीय एथलीट हैं। इससे पहले नीरज ने 7 अगस्त 2021 को टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड जीता था और पिछली तमाम अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में वह जिस प्रकार का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे थे, ऐसे में उनसे इस बार भी समस्त देशवासियों को पूरी उम्मीद थी कि वह गोल्ड जीतकर ‘विश्व विजेता’ बनेंगे लेकिन वह चांदी पर ही निशाना लगाने में सफल हो सके।
हालांकि वह भले ही ‘गोल्ड’ से चूक गए लेकिन वह ऐसे भारतीय खिलाड़ी हैं, जिन्होंने टोक्यो ओलंपिक में भारत का एथलेटिक्स (ट्रैक एंड फील्ड इवेंट्स) में पदक जीतने का 121 साल लंबा इंतजार खत्म कराया था। ओलंपिक में कुश्ती में भारत का परचम लहराया पहलवान अमन सहरावत ने, जिन्होंने प्यूर्टो रिको के डरलिन तुई क्रूज को एकतरफा मुकाबले में हराकर कांस्य पदक जीता और इस प्रकार कुश्ती में भारत लगातार पांचवें ओलंपिक में पदक जीतकर इतिहास रचने में सफल हुआ। अमन पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालीफाई होने वाले भारत के एकमात्र पुरुष पहलवान थे और उन्होंने जीत के साथ 140 करोड़ भारतीयों में जोश भर दिया। वह ओलंपिक में पदक जीतने वाले सबसे कम उम्र के भारतीय एथलीट हैं।
बहरहाल, इन ओलंपिक विजेताओं से प्रेरणा लेते हुए युवाओं में खेलों के प्रति ऐसा जोश और जज्बा पैदा करने की अब सख्त जरूरत है, जिससे भारत अन्य प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं के अलावा ओलंपिक में भी तहलका मचा दे। भारत ने मेजर ध्यानचंद के अलावा सचिन तेंदुलकर, पीटी उषा जैसे अनेक ऐसे खिलाड़ियों को जन्म दिया है, जो न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए मिसाल बने हैं। जरूरत है, उभरती खेल प्रतिभाओं के टैलेंट को पहचानकर उन्हें हर तरह की सुविधाएं मुहैया कराते हुए तराशने की, ताकि भारत आने वाले वर्षों में खेलों की दुनिया में अपना परचम लहरा सके।
टिप्पणियाँ