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ढाका ट्रिब्यून के संपादक की करतूत: बांग्लादेश में हुई हिंसा को किया खारिज, कहा- भारत से ज्यादा अल्पसंख्यक यहां सुरक्षित

ट्रिब्यून का पूरा लेख भारत को दोषी ठहराता हुआ लिखा गया है, जिसमें यह कहा गया है कि भारत में लोगों ने बांग्लादेश की स्थितियों को नहीं समझा।

by सोनाली मिश्रा
Aug 27, 2024, 09:55 pm IST
in विश्लेषण
Bangladesh Violence UN report
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बांग्लादेश में 5 अगस्त 2024 के बाद, अर्थात शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद हिंदुओं के साथ जो हिंसा हुई, उसे पूरे संसार ने देखा, उसे पूरे संसार ने महसूस किया और यह भी देखा कि कैसे राजनीतिक विरोध के नाम पर हिंदुओं के धार्मिक स्थलों पर आक्रमण किए गए। उन्हें जलाया गया और वहाँ पर तोड़फोड़ की गई। मगर यह बहुत ही हैरानी की बात है कि पश्चिमी मीडिया ही नहीं बल्कि भारत का एक बड़ा वर्ग ऐसा था, जिसने यह विमर्श चलाया और अभी तक चला रहा है कि यह सब राजनीतिक था, धार्मिक नहीं।

हिंदुओं को कुएं में कूदकर जान बचानी पड़ी, मगर फिर भी ये हिंसा धार्मिक नहीं थी, ऐसा दावा करने वाले असंख्य लोग हैं।

ढाका की मीडिया के एक वर्ग ने इन हमलों को इससे जोड़कर देखा कि हिंदुओं को अवामी लीग का समर्थक माना जाता है, और इसीलिए उनपर लगातार हमले हुए। ढाका ट्रिब्यून के संपादक ने भी हिंदुओं पर हुई हिंसा को अराजकता में हुई सामान्य हिंसा माना।

ढाका ट्रिब्यून के संपादक ने ढाका ट्रिब्यून में एक लेख लिखा है, जिसमें यह लिखा है कि बांग्लादेश के विषय में भारत को दस चीजों को जानना चाहिए। उन दस बातों में उन्होनें लिखा है कि जो आंदोलन हुआ वह न ही इस्लामिस्ट था और न ही आतंकवादी। इस आंदोलन को चलाने वाले विधार्थी थे, जो एक निष्पक्ष और आजाद बांग्लादेश चाहते थे।

मगर ढाका ट्रिब्यून के संपादक यह नहीं बताते हैं कि यदि वे निष्पक्ष और आजाद बांग्लादेश चाहते थे तो भारत से जुड़ी और बांग्लादेश निर्माण से जुड़ी स्मृतियों को क्यों तोड़ा गया? क्यों बंगबंधु की छवि पर प्रहार किया गया? क्यों शेख हसीना के अंत:वस्त्रों को लहराया गया?

ढाका ट्रिब्यून के संपादक ने लिखा कि जिन्होनें यह आंदोलन किया वे लोकतान्त्रिक हैं और वे एक सच्चा लोकतान्त्रिक बांग्लादेश चाहते हैं। और यह न ही इस्लामिस्ट और न ही आतंकवादी ये कर सकते हैं। बांग्लादेश को उन्होनें न ही इस्लामिस्ट देश कहा और न ही आतंकवादी।

और दूसरी सबसे भटका देने वाली बात उन्होनें कही वह थी कि हिन्दू खतरे में नहीं हैं।

उन्होनें लिखा कि यह सच है कि शेख हसीना के जाने के बाद कुछ समय के लिए अराजकता हुई थी और यह भी सच है कि दुर्भाग्य से कुछ ऐसे भी लोग शिकार बने, जो हिन्दू समुदाय से थे, मगर ऐसे समय में अक्सर निशाना वही लोग बनते हैं, जो अधिकतर शक्तिहीन होते हैं और हम सभी जानते हैं कि दक्षिण एशिया में “अल्पसंख्यक अक्सर निशाने पर रहते हैं।“

मगर यह कहना कि हिंदुओं पर किसी भी प्रकार का हमला हो रहा है, उनका विनाश हो रहा है, यह पूरी तरह से गलत है।“ शुरू में कुछ घटनाएं हुईं, मगर अब चीजें शांत हो रही हैं। और हिंदुओं पर हुए हमलों की खबरें कम हो रही हैं। साथ ही मुस्लिम और हिन्दू जिस प्रकार से मंदिरों और अल्पसंख्यक पड़ोसियों की रक्षा के लिए एकजुट हुए, वह सभी ने देखा।

इसके बाद इस लेख में लिखा है कि “बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के मामले में हालात बिल्कुल भी सही नहीं हैं, लेकिन तुलना के लिए यदि किसी देश को चुना जाए तो बांग्लादेश में अल्पसंख्यक भारत की तुलना में कहीं अधिक सुरक्षित हैं।“

ढाका ट्रिब्यून के संपादक ज़फ़र सोभान जो हिंदुओं के प्रति हिंसा को नकारते हैं और भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति को बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति से बदतर बताते हैं, का इतिहास भारत विरोधी परिवार से ही जुड़ा है।

वे एक्टिविस्ट और बांग्लादेशी वकील सलमा सोभान के बेटे हैं, जो वर्ष 1959 में पाकिस्तान की पहली महिला बैरिस्टर बनी थी। और इतना ही नहीं सलमा के अब्बू अर्थात ढाका ट्रिब्यून के संपादक जफ़र सोभान के नाना पाकिस्तान के पहले विदेश सचिव थे और जफर की नानी बेगम शाइस्ता सुहारवर्दी पाकिस्तान असेंबली की पहली दो महिला सदस्यों में से एक थीं।

जफर की नानी कलकत्ते के सुहारवर्दी परिवार की सदस्य थी। और सुहारवर्दी परिवार वही परिवार था जिसका हाथ डायरेक्ट एक्शन डे के दौरान हिन्दू हिंसा में था। जफर की अम्मी हुसैन शहीद सुहारवर्दी की कज़िन थी। (स्रोत- विकिपीडिया)

ढाका ट्रिब्यून के संपादक का दृष्टिकोण भारत और हिंदुओं के प्रति कैसा भी हो सकता है, परंतु यह भारत का दुर्भाग्य है कि ढाका ट्रिब्यून के संपादक के ऐसे विचारों को भारत की मीडिया ने प्रचारित करने का कार्य किया।

इनमें प्रिन्ट और स्क्रॉल जैसे पोर्टल्स सम्मिलित हैं, जिन्होनें इस लेख को अपने अपने एक्स पोस्ट्स पर साझा किया।

View from Dhaka Tribune: 10 things about a Bangladesh in transition that Indians should know https://t.co/2absAMZphH

— Scroll.in (@scroll_in) August 23, 2024

प्रिन्ट के शेखर गुप्ता ने भी इस लेख को साझा किया और उन्होनें अपनी पोस्ट में लिखा कि “बांग्लादेश में हिंदू खतरे में नहीं हैं। अल्पसंख्यक वहां भारत से ज्यादा सुरक्षित हैं।’ @ज़फ़र सोभान, संपादक, ढाका ट्रिब्यून, ने 10 बिंदु बताए हैं जिन्हें वह चाहते हैं कि भारत ध्यान में रखे

https://twitter.com/ShekharGupta/status/1827632608370430393?

यह पूरा लेख भारत को दोषी ठहराता हुआ लिखा गया है, जिसमें यह कहा गया है कि भारत में लोगों ने बांग्लादेश की स्थितियों को नहीं समझा । इस लेख में यह भी कहा गया है कि डॉ मुहम्मद यूनुस की सरकार को सभी का समर्थन प्राप्त है।

परंतु जहां तक भारत का प्रश्न है, भारत सरकार ने भी यूनुस सरकार को बधाई ही दी है। जफर का कहना है कि बांग्लादेशी लोग भारत को अवामी लीग द्वारा पिछले दशक के तानाशाही शासन के लिए जिम्मेदार समझते हैं। और बांगलदेश के लोग यह जानते हैं कि यह भारत है जिसने हमेशा ही हसीना के शासन का समर्थन किया है।

इस लेख में शेख हसीना के कथित कुशासन के लिए सबसे अधिक भारत को ही जिम्मेदार ठहराया है। इस लेख में लिखा है कि हसीना भारत की सबसे अच्छी दोस्त थीं और यही मायने रखता है।

और इस लेख में यह भी लिखा है कि भारत अभी तक हसीना और अवामी लीग का समर्थन कर रहा है और यह बांग्लादेश की नीति के समर्थन में नहीं है। जफर का यह भी कहना है कि अमित शाह ने बांग्लादेशियों को दीमक कहा था और भारत के अधिकतर लोग बांग्लादेशियों के विषय में यही सोचते हैं और बांग्लादेश के लोगों के प्रति यह दृष्टिकोण कि “तुम केवल हमारे कारण आजाद हो!” बहुत विचलित करने वाला है।

जफर यह भूल जाते हैं कि भारत में अवैध बांग्लादेशी काफी संख्या में रह रहे हैं और साथ ही वे कई आपराधिक गतिविधियों में लिप्त पाए गए हैं। किसी भी राष्ट्र में अवैध घुसपैठियों को दीमक ही करार दिया जाता है।

परंतु यह सबसे हैरानी की बात है कि ऐसे भारत विरोधी लेख को भारत का मीडिया प्रचारित कर रहा है और उसे अपने सोशल मीडिया हैंडल से साझा भी कर रहा है।

क्या कोई भी संपादकीय नीति देश के सम्मान से बढ़कर हो सकती है? क्या इस बात से कोई भी इनकार कर सकता है कि यदि भारत की सेना नहीं होती तो बांग्लादेश वास्तव में अपने इस रूप में नहीं आ सकता था? यह अहसान नहीं है, यह अपने ही देश की साझी संस्कृति वाले लोगों के प्रति एक सहज भाव है।

दरअसल पाकिस्तान के प्रति अपनी असली पहचान को मानने वाले लोग भारत के प्रति वही दृष्टिकोण रखते हैं, जो पाकिस्तान रखता है और यह विशुद्ध वही वैचारिक भूमि है जिसकी नींव ढाका में वर्ष 1906 में मुस्लिम लीग के रूप में रखी गई थी।

और सबसे बड़ा दुर्भाग्य ऐसी वैचारिक भूमि वाले लेखों को भारतीय मीडिया द्वारा प्रचारित करना है, जिस लेख के विरोध में भारत की मीडिया से स्वर आने चाहिए थे, उस लेख को प्रचारित किया जा रहा है। जिस लेख को लेकर यह प्रश्न भारत की मीडिया द्वारा यह पूछा जाना चाहिए था कि यदि बांग्लादेश में भारत की तुलना में अल्पसंख्यक सुरक्षित हैं तो बांग्लादेश में हिंदुओं की संख्या लगातार घट क्यों रही है और भारत में मुस्लिमों की संख्या लगातार बढ़ क्यों रही है?

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