नीरज चोपड़ा भारत के पहले एथलीट हैं, जिन्होंने लगातार दो ओलंपिक में लगातार दो पदक, क्रमश: एक स्पर्ण और एक रजत जीतकर इतिहास रचा है। 2020 में टोक्यो ओलंपिक में 87.58 मीटर भाला फेंककर स्वर्ण पदक अपने नाम करने वाले नीरज ने 2024 के पेरिस ओलंपिक में 89.45 मीटर भाला फेंककर यह उपलब्धि हासिल की है। व्यवहार कुशल और वाक्पटु ओलंपियन नीरज चोपड़ा से सुुप्रसिद्ध लेखिका व शिक्षाविद् डॉ. सुनीता शर्मा ने पानीपत (हरियाणा) स्थित उनके गांव खांद्रा में विस्तृत बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उसी वार्ता के प्रमुख अंश-
भारत में क्रिकेट के प्रति दीवानगी है। ऐसे में क्रिकेट को छोड़कर जैवलिन थ्रो चुनने के पीछे क्या कारण रहा?
जब मैं 11 साल का था तो अपने चाचा सुरेंद्र चोपड़ा के साथ पानीपत स्टेडियम गया था। वहां जयवीर चौधरी को भाला फेंकते देखा। उसे देखकर मैेंने सोच लिया था कि मुझे भी यही खेलना है। इस तरह मेरा एकदम नए, अनोखे खेल से जुड़ना हुआ। चाचा अपने साथ गांव से पानीपत ले जाते थे। दिनभर वहां प्रैक्टिस करता, फिर बस पकड़ कर शाम को वापस घर आता। इस क्रम में मजा आने लगा। मैं उस सफर का आनंद लेता था। उस भाग-दौड़ और प्रैक्टिस में जोश और मजा आता था। आज भी प्रैक्टिस सेशन में ही सबसे ज्यादा मजा आता है। मन में यही रहता है कि अपने सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड से आगे जाना है।
इसमें परिवार का भी पूरा सहयोग मिला। हमारा संयुक्त परिवार है। परिवार ने भी मेरे सपने को पूरा करना ही अपना धर्म माना। पूरे परिवार का त्याग ही है, जिसके कारण मैं आज यहां तक पहुंचा हूं। मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूं। परिवार के साथ के बिना मैं इन ऊंचाइयों को नहीं छू सकता था। हर बंधन, जिम्मेदारी से मुक्त रखकर उन्होंने मुझे खेलने के लिए खुला आसमान दिया ताकि मैं अपनी उड़ान भर सकूं। साल में 2-3 दिन के लिए ही घर आना होता है, लेकिन परिवार में इस बात को लेकर कोई नाराजगी नहीं है। पूरा परिवार मेरे इस सफर, मेरी सफलता में मेरे साथ है। घर से इतना दूर होने के बावजूद मन में खुशी है कि देश के लिए खेल रहा हूं। सोच यही है कि लगातार प्रैक्टिस करते हुए और अच्छा करता जाऊं।
वर्तमान भारत सरकार खिलाड़ियों की हर सुख-सुविधा और प्रशिक्षण पर बहुत ज्यादा पैसा खर्च कर रही है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर खेल से पहले खिलाड़ियों से बात करते हैं, उनका हौंसला बढ़ाते हैं और प्रतियोगिता के बाद भी फोन करते हैं। मेरी और अन्य अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की ज्यादातर ट्रेनिंग विदेश में हो रही है। भारत सरकार ने मेरी ट्रेनिंग पर 5.72 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। भारत सरकार की ओर से ‘खेलो इंडिया योजना’ शुरू की गई है, ताकि देश के गांव-देहात से भी युवा खेलों से जुड़ सकें और देश खेल के क्षेत्र में आगे बढ़े।
ओलंपिक, कॉमनवेल्थ जैसी बड़ी स्पर्धाओं से पहले तनाव होता ही है। ऐसे में खुद को कैसे तैयार करते हैं?
मैं लगा तार अभ्यास को अपना ध्येय मानता हूं और उस समय अपने आप को एक अलग ही जोन में रखता हूं। प्रयास करता हूं कि सहज रहूं। काम और अभ्यास को गंभीरता से लेता हूं और आक्रामक रहता हूं। मुकाबले के समय मेरा व्यक्तित्व बिल्कुल अलग हो जाता है। अब तो कुछ इवेंट्स में चाचा और मित्र भी जाते हैं, लेकिन इस बात से तनाव नहीं लेता। धीरे-धीरे दबाव को झेलने की आदत हो गई है, इसलिए कभी परेशान नहीं होता।
जब टोक्यो ओलंपिक-2020 में स्वर्ण पदक जीता था तो सोशल मीडिया, टीवी, अखबारों में आप ही आप दिखे थे। क्या उससे अभ्यास में कहीं कोई दिक्कत आई?
उस समय मैंने 150-200 साक्षात्कार दिए थे। मीडिया ने मुझे बहुत ज्यादा घेरा हुआ था। रोड शो हुए। हर वक्त चारों तरफ लोगों से घिरा रहता था और मेरी उम्र भी ऐसी थी कि भटक सकता था। लेकिन मैं सौभाग्यशाली रहा कि मुझे पता था मीडिया में इतनी कवरेज और अटेंशन खेल के कारण मिली है। यह जानता था कि अपनी सफलता और मीडिया की चकाचौंध को अपने दिमाग पर हावी नहीं होने देना है। इसलिए मैंने उस समय खिलाड़ी के तौर पर अपने आप को प्रैक्टिस में लगाया। आज मेरा यही मिशन है कि अपने देश के झंडे को और ऊपर उठाऊं। इसी विचार ने मुझे जमीन से जोड़े रखा है।
जैवलिन थ्रो के खिलाड़ियों की हैंड ग्रिप, स्ट्रेंथ और मसल्स ग्रोथ की क्या आदर्श आयु रहती है? आप इसे किस तरह देखते हैं?
30 साल तक की उम्र इस खेल के लिए हर तरह से अच्छी है। मेरी यही कोशिश है कि तीन-चार वर्ष में जो भी बेहतर किया जा सकता है, उसे करूं। अपने ही रिकॉर्ड तोड़ूं और नए रिकॉर्ड बनाऊं। देश के गौरव और सम्मान का कारण बनूं। भारत सरकार हम खिलाड़ियों पर बहुत खर्च कर रही है। हमारी ट्रेनिंग और फिटनेस पर सरकार का पूरा फोकस है। पेरिस ओलंपिक में रजत पदक जीत कर मैंने अपने देश के प्रति अपना आभार व्यक्त किया है।
भारत सरकार विगत कुछ वर्षों से लगातार खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने और उनके प्रदर्शन में सुधार के लिए काम कर रही है। आप इस विषय में क्या कहना चाहेंगे?
वर्तमान भारत सरकार खिलाड़ियों की हर सुख-सुविधा और प्रशिक्षण पर बहुत ज्यादा पैसा खर्च कर रही है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर खेल से पहले खिलाड़ियों से बात करते हैं, उनका हौंसला बढ़ाते हैं और प्रतियोगिता के बाद भी फोन करते हैं। मेरी और अन्य अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की ज्यादातर ट्रेनिंग विदेश में हो रही है। भारत सरकार ने मेरी ट्रेनिंग पर 5.72 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। भारत सरकार की ओर से ‘खेलो इंडिया योजना’ शुरू की गई है, ताकि देश के गांव-देहात से भी युवा खेलों से जुड़ सकें और देश खेल के क्षेत्र में आगे बढ़े।
देश के युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे?
यही कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। लगातार अभ्यास ही आपको आपकी मंजिल तक पहुंचाता है। लोगों को नाम कमाने में वर्षों लग जाते हैं। इसलिए अपने आप को सोशल मीडिया, मस्ती, आनलाइन गेमिंग जैसी ध्यान भटकाने वाली हर चीज से दूर रखता हूं और अपने सपनों को पूरा करने के लिए लगातार अभ्यास करता हूं। यही जुनून लक्ष्य तक पहुंचा सकता है। तब आपके और आपके सपनों के बीच फिर किसी और चीज की गुंजाइश नहीं होती। सफलता के लिए सुखों का त्याग तो करना ही होगा। सोशल मीडिया के माध्यम से लोग आसानी से प्रसिद्ध तो हो जाते हैं, लेकिन यह प्रसिद्धि स्थायी नहीं होती।
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