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मुस्लिम कट्टरपंथियों के आगे झुक गया पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट, अहमदिया समुदाय से जुड़ा है मामला

पाकिस्तान में अहमदिया को मुस्लिम नहीं माना जाता है और वे हज करने भी नहीं जा सकते हैं। उन्हें पासपोर्ट या देश की किसी भी पहचान के कागजात पाने के लिए खुद को गैर-मुस्लिम घोषित करना होता है।

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सोनाली मिश्रा

पाकिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथी किस सीमा तक अदालतों तक हावी हैं यह पहले भी कई मामलों में दिख चुका है और अब फिर से कट्टरपंथी तत्वों के सामने झुककर अदालत ने अपने फैसले में बदलाव किए हैं। यह मामला 20 अगस्त को सामने आया था, जब तहरीक ए लब्बैक के समर्थकों ने सुप्रीम कोर्ट में पहुंचकर हंगामा किया था। मजहबी उन्मादियों ने मुबारक सानी मामले में मुख्य न्यायाधीश काजी फ़ैज़ इसा के नेतृत्व वाली पीठ के खिलाफ विरोध किया।

यह मामला अहदमिया समुदाय के एक व्यक्ति से जुड़ा था। पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय को मुस्लिम नहीं माना जाता है और इन्हें अल्पसंख्यकों जितने अधिकार भी प्राप्त नहीं है। इनके इबादत करने की जगह को मस्जिद तक नहीं कहा जा सकता है। सार्वजनिक स्थल पर किसी भी मजहबी रिवाज को करने की इजाजत नहीं है।

क्या था मामला

मुबारक सानी (अहमदिया ) को इस आधार पर बेअदबी के आरोप में जमानत दे दी गई थी क्योंकि उसने कानून लागू होने से पहले अपराध किया था। पंजाब दीनी किताब कुरान (मुद्रण और रिकॉर्डिंग) (संशोधन) अधिनियम 2021 के अंतर्गत उस पर आरोप लगाए गए थे। सानी को वर्ष 2023 में तफसीर-ए-सगीर (कुरान का छोटा संस्करण) बाँटने के आरोप में हिरासत में लिया गया था, इसमें अहमदिया फिरका बनाने वाले के बेटे द्वारा कुरान की व्याख्या की गई है।

इसी को लेकर कट्टरपंथियों ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश तक को नहीं छोड़ा और विरोध प्रदर्शन किया। तहरीक ए लब्बैक पाकिस्तान (TLP) ने काजी ईसा के सिर पर एक करोड़ का इनाम घोषित किया था। टीएलपी नेता पीर जहीरुल हसन शाह ने यह इनाम पैगंबर का गुलाम होने के नाते घोषित किया था।

इस मामले में जब फैसला दिया गया था, तब इस पर लोगों का ध्यान नहीं गया था, मगर तहरीक ए लब्बैक के नेताओं ने सोशल मीडिया का सहारा लेकर लोगों को भड़काना आरंभ कर दिया। इसी वर्ष फरवरी में ही काजी ईसा के खिलाफ इसी मामले को लेकर प्रदर्शन किए गए थे।

क्या किया सुप्रीम कोर्ट ने?

जब इतना हंगामा और विरोध हुआ तो इस फैसले से पैराग्राफ 7, 42 और 49 सी को हटा दिया गया। जो फैसला पहले किया गया था उसका विरोध करते हुए मुफ्ती ताकी उस्मानी ने पैराग्राफ 42 के विषय में कहा था कि यह कहता है कि अहमदिया आजादी से अपने मत का प्रचार कर सकते हैं, जो उनके हिसाब से गलत है और पाकिस्तान पीनल कोड की धारा 298 के विरोध में हैं, जो गैर-मुस्लिमों को मुस्लिम जैसा दिखने से रोकती है।

उस्मानी ने कहा कि चूंकि अहमदिया लोग अल्पसंख्यक हैं, मगर वे खुद को गैर-मुस्लिम नहीं मानते हैं इसलिए पैराग्राफ 42 को हटाया जाना चाहिए। यह भी तर्क दिए गए कि चूंकि अहमदिया लोगों ने ये व्याख्याएं इस तरीके से की हैं कि कोई भी आम मुस्लिम अंतर नहीं पता कर पाएगा। यह भी कहा गया कि “मुस्लिम आहत हैं और उन्हें संतुष्ट किया जाए!”

पाकिस्तानी मीडिया डॉन के अनुसार ईसा ने कहा कि लंबे फैसलों में अक्सर ऐसी अनदेखी हो जाती है और वे कुछ भागों को हटाने के लिए सहमत हो गए और उन्होंने जो0र दिया कि संसदीय विचारों की इज्जत करते हुए इस्लामिक उसूलों के साथ इंसाफ के फैसले लिए जाने की जरूरत है। फिर उन सभी हिस्सों को हटा दिया, जिनमें यह लिखा था कि अहमदिया लोगों को अपने मत का प्रचार करने की आजादी है और ऐसे सभी हिस्सों को हटाया, जिन पर विवाद था।

मगर इसको लेकर अब वहाँ पर कोर्ट का विरोध हो रहा है। नेताओं से लेकर लेखक तक विरोध कर रहे हैं। उनके अनुसार कोर्ट ने कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेक दिए हैं। अली उस्मान ने लिखा कि एससी (सुप्रीम कोर्ट) का यह आत्मसमर्पण पाकिस्तान में समान नागरिकता के लिए कफन में अंतिम कील है। विवादित पैराग्राफ को हटाकर एससी ने यह बताया दिया है कि अहमदिया अपने मत का पालन निजी रूप में भी नहीं कर सकते।

पाकिस्तान के नेता फवाद हुसैन ने इसे एक्स पर पाकिस्तान के लिए एक दुखद दिन बताया। उन्होंने लिखा कि जिस प्रकार से सुप्रीम कोर्ट ने कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेके हैं, वह शर्मनाक है। जो भी हंगामा हुआ है, उसकी जांच सरकार को करनी चाहिए कि आखिर कौन उसके पीछे है

अहमदिया लोगों को मुस्लिम नहीं माना जाता है और वे हज करने भी नहीं जा सकते हैं। उन्हें पासपोर्ट या देश की किसी भी पहचान के कागजात पाने के लिए खुद को गैर-मुस्लिम घोषित करना होता है।

यह भी विडंबना है कि जिस जमीन के लिए, जिस जमीन की पहचान के लिए अहमदिया समुदाय ने अपनी ही भारत भूमि से दगा किया, उस पर वार किए और लाखों हिंदुओं के रक्त से दोनों ओर की जमीनों को लाल किया, आज उन्हें वह भी पहचान नहीं मिल रही है, जिस पहचान के लिए वे खून बहाकर भारत तोड़कर पाकिस्तान गए थे।

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