बिहार के जमुई जिले की घटना है। सिमुलतला आवासीय विद्यालय शनिवार को खुला था। क्लास में पढ़ाई के लिए कम बच्चे पहुंचे तो शिक्षकों को चिंता हुई। वे गर्ल्स और ब्वॉयज हॉस्टल में गए तो जो देखा वह हैरान करने वाला था। हॉस्टल के कमरे में बाहर से ताला लगा था और अंदर कमरों में चार से पांच छात्र सो रहे थे। कमरों की जांच हुई तो वहां से करीब 300 मोबाइल फोन मिले। मीडिया में स्कूल के प्रभारी प्रिंसिपल का बयान आया। उन्होंने कहा यह बहुत ही संवेदनशील मामला है। बच्चे देर रात तक मोबाइल फोन में वीडियो देखते रहते हैं। इस वजह से स्कूल नहीं आते हैं। हर क्लास में बच्चों की संख्या बहुत कम रहती है। ज्यादातर बच्चे स्कूल में सोते रहते हैं। हो सकता है कि जांच हो और आगे कुछ तथ्य और आएं, लेकिन यह तो तय है कि अब रात किताबों के साथ नहीं, रील और वीडियो के साथ बीतती है।
दूसरी घटना 25 अगस्त यानी आज ही सामने आई है। मामला मोतिहारी का है। एक युवक को पेट में दर्द होने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने एक्स-रे किया तो हैरान रह गए। युवक का ऑपरेशन कर उसके पेट से चाकू, नेल कटर और चाबी का गुच्छा निकाला। घर के लोगों का कहना था कि घर से छोटे-छोटे सामान गायब हो रहे थे। कोई कुछ समझ नहीं पा रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है। शक होने पर युवक से पूछा तो उसने कहा कि उसे इस बारे में कुछ पता नहीं है। परिजनों ने बताया कि उसे मोबाइल गेम खेलने की आदत है। डॉक्टर ने अभिभावकों से अपील की कि वे अपने बच्चों को समय दें। उन पर नजर रखें। मोबाइल की लत से अपने बच्चों को बचाएं और इसके लिए उनकी स्क्रीन टाइम पर नजर रखें। उन्हें पार्क लेकर जाएं, कहीं घूमने निकलें। स्क्रीन टाइम को लेकर उनके लिए नियम बना दें।
सूचना क्रांति के इस दौर में मोबाइल फोन की अनदेखी तो नहीं कर सकते लेकिन दुनिया मुट्ठी में करने के लिए कुछ नियम अपने से तो बनाने ही होंगे। बच्चों को मोबाइल दीजिए, लेकिन उसकी लत न लगने दें। यह तभी होगा जब हम मोबाइल के चंगुल से निकलेंगे। बच्चे घर में हों या बाहर, जो देखते हैं वही सीखते हैं और उसका अनुसरण करते हैं। ऐसे में इस पीढ़ी की यह जिम्मेदारी है कि वह आने वाली पीढ़ी के लिए डिजिटल पर स्पेस बनाए न कि डिजिटल स्पेस में खोने के लिए छोड़ दें।
आपने प्यू रिसर्च सेंटर का नाम सुना ही होगा। इसने एक रिपोर्ट जारी की थी। वह रिपोर्ट भी आपको जरूर पढ़नी चाहिए। रिपोर्ट अमेरिका के संदर्भ में थी, लेकिन हर देश में लागू होती है। यह रिसर्च 13 से 17 वर्ष की आयु के 1,453 अमेरिकी किशोरों और उनके माता-पिता के बीच किया गया था। सर्वे 26 सितंबर से 23 अक्टूबर, 2023 के बीच हुआ था। इसमें जो बात निकलकर आई वह यह थी कि 72 प्रतिशत किशोरों का कहना था कि जब उनके पास स्मार्टफोन नहीं होता है तो वे अक्सर या कभी-कभी शांति महसूस करते थे। 69 प्रतिशत किशोरों का मानना था कि स्मार्टफोन उनके शौक और रुचियों को पूरा करने में मदद करता है, लेकिन महज 30 प्रतिशत का ही कहना था कि उन्हें सामाजिक कौशल सीखने में मदद मिलती है। यानी एक बड़ा हिस्सा यह कह रहा है कि वह समाज से कम घुल-मिल पा रहे हैं। आने वाली पीढ़ी के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है।
आपने वह समाचार भी सुना होगा और उसके वीडियो भी देखे होंगे जब ओलंपियन पदक जीतकर अपने देश में लौटे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे बात की। प्रधानमंत्री ने उनसे यह पूछा था कि क्या वे रील देखते हैं। इस पर उन्हें जवाब मिला था कि खिलाड़ी ओलंपिक के दौरान और उससे पहले ही फोन से दूरी बनाए हुए थे।
ऐसे में फोन से उचित दूरी बनाना है जरूरी। डिजिटल डिमेंशिया पर भी बात होगी, लेकिन बाद में…
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