नई दिल्ली । पुणे कलेक्टर के कार्यालय के बाहर एक बड़ी भीड़ ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन के नाम पर माहौल को तनावपूर्ण बना दिया, जब वहां “अल्लाह हू अकबर” और “सर तन से जुदा” जैसे उग्र नारे लगाए गए। यह भीड़ हिंदू संत महंत रामगिरि महाराज की हत्या की मांग कर रही थी। इन नारों ने पूरे देश में चिंता और आक्रोश का माहौल पैदा कर दिया है।
नारेबाजी के दौरान “नारा ए तकबीर, अल्लाहु अकबर” और “लब्बैक या रसूलिल्लाह” जैसे धार्मिक नारे भी लगाए गए, जो कुछ ही देर में ‘सर तन से जुदा’ जैसे खतरनाक और हिंसक नारों में तब्दील हो गए। इस तरह की नारेबाजी आमतौर पर पाकिस्तान में जिहादी तत्वों द्वारा सुनी जाती है, लेकिन इसे पुणे की सड़कों पर सुना जाना बेहद चौंकाने वाला है।
‘नारा ए तकदीर, अल्लाहु अकबर’ व ‘…रसूलिल्लाह’ बोलते बोलते ये जिहादियों की भीड़’सर तन से जुदा’ की अपनी संस्कृति पर कैसे उतर जाती है? ये नारे पुराने नहीं, पाकिस्तान में भी नहीं अपितु, अभी हाल ही में पुणे में लगे हैं। किंतु फिर भी कम्युजिहादी व सेक्युलर जमात में सन्नाटा पसरा है!!… pic.twitter.com/etJ96jH5rK
— विनोद बंसल Vinod Bansal (@vinod_bansal) August 25, 2024
घटना का विवरण और प्रतिक्रिया
यह भीड़ महंत रामगिरि महाराज के खिलाफ विरोध कर रही थी, जिन पर कुछ दिनों पहले दिए गए उनके बयानों को लेकर विवाद खड़ा हुआ था। हालांकि, यह विरोध जल्द ही हिंसा की धमकियों में बदल गया, जो समाज के लिए एक खतरनाक संकेत है। इस तरह की नारेबाजी ने पूरे देश में सामाजिक हलकों में एक बड़ी बहस को जन्म दे दिया है। इसके बावजूद, इस घटना पर प्रमुख राजनीतिक और सामाजिक नेताओं की चुप्पी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
सांप्रदायिक तनाव और राजनीतिक चुप्पी
इस घटना के बाद, कई लोगों ने आरोप लगाया है कि सांप्रदायिक जिहादी तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत है, लेकिन सेक्युलर और कम्युनिस्ट गुटों की ओर से किसी भी प्रकार का विरोध या निंदा सुनाई नहीं दी है। न तो हैदराबाद के ओवैसी भाइयों ने कोई प्रतिक्रिया दी है, न ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी, ममता बनर्जी या मायावती ने इस पर कोई टिप्पणी की है।
इस प्रकार की घटनाएं समाज के ताने-बाने को नुकसान पहुंचाती हैं और यह दर्शाती हैं कि धार्मिक उग्रवाद कितनी तेजी से फैल सकता है। वहीं, इस घटना के बाद आम जनता में भय और असुरक्षा का माहौल भी देखा जा रहा है।
इस मजहबी उन्माद के इस प्रदर्शन ने न केवल पुणे बल्कि पूरे भारत में चिंता पैदा कर दी है। वहीं, इस घटना के बाद प्रमुख नेताओं और सामाजिक संगठनों की चुप्पी पर सवाल उठना भी स्वाभाविक है। बरहाल समाज को एक और विभाजन की इस लकीर से बचाने के लिए अभी भी समय रहते सभी को एकजुट होकर इसका सामना करना होगा।
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