विश्लेषण

बांग्लादेश में बाढ़ पर भी दिखी भारत के प्रति घृणा, बांग्लादेशियों ने फैलाया झूठ तो मिला जवाब – ये है “प्राकृतिक न्याय”

Published by
सोनाली मिश्रा

बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद का जश्न भारत विरोधी स्वर में और तीव्रता से बदल गया है। दरअसल इन दिनों बांग्लादेश में भयानक बाढ़ आई है। यह आपदा पूरी तरह से प्राकृतिक है, परंतु भारत विरोधी राजनीति करने वाले इसमें भी भारत को दोषी मान रहे हैं। यह वही वर्ग है जिसे बांग्लादेश की उस पहचान से चिढ़ है, जो उसने भारत की सहायता से पाई थी।

शेख हसीना को पद से हटाने के साथ ही भारत विरोधी स्वर भी तेज हो गया है। इस बात को भी समझना होगा कि पूर्वी पाकिस्तान भारत के प्रति घृणा के आधार पर बना था। बंगबंधु अर्थात शेख मुजीबुर्रहमान ने उसी भारत की सहायता से विभाजन से उपजी पहचान को नष्ट करने का प्रयास किया था। उस समय भी बांग्लादेश में काफी अधिक लोग थे, जो पाकिस्तान से अलग होने के लिए तैयार नहीं थे। भारत ने अपने ही देश के उस हिस्से पर दोबारा दावे का प्रयास भी नहीं किया, जो वह जानता था कि उसी का शताब्दियों से था।

अब बांग्लादेश में हर झूठे विमर्श को हवा दी जा रही है, जो भारत के प्रति और घृणा का निर्माण कर सकती है। इसी कड़ी में अगला कदम है बांग्लादेश में आई भीषण प्राकृतिक बाढ़ को अप्राकृतिक बताकर उसके पीछे भारत को कारण बताना।

बांग्लादेश में सोशल मीडिया हैंडलर्स और वहां के कथित छात्र नेता इस बाढ़ के लिए भारत पर आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि बांग्लादेश में बाढ़ इसलिए आई है क्योंकि भारत ने आधी रात को बांध के दरवाजे खोल दिए।

उनका कहना है कि भारत ने कृत्रिम बाढ़ का निर्माण किया और अपने बांधों से पानी छोड़ दिया है। और कुछ लोग तो यह तक कह रहे हैं कि भारत को खामियाजा भुगतना पड़ेगा और सेवन सिस्टर्स भारत का नहीं रहेगा।

बांग्लादेश में कुछ मीडिया ने यह सूचना दी कि भारत ने त्रिपुरा की गोमती नदी में बने तुंबुर बांध को खोल दिया है। इसलिए बांग्लादेश में बाढ़ आई। वहीं भारत सरकार ने इसका खंडन करते हुए वक्तव्य जारी किया कि बांग्लादेश में आई हुई बाढ़ पूरी तरह से प्राकृतिक है और भारत का इससे कोई लेना-देना नहीं है। विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को एक बयान जारी करके कहा कि भारत ने बांग्लादेश में व्यक्त की जा रही चिंताओं को देखा है, इन चिंताओं में कहा जा रहा है कि बाढ़ का कारण त्रिपुरा के गोमती नदी में बने तुंबुर बांध को खोला जाना है। मगर यह आरोप तथ्यात्मक रूप से निराधार है। हम यह पूरी तरह से स्पष्ट करना चाहते हैं कि भारत और बांग्लादेश से होकर बहने वाली गोमती नदी के जलग्रहण क्षेत्रों में पिछले कुछ दिनों में इस साल की सबसे भारी बारिश हुई है, जिसके कारण दोनों ओर समस्या हुई है!”

भारत सरकार के इस वक्तव्य को सोशल मीडिया पर लोगों ने साझा भी किया। लोगों ने कहा कि भारत को इस बाढ़ के लिए आरोपित न करें, उन्होनें स्पष्ट किया है

मगर बांग्लादेश में इस सीमा तक भारत के प्रति घृणा है कि वे तथ्य को सुनना नहीं चाहते हैं। यह छटपटाहट उन्हें उस पहचान से मुक्ति पाने की है, जो उन्हें भारत अर्थात हिंदुओं की सहायता से प्राप्त हुई थी। कहीं न कहीं उनकी वह मुस्लिम पहचान भारी पड़ गई है, जो यह स्वीकार नहीं कर सकती कि हिन्दू की सहायता से उन्हें उनके ही मजहबी भाइयों के क्रूर शासन से आजादी मिली।

जिस भारत ने बांग्लादेश की हरसंभव सहायता की, जिसके निर्माण में भारतीय सैनिकों ने बलिदान दिया, आज वहाँ के नागरिक यह मानते हैं कि भारत उनका विनाश करेगा या भारत ही उनका सबसे बड़ा दुश्मन है?

वहीं भारत से कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा कि जो हो रहा है वह प्राकृतिक न्याय है। शेख हसीना के गद्दी छोड़ने के बाद जिस प्रकार हिंदुओं के विरुद्ध हिंसा हुई थी, और जिस प्रकार मंदिर आदि तोड़े गए थे, यह उसका प्राकृतिक प्रतिकार है।

वहीं सोशल मीडिया पर लोगों ने उन झूठे वीडियो का भी खंडन किया, जिन्हें दुम्बुर बांध का कहकर प्रचारित किया जा रहा है। जो वीडियो दिखाया जा रहा है वह श्री सैलम बांध का है।

यह कितनी भी बार प्रमाणित हो जाए कि भारत का हाथ इस बाढ़ में नहीं है, फिर भी न्यू बांग्लादेश के कट्टरपंथी इसमें भारत का नाम शामिल करना चाहेंगे। वे काफिर मुल्क की सहायता से प्राप्त पहचान से पीछा छुड़ाना चाहते हैं, इसलिए उनका शोषण करने वाला पश्चिमी पाकिस्तान भी उनका दुश्मन नहीं है और न ही अपनी भूमि के मुस्लिमों पर अत्याचार करने वाला चीन उनका दुश्मन है।

5 अगस्त को जो भी हुआ, वह किसी तानाशाह का गद्दी छोड़ना नहीं था और न ही शेख हसीना का मुल्क छोड़ना था, वह कुछ और ही था, जिसका विस्तार बांग्लादेश में प्राकृतिक रूप से आई बाढ़ को लेकर भारत के प्रति घृणा में झलकता है।

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