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इसरो की भावी परियोजनाएं

इसरो नासा और फ्रांस के साथ भी कुछ परियोजनाओं पर मिलकर काम कर रहा है। उसकी 2030 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना भी है।

by डॉ. निमिष कपूर
Aug 23, 2024, 11:33 am IST
in भारत, रक्षा, विश्लेषण, विज्ञान और तकनीक
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इसरो अभी जिन परियोजनाओं पर काम कर रहा है, उनसे भारत की दुनिया में धाक बढ़ेगी। इसरो नासा और फ्रांस के साथ भी कुछ परियोजनाओं पर मिलकर काम कर रहा है। उसकी 2030 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना भी है। इन प्रयासों से भारत अंतरिक्ष अन्वेषण में अग्रणी और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में स्थापित हो सकेगा।

गगनयान-1 : यह भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन है, जिसका प्रक्षेपण इस वर्ष के अंत तक किया जाएगा। इसके बाद गगनयान-2 और 3 का प्रक्षेपण किया जाएगा। पहले मिशन में व्योममित्र ह्यूमेनॉयड रोबोट को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। फिर 3 दिवसीय मिशन के तहत 3 सदस्यीय दल को 400 किमी. की कक्षा में भेजा जाएगा। सब कुछ ठीक रहा तो भविष्य में लोग अंतरिक्ष यात्रा कर सकेंगे। विशेष यह है कि मिशन के दौरान किसी भी तरह का खतरा होने पर क्रू मॉड्यूल यात्रियों को सुरक्षित वापस लाया जा सकेगा।

शुक्रयान-1 : यह एक आर्बिटर मिशन है, जो शुक्र ग्रह का अध्ययन करेगा। इसे इसी वर्ष प्रक्षेपित करने की योजना है। इसमें पेलोड में एक उच्च-रिजॉल्यूशन सिंथेटिक एपर्चर रडार (एसएआर) और एक ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार लगा होगा। पेलोड एसएआर शुक्र के चारों ओर बादलों के कारण कम दृश्यता के बावजूद हर मौसम में उसकी सतह का निरीक्षण करेगा। वहीं रडार शुक्र ग्रह की भू-वैज्ञानिक, ज्वालामुखीय गतिविधि, सतह पर उत्सर्जन, हवा की गति, बादलों की पर और दूसरे ग्रहों का भी अध्ययन करेगा।

एक्सपोसैट : एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट भी प्रक्षेपण के लिए तैयार है। यह भारत का पहला समर्पित ध्रुवणमापी अभियान है, जो विषम परिस्थितियों में चमकीले खगोलीय एक्स-रे स्रोतों के रहस्यों को खोलेगा। इससे ब्लैक होल, न्यूट्रॉन सितारों, सक्रिय गैलेक्टिक नाभिक और पल्सर पवन निहारिकाओं से मिले संकेतों का अध्ययन किया जाएगा। इससे वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष के रहस्यमय संकेतों के बारे में स्पष्ट उत्तर मिलने की उम्मीद है। इस मिशन का कार्यकाल 5 वर्ष होगा।

एन.आई.एस.ए.आर (निसार): यह इसरो और नासा का साझा वेधशाला मिशन है। दोनों ने इस उपग्रह की परिकल्पना 2014 में की थी। यह भू-पटल की छोटी-छोटी हलचलों से लेकर ज्वालामुखी विस्फोट तक होने वाले बदलावों का अध्ययन करेगा। निसार प्रत्येक 12 दिन में वैश्विक स्तर पर भूमि और बर्फ से ढकी सतहों का नियमित निरीक्षण करेगा और इससे संबंधित डेटा उपलब्ध कराएगा। इस परियोजना की अनुमानित लगात 1.5 बिलियन डॉलर है। इस उपग्रह का जीवनकाल 3 वर्ष का होगा। नासा 3 वर्ष और इसरो 5 वर्ष तक अपने पेलोड का उपयोग करेगा।

स्पैडेक्स (Spadex): यह इसरो की जुड़वां परियोजना है। इस स्पेस डॉकिंग परियोजना को 2017 में मंजूरी मिली थी। इस ‘स्प्लिट अप एंड यूनाइट’ उपग्रह में दो घटक होंगे। पहले इसे दो हिस्सों में अलग किया जाएगा, फिर उन्हें जोड़ा जाएगा। यह मानवयुक्त गगनयान मिशन सहित भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा। यदि परियोजना सफल रही तो अंतरिक्ष में ही अंतरिक्ष यान में ईंधन भरना संभव हो सकेगा। साथ ही, महत्वपूर्ण प्रणालियां, उपकरणों और जरूरत की अन्य चीजों के अलावा अंतरिक्ष में मानव को एक यान से दूसरे यान में ले जाया जा सकता है। यही नहीं, दो अंतरिक्ष यान एक-दूसरे को ढूंढ सकते हैं और एक ही कक्षा में बने रह सकते हैं।

मंगलयान-2: पहले मार्स आर्बिटर (मंगलयान) का ग्राउंड स्टेशन से संपर्क टूटने के बाद मार्स आर्बिटर-2 की योजना बनाई गई है। प्रक्षेपण के बाद आठ वर्ष तक मंगल की कक्षा में चक्कर लगा रहे मंगलयान का ईंधन और बैटरी खत्म हो गई थी। मंगलयान-2 का उद्देश्य आर्बिटर को मंगल ग्रह की निकटवर्ती कक्षा में स्थापित करने की है। इसके लिए इसरो एयरोब्रकिंग तकनीक का प्रयोग करेगा। इस मिशन में लैंडर भी भेजा जाएगा। इसका प्रक्षेपण फ्रांस की मदद से किया जाएगा।

Topics: भारत अंतरिक्ष अन्वेषणमानवयुक्त अंतरिक्ष मिशनself reliant nationindia space explorationmanned space missionइसरोISROपाञ्चजन्य विशेषआत्मनिर्भर राष्ट्र
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