‘द टेलिग्राफ’की रिपोर्ट के अनुसार, वामपंथी दल एलएफआई के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि सब्र की भी एक सीमा होती है जो अब टूटती दिख रही है। कहीं ऐसा न हो कि वे राष्ट्रपति मैक्रों के विरुद्ध महाभियोग करने को बाध्य हो जाएं। एलएफआई मैक्रों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई तक का विकल्प अपना सकते हैं।
फ्रांस में ओलंपिक खेलों की चकाचौंध अब धुंधलाती जा रही है और उसकी जगह एक बार फिर देश राजनीतिक भंवरजाल में उतरता दिख रहा है। लगभग एक महीना पहले हुए आम चुनावों में वामपंथी गठबंधन को सबसे अधिक सीटें मिली थीं, जबकि राष्ट्रपति मैक्रों की पार्टी बहुत कम सीटें जीत पाई थी। लेकिन अब एक महीने बाद भी तस्वीर साफ नहीं हो पाई है कि वहां अगली सरकार किसके नेतृत्व में बनेगी। सूत्रों की मानें तो मैक्रों वामपंथियों के हाथ में कमान देने को तैयार नहीं हैं, वे चाहते हैं कुछ विपक्षी नेताओं का सहयोग लेकर कोई मध्यमार्गी व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री बने जिससे वे अपने आर्थिक सुधार की प्रक्रिया को बेहिचक बढ़ा सकें।
इस राजनीतिक गतिरोध के बीच 23 अगस्त से मैक्रों के विपक्षी नेताओं से प्रस्तावित बैठकों का समाचार बाहर आने पर धुर वामपंथी पार्टी ‘फ्रांस अनबाउड’ ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि अगर मैक्रों जनमत से इतर जाते हैं तो वह राष्ट्रपति के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई कर सकती है।
राष्ट्रपति कार्यालय ने एक बयान जारी किया है, जिसमें विपक्षी नेताओं से मैक्रों की बैठकों का एजेंडा एक विस्तृत तथा स्थिर बहुमत की सरकार बनाना बताया गया है। इस बयान में नए प्रधानमंत्री को नियुक्त करने की ओर भी संकेत किया गया है। वह कौन होगा और किस दल का होगा, इसके बारे में संभवत: आगामी बैठकों में फैसला हो जाएगा।
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इन चर्चाओं के बीच वामपंथी ‘फ्रांस अनबाउड’ (एलएफआई) के नेता तीखे तेवर दिखा रहे हैं। उनका साफ कहना है कि यदि मैक्रों ने उनके नेता को प्रधानमंत्री नहीं बनाया तो फिर वे अदालत का सामना करने के लिए तैयार रहें। बता दें कि एलएफआई फ्रांस की चार मुख्य वामपंथी दलों में से एक है।
इस संबंध में ब्रिटेन के सुप्रसिद्ध समाचार पत्र ‘द टेलिग्राफ’ ने विस्तृत खबर छापी है। रिपोर्ट के अनुसार, वामपंथी दल एलएफआई के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि सब्र की भी एक सीमा होती है जो अब टूटती दिख रही है। कहीं ऐसा न हो कि वे राष्ट्रपति मैक्रों के विरुद्ध महाभियोग करने को बाध्य हो जाएं। टेलीग्राफ के अनुसार, एलएफआई नेताओं का साफ कहना है कि वे मैक्रों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई तक का विकल्प अपना सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि फ्रांस के संविधान में अनुच्छेद 68 के अंतर्गत यह प्रावधान है कि पदेन राष्ट्रपति को सिर्फ एक ही आधार पर पद से हटाया जा सकता है और वह है उनके द्वारा अपने कर्तव्यों का उल्लंघन करना। इस प्रावधान में यह स्पष्ट होना जरूरी है कि वह पद पर बने रहने के लिए साफ तौर पर अयोग्य हों। इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी संसद द्वारा की जाती है।
इसी साल जुलाई माह में फ्रांस में मैक्रों की पहल पर मध्यावधि चुनाव कराए गए थे। वहां मुख्य रूप से तीन राजनीतिक धाराएं हैं—मध्यमार्गी, वामपंथी और धुर दक्षिणपंथी। लेकिन इन तीनों धाराओं के दलों में से किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। नेशनल असेंबली की 577 सीटों में से बहुमत के लिए किसी दल को कम से कम 289 सीटों की आवश्यकता होती है। चार दलों के मिलकर बनाए गए वामपंथी झुकाव वाले गठबंधन ‘न्यू पॉपुलर फ्रंट’ ने सबसे ज्यादा 188 सीटें जीती थीं। मैक्रों की अगुआई में बने ‘एंसेंबल’ (ईएनएस) गठबंधन को 161 सीटें मिली थीं तथा धुर दक्षिणपंथी ‘नेशनल रैली अलायंस’ (आरएन) को 142 सीटें प्राप्त हुई थीं।
राजनीतिक विशेषज्ञों तक को हैरान करने वाले इन नतीजों के आने के बाद से ही फ्रांस में अगली सरकार के गठन तथा नए प्रधानमंत्री के चयन को लेकर धुंधलका छाया हुआ है। उस देश के संविधान के अनुच्छेद 8 के अनुसार, राष्ट्रपति ही प्रधानमंत्री की नियुक्ति करते हैं। उसके बाद वे प्रधानमंत्री की अनुशंसा पर सरकार के अन्य मंत्रियों को पदभार सौंपते हैं। इस चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री गैब्रिएल अताल हार गए थे और उन्होंने अपना त्यागपत्र सौंप दिया था। परन्तु अगली सरकार के काम संभालने तक उन्हें कार्यवाहक प्रधानमंत्री के नाते बनाए रखा गया है।
फ्रांस में हाल में सम्पन्न ओलंपिक खेलों के शुरू होने से ठीक पहले राष्ट्रपति मैक्रों ने यह कहा था कि इस आयोजन के पूरे होने तक नई सरकार की नियुक्त नहीं की जाएगी। लेकिन 11 अगस्त को पेरिस ओलंपिक के खत्म होने के बाद, एकाएक राजनीतिक हलचल बढ़ गई। नए प्रधानमंत्री को लेकर कयास का बाजार गर्म हो गया और राजनीतिक तालमेल बैठाने की कवायद भी बढ़ गई। लेकिन खेलों के खत्म होने के दस दिन बाद भी ऊंट किसी करवट बैठता नहीं दिख रहा है।
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न्यू पॉपुलर फ्रंट के चार घटक दलों, एलएफआई, सोशलिस्ट पार्टी (पीएस), फ्रेंच ग्रीन पार्टी (एलई-ईईएलवी) तथा फ्रेंच कम्युनिस्ट पार्टी (पीएसएफ) में से एलएफआई सबसे बड़ा दल है। न्यू पॉपुलर फ्रंट ने गत माह लूसी कैस्ते का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए घोषित किया था। कैस्ते, पेरिस सिटी हॉल की एक वरिष्ठ वित्तीय अधिकारी और वित्तीय अपराध मामलों की विशेषज्ञ हैं।
लेकिन न्यू पॉपुलर फ्रंट को जब झटका लगा जब मैक्रों ने कैस्ते को प्रधानमंत्री नियुक्त करने से मना कर दिया। मैक्रों ने तब यही कहा था कि मध्य अगस्त तक वे वस्तुस्थिति में कोई फेरबदल कर पाने की स्थिति में नहीं हैं। उनका कहना था कि यदि ऐसा किया तो हालात पटरी से उतर जाएंगे। मैक्रों किसी ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करने की मंशा जाहिर कर चुके हैं जिसके पास ठोस तथा मिलाजुला बहुमत हो।
यहां यह जानना दिलचस्प को कि जिस कैस्ते के नाम को मैक्रों पहले नकार चुके हैं, उनके भी 23 अगस्त से होने जा रही बैठकों में सम्मिलित रहने की बात सामने आई है। राष्ट्रपति इन बैठकों में कैस्ते के मौजूद रहने के विरुद्ध नहीं हैं।
यह कोई छुपा तथ्य नहीं है कि यूरोप के अन्य देशों की तरह फ्रांस में भी इस्लामवादी आप्रवासी अपनी कट्टरता दिखा रहे हैं और देश की कानून—व्यवस्था के लिए चुनौतियां पैदा कर रहे हैं। फ्रांस के अनेक शहरों में उनकी वजह से अपराध बढ़े हैं और महिलाओं का सड़क चलना मुहाल हो गया है। पिछले दिनों फ्रांस के अनेक शहरों में मजहबी उन्मादियों और वामपंथी तत्वों ने दंगे और आगजनी की थी। इसलिए उस देश में दक्षिणपंथी सोच का उग्र होना विशेषज्ञों की नजर में स्वाभाविक माना जा रहा है। इस विषय को भी नई सरकार के गठन के समय ध्यान रखने की बात की जा रही है।
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