भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के हिन्दी नाम पर केरल के एक वकील ने केरल हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लेकिन, हाई कोर्ट ने वकील को तगड़ा झटका देते हुए उनकी जनहित याचिका को खारिज कर दिया था।
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बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, पीवी जीवेश नाम के वकील द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई केरल के मुख्य कार्यवाहक चीफ जस्टिस ए मुहम्मद मुस्ताक और जस्टिस एस मनु की खंडपीठ ने की। पीवी जीवेश ने भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) कानून के हिन्दू नामकरण को संविधान के अनुच्छेद 348 का उल्लंघन करार दिया। याचिका में दावा किया गया है कि कानूनों के सभी पाठ अंग्रेजी में होने चाहिए।
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इसमें इस बात का भी तर्क दिया गया है कि हिन्दी नाम गैर हिन्दी भाषी क्षेत्रों में वकीलों और नागरिकों के लिए भ्रम और कठिनाई पैदा करेंगे। पीवी जीवेश का कहना है कि ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के अंतर्गत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने कानूनों के हिन्दी नामकरण को भाषाई साम्राज्यवाद के समान है और ऐसा करना देश की भाषाई विविधता का उल्लंघन करता है।
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पिछले माह कोर्ट ने इस मामले पर विचार किया था कि क्या उसके पास संसद द्वारा पारित कानूनों का नाम अंग्रेजी में बदलने का निर्देश देने का अधिकार है। कोर्ट ने नामों के कारण होने वाले भ्रम को भी स्वीकार किया। हालांकि, अब केरल हाई कोर्ट ने वकील की याचिका को खारिज कर दिया है।
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